रविवार, 9 अगस्त 2015

उगना महादेव - पंडौल, मधुबनी : विद्यापित कालीन अछि मंदिर

मिथिला धरोहर, मधुबनी : पंडौल प्रखंड के भवानीपुर गांमक उगना शिवालय हजारों वर्ष प्राचीन अछि। एतय आबय बला सब भक्त के मनोकामना शिव पूर्ण करैथ छथि। कहल जाइत अछि जे अहि स्थल पर महाकवि विद्यापति के प्यास हुनक सेवक उगना बनल महादेव बुझेने छलैथ।

मंदिरक इतिहास
अहि मंदिरक निर्माण दू सौ साल पूर्व तत्कालीन दरभंगा राज द्वारा कैल गेल छला। जे 1934 के भूकंप मे नष्ट भऽ गेल। एहीके बाद तत्कालीन महाराज के सहयोग आ ग्रामीण के सहयोग सँ वर्तमान मंदिरक जीर्णोद्धार करायल गेल आहीके प्राचीनता के अंदाजा अहि सँ लगायल जा सकैत अछि जे एतय सात फुट नीच्चा जा के अहाँ शिवलिंग के दर्शन कऽ सकैत छी। मिथिला के इतिहास के रचनाकार डॉ० रामप्रकाश शर्मा सेहो एहीके प्राचीन मानैत छथि। शिव लिंग के स्थापना प्‌र्द्रहवीं शताब्दी के प्रथम मे भेल छल।

सावन मे एतय शिव लिंग के जलाभिषेक हजार के संख्या मे शिवभक्त सिमरिया सँ गंगाजल लऽ के करैत छथि। संगेह मंदिर परिसर के चंद्रकूप के अति पवित्र जल सेहो भोलेनाथ के अर्पण कैल जाइत छनि। एतय भव्य मेला के सेहो आयोजन कैल जाइत अछि। अहि स्थान पर सालों भरि श्रद्धालु के एनाअ लागल रहैत अछि। कहल जाइत छैक जे अहि शिव के पूजा पांडव अज्ञात वास के समय केने छलथि। एतय के पंडौल प्रखंडक नामकरण एही आधार पर भेल कहल जाइत छैक।

एतय जेबाक लेल मधुबनी-सकरी मुख्य सड़क मार्ग मे पंडौल उतरि के ओतय सँ रिक्शा या ऑटो सँ जा सकै छी। ओतय दोसर मार्ग दरभंगा-जयनगर रेल मार्ग के उगना हाल्ट सँ उतरी के अहाँ पैदल दूरी तय कऽ के जा सकै छी।
# Ugna Mahadev Temple  # Bhavanipur # Pandaul, Madhubani

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

मधुबनी के सातटा शिल्पिकार के भेटल राज्य पुरस्कार

मिथिला धरोहर, मधुबनी : बुधदिन के मधुबनी के कलाजगत के लेल गौरवक क्षण छल। पूरा सूबे के जाहि २० टा शिल्पिकार के राज्य पुरस्कार देल गेल ओहिमे सातटा मधुबनी के अछि। पटना के उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान परिसर मे बुधदिन के राज्य पुरस्कार २०१४-१५ सँ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा हुनका नवाजल गेल। राज्य पुरस्कार पावै वला मे मधुबनी के सातटा मे सँ छह कलाकार के मिथिला पेंटिंगक क्षेत्र मे उत्कृष्ट कलाकृति के लेल आ एकटा कलाकार के सिक्की शिल्प के लेल पुरस्कृत कैल गेल। सबटा कलाकार के पुरस्कार स्वरूप ताम्र पत्र, नगद बीस हजार रूपैया आ दू हजार रूपैया राह खर्चक लेल देल गेल।

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● पद्मश्री जगदम्बा देवी : मिथिला पेंटिंग लेल पद्मश्री सं सम्मानित पहिल कलाकार

मिथिला पेंटिंग के लेल पुरस्कार पावै वला मे जितवारपुर के विन्दा देवी, सावित्री देवी, मोती देवी, रामकुमार दत्त, शिवकुमार पासवान आ हरिपुर डीहटोल के उमा झा शामिल छैथ। हिनके सभक संग लखनौर के शीला देवी के सिक्की शिल्प मे उत्कृष्ट कार्य के लेल मुख्यमंत्री के हाथे पुरस्कार प्राप्त भेल।

बुधवार, 5 अगस्त 2015

मिथिला मे नवविवाहिताक पर्व अछि मधुश्रावणी

मिध.: "मधुश्रावणी" ( Madhusarwani Puja 2022 ) श्रावण मासक कृश्ण पक्ष चतुर्थी केऽ प्रारंभ होइत अछि आ शुक्ल पक्ष तृतीया के समाप्त होइत अछि मुदा एकर विध चतुर्थीएँ सँ प्रारंभ होएत अछि। एही बेर इ पूजा 18 जुलाई (2022) केऽ शुरू भऽ रहल अछि। प्रकृति, परंपरा आ परिवार केऽ जोड़य वला इऽ पावनि नवविवाहिता अपन नैहर मे मनबैथ छथि, मुदा पावनिक अवधिक कपड़ा-लत्ता, भोजन आ पूजा सामग्रीकऽ प्रयोग सासुरेकऽ कैल जाइत अछि। एहि दिन सँ नवविवाहिता लोकनि अरबा-अरबानि खाईत छथि। १३ दिन तक चलैए बला एहि पूजाक लेल सबसँ पहिने एकटा कोबर बनाओल जाइत अछि। एकटा दीप जरा केऽ सासुर सँ पठाओल हरिदिक गौड़ आ एकगोट नैहरक सुपारी, संगे लग मे मैनाक पात पर धानक लावा राखि ओहि पर दूध चढ़ाओल जाइत अछि।


‘मधुश्रावणीकऽ’ अरिपन मुख्यरूपें मैनाक दूटा पात पर लिखल जाइत अछि। जतय व्रती बैसिकऽ पूजा करैत छथि आ एहिक दूनू कात जमीन पर सेहो अरिपन बनाओल जाइत अछि। जमीन परहक अरिपन के उपर मैनाक पात राखल जाइत अछि। बायाँ कातक पात पर सिन्दूर आ काजर सँ एक आंगुरक सहारा लए एक सौ एक सर्पिणीक चित्र बनाओल जाइत अछि, जे ‘एक सौ एकन्त बहिन’ कहाबैत छथि। एहि मे ‘कुसुमावती’ नामक नागिनक पूजाक प्रधानता अछि। पहिल दिन शिव-पार्वती समेत आन देवी-देवता के पूजा कैल जैत अछि। ओतय महिला पंडित कथा कहैत छथि। अहि के नवविवाहिता समेत आन महिला सब सेहो सुनैत छथि। कथाकऽ क्रम मे शिव-पार्वती के विशेष चर्चा होइत अछि आ पतिव्रता धर्म के संदेश देल जाइत अछि। मान्य परंपराक अनुसार अहि अवधि मे व्रती महिला नून नए खाइत छथि। साँझ मे सजि-धजि के सखी-बहिनपाक संग नवविवाहिता सब फूल लोढ़ै लेल जाइत छथि। एकर दौरान हास-परिहास सँ वातावरण उल्लासमय भेल रहैत अछि। इ क्रम 13 दिन धरि चलैत अछि।










रविवार, 2 अगस्त 2015

Kusheshwar Sthan Temple History | बाबा कुशेश्वर स्थान धाम : मिथिलांचलक बाबा बैद्यनाथ धाम

मिथिला धरोहर, प्रभाकर मिश्रा : मिथिलांचलकऽ बाबा बैद्यनाथ धाम आ उत्तर बिहारकऽ प्रसिद्ध तीर्थ स्थल शिवनगरी बाबा कुशेश्वरधाम शिव भक्तकऽ आस्था के केंद्र मे प्रमुख अछि। एतय साल भरी श्रद्धालु के तांता लागल रहैत अछि, विशेष कऽ सावन महीना मे शिव भक्तकऽ आस्था एतय छलकैत अछि। सभटा मनोरथ के पुर करई वला बाबा कुशेश्वर के जलाभिषेक करै के लेल सावनकऽ सोमवारी पर लाखकऽ संख्या मे श्रद्धालु पहुँचैत अछि।
समस्तीपुर-खगडिया रेललाईन पर हसनपुर रोड सँ २२ किलोमीटर आ दरभंगा सँ ६० किलोमीटर दूर, कोसी आ कमला बलानकऽ संगम स्थल पर स्थापित बाबा कुशेश्वरनाथक महिमा अपरमपार अछि। बाबा के अवतारकऽ लऽके क्षेत्र मे बहुते खिस्सा प्रचलित अछि। किंवदंति के अनुसार कुश के घन जंगलकऽ बिच अवस्थित बाबा कुशेश्वरनाथ के प्रार्दुभाव लगभग पांच सँ छह सौ बरख पूर्व भेलनी। रामपुर रौहत के स्मृति तेसतागा हजारी सबसँ पहिले शिवलिंग के दर्शन केलैथ।


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घनगर कुश के जंगल मे शिवलिंग के प्रकट होय सँ एही स्थानकऽ नाम कुशेश्वरस्थान पड़ल। हजारी केर शिवलिंगकऽ दर्शन ओही समय भेलनी जहन ओ और आँन चरवाहा के संग ओही घनगर जंगल मे गाय चराबई गेला। गाय चरबई के क्रम मे ओ देखलैथ जे एकटा बाछी के स्तन सँ दूधकऽ धारा प्रवाहित भऽ रहल छल। यैह सिलसिला बहुत दिन धरि देखि के चरवाहा हागा हजारी के जै कऽ सभटा कहानी बतेलैथ, श्री हजारी ओहि स्थलकऽ खोदाई केलैथ ऑउर हुनका ओही वक्त शिवलिंग के दर्शन भेल, ओं ओही समय कुशकऽ झोपड़ी तैयार कऽ मंदिरकऽ निर्माण करोलैथ। भूकंप एला सँ 1341 ई० मऽ इ नष्ट भऽ गेल। स्कंद पुराणक अनुसार भगवान राम के पुत्र कुश कुशेश्वरनाथ के स्थापना केने छलथी।
एकटा दोसर कथा ऐछ, सतयुग मे कुश नामक एकटा राक्षस परम शिवभक्त छल, भगवान विष्णु कुश के पृथ्वी कऽ भीतर घुसी के ओही के ऊपर शिवलिंगकऽ स्थापना केलैथ। कुश आराध्य देव के अपन ऊपर सँ हटेनै उचित नै समझलैथ आ अपन आराध्य हिरण्यदा सँ प्रार्थना केलैथ, जे कियो एही शिवलिंग के पूजा करता हुनका धनक आभाव नै होय आ तिनकर सभटा कामना पूर्ण होय। कुश कऽ इस्ट देवी हिरण्यदा हिरनी गांम मे अखनो हिरण्यदे नाम सँ विख्यात अछि। 
ओतए एकटा आँन कथा के अनुसार एक समय मिथिला मे कुश मुनि भगवान शंकर के दर्शनार्थ कुश के आसन पर बैठ तपस्या कऽ रहल छला। भगवान के प्रकट भेला पर ओं कहलैथ जे अहाँकऽ देखै के इच्छा छल जे आब पूर्ण भऽ गेल, कुश के भक्ति देखि भगवान आशुतोष हुनका एकटा शिवलिंग दऽ कहला, एकरा अपन आश्रम मे कुशेश्वरनाथ नाम सँ स्थापित करु, हम एतय आबै वला सभ लोगकऽ कामना पुर करव। एही सदी मे सकरपुरा के महरानी मंदिरकऽ भव्य रूप देलथि। 1957 ई० मे बिरला ट्रस्ट कलकत्ता एही मंदिरकऽ जीर्णोद्वार केलक। शिव भक्त सिमरिया ऑउर सीतामढ़ी समेत आँन जगह सँ पवित्र जल लके सिंघैल, मझौल, गढपुर, हसनपुर होईत लगभग 70 किमी० कऽ दुरी तय कऽ कुशेश्वरस्थान आबैत छैथ।
आयो बाबा कुशेश्वरनाथ के नाम सँ राखल दूध २४ घंटाकऽ बादो नै फाटैत ऐछ। महादेव के एकटा महिमा इहो विख्यात अछि जे मस्सायुक्त (ऐहला) लोग भांटा (बैगन) के भार चढ़ा के मस्सा सँ मुक्ति पाबैत अछि। आय बाबा कुशेश्वरनाथ जन-जनकऽ लेल मनोवांछित फल देबाक लेल प्रसिद्ध छथि। यैह करण अछि जे एतय लाखकऽ संख्या मे भक्त आबैत अछि। शिवरात्रि, वसंत पंचमी, अनंत चतुर्दशी आ नवरात्रा मे एतय विशेष उत्सव होईत अछि। साथे सावन माह मे पूरा महीनाकऽ अलावा सालो भैर प्रत्येक रैव दिन के भक्तक भीड़ जुटल रहैत अछि।