मंगलवार, 29 सितंबर 2015

एकटा परिवार जे अछि मिथिला पेंटिंग मे निपुण

मधुबनी : मिथिलांचल क्षेत्रक चर्चित मिथिला ( Mithila Painting ) पेंटिंग के नाम आब पूरा दुनिया मे लेल जा रहल अछि। एहि ठाम एकटा एहन परिवार अछि, जिनक सभटा सदस्य मिथिला पेंटिंग के माहिर कलाकार छथि।

प्राचीन समय मे भले ही एहि पेंटिंग सँ घरकऽ दीवाल के सजायल संवाराल जाईत होय, मुदा हालक दिन मे मिथिला पेंटिंग कपड़ा और सजावटी वस्तु के संगे-संग एहिके पहचान देश-विदेश मे होमय लागल अछि।
कलाकार राजकुमार के नानी, मां, पत्नी भाई, भाभी, मामा-मामी के अलावा परिवारकऽ सब आन सदस्य मिथिला पेंटिंग के परंपरा के जीवित रखने छथि।
मिथिला पेंटिंग के नाम सँ मशहूर इ चित्रकला मिथिला निवासि के प्राचीन परंपरा और सांस्कृतिक धरोहरक तौर पर सेहो जानल जाईत अछि। मधुबनी जिलाक शायद कुनो गांम एहन होय, जतय एहि प्रकार के पेंटिंग नै कैल जाईत होय, मुदा एहि कला के लेल दु टा गांम- रांटी और जितवारपुर के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम भेला सँ कलाकार के विदेश मे जा कऽ काज करवा के मौका भेटलनी।

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रांटी मे लोग आयो फूल सँ बनल रंग और चित्रकारी मे लाइनक प्रयोग करैत छथि, जेखन कि जितवारपुर मे आब फैब्रिक मे लागय वला कृत्रिम रंग के सेहो प्रयोग कैल जाइत अछि। औना जितवारपुर के प्रसिद्धि एहि कारण सेहो भेटल जे एहि गांमक निवासी जगदंबा देवी के मधुबनी कला के लोकप्रिय बनेबा मे योगदान मानल जाईत छनि।
भेट चुकल अछि राष्ट्रीय पुरस्कार 
दिवंगत जगदम्बा देवी के वर्ष १९७० मे राष्ट्रीय पुरस्कार और १९७५ में पद्म पुरस्कार सँ सम्मनित कैल गेल छलनी। जगदंबा देवी के गुजरला के बाद हुनक विरासत के संभालवा और हुनक कला के आगु बढ़ेवा के लेल हुनक भतीजी यशोदा देवी जिम्मा समाड़लनी। मिथिला पेंटिंग के चर्चित कलाकार और बहुते सम्मान आ पुरस्कार सँ सम्मनित यशोदा अपन पूरा जिनगी मिथिला कला के लेल समर्पित कऽ देलिथी। कहल जाईत अछि जे यशोदा देवी सात-आठ वर्ष सँ रंग और कुच्ची सँ खेलय लागल छलथि। यशोदा देवी आय भले नै छथि, मुदा हुनक विरासत के आब हुनक दु टा पुत्र अशोक कुमार दास और राजकुमार लाल आगु बढ़ेवा मे लगल छथि।

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१५ बरख सँ कऽ रहला कला के प्रचार-प्रसार 
राजकुमार पटना मे रहीके पिछला 20 बरख सँ एहि कला के बहुआयामी पक्ष के प्रचार-प्रसार कर रहल छथि। मॉरीशस सरकारक आमंत्रण पर ओतय स्थित रवींद्रनाथ टैगोर इंस्टीट्यूट के शिक्षक के मिथिला कलाक बारीकि सँ अवगत कऽ चुकल छथि। एहिके अलावा देश के विभिन्न शहर मे लागए वला कला प्रशिक्षण शिविर मे जा के राजकुमार हजारों प्रतिभागि के मिथिला चित्रकला के प्रशिक्षण दऽ रहल छथि। एमहर, राजुकमार के पत्नी विभा देवी सेहो लड़कि सब के मिथिला पेंटिंग के प्रशिक्षण दऽ रहल छथि। " यशोदा देवी के पुत्र अशोक कुमार दास पटना सहित दक्षिण भारत मे मिथिला पेंटिंगक प्रचार-प्रसार मे जुटल छथि।

सोमवार, 21 सितंबर 2015

मजेदार मैथिली जोक्स : Funny Maithili Jokes

१. पति: शादी सँ पहिले अहाँ बहुते व्रत-उपवास राखै छलु, आब की भऽ गेल ? 
पत्नी: बेसी तऽ नै, खाली सोमवारी के राखै छलु।
पति: फेर, आब की भेल ?
पत्नी: फेर की ? अहाँ सँ शादी भऽ गेल और हमर उपवास पर सँ भरोसा उठी गेल।


२. एक लड़का के देखअ ओकरा घर लड़की वला एल। 
लड़की वला पूछलक- लड़का कोन काज करै अछि?
लड़का के परिवार वला- जी लड़का टिम्बर मर्चेंट अछि।
लड़की वला- अच्छा भेर तऽ जंगलक जंगल खरीदैत हैत।
लड़का वला- जी नै।
लड़की वला- तऽ की ओ थोक व्यापारी ऐछ?
लड़का वला- जी नै, ओ दरभंगा स्टेशन पर दातमैन बेचअ अछि।


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३. मास्टर - कैल हम तोरा गधहा पर एकटा निबंध लिखवा के लेल कहने छलिओ, देखा की लिखले। 
विद्यार्थी - मास्टर जी, जें की हम निबंध लिखवा के लेल कलम लगेलो, गधहा भाइगे गेल !


४. गौतम एकटा सॉफ्टवेयर कंपनी मे इंटरव्यू देवाक लेल जाइत अछि।
इंटरव्यूअर : JAVA के कुनो चाईर वर्जन बताबु ?
गौतम : मर JAVA , मिट JAVA, हम सदके JAVA और लुट JAVA
इंटरव्यूअर : आब अहाँ घर JAVA

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

पग-पग पोखरि माछ मखान... किछु विशिष्ट पोखरि के खिस्सा

मिथिला मे एकटा कहावत प्रचलित अछि- पग-पग पोखरि माछ मखान...,। एहि ठाम पोखरि के संख्या देश के कुनो भी क्षेत्र सँ बेसी अछि। मिथिला क्षेत्र मे प्राचीन काले सँ बड़का - बड़का पोखरि खुदेबाक परंपरा छल। जाहीके मध्यकाल सँ दरभंगा महाराज चालू रखलथी। जिला मे हिनकर द्वारा बड़का-बड़का पोखरि खोदबायल गेल जे आयो विद्यमान अछि। एतय लखनौर के जानो मानो, रहिका, कपिलेश्वर, अररिया संग्राम, चनौरागंज, वीरसायर, मंगरौनी, बासोपट्टी के बभनदेई पोखरि, सतलखा के पद्मसागर पोखरि दरभंगा के गंगा सागर, दिघि हरही पोखरि प्रमुख् अछि। एहि के अलावा एतय निजी आ सरकारी करीब ११ हजार छोटका-बड़का पोखरि आयो मौजूद अछि।

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किछु विशिष्ट पोखरि के खिस्सा 
लखनौर प्रखंड मे स्थित जानो मानो पोखरि ऐतिहासिक अछि। बगलक गांम मे महाराज शिव सिंह के ससुराल छल। एक दिन हिनक साइर (साली) मजाक करवा के लेल हुनक भोजनक थाली मे तुरूप के फूल के परोसला जे देखअ मे उजर चाउर जेहन लागै छल। महाराज जेखन भोजन करवा के लेल हाथ बढेलैथ त साइर हाथ रोकी देलथि आ हंसै लगलि। जाहि पर महाराज कहला जे अहाँ सब किया हंसै छि। ओहि पर साइर बजली जे इ चाउर नै फूल अछि। जाहि पर महाराज प्रसन्न भेला आ किछु मांगै के लेल कहला। साइर जिनकर नाम जानो मानो छला एकटा पोखरि खोदेबा के मांग केलक। जाहीके महाराज सहर्ष स्वीकार करैत विशाल पोखरि खोदबेलैथ जे कहिओ सुखैअ नै अछि। एहि तरहे महाराज के द्वारा खोदायल गेल चनौरागंज, अररिया संग्राम, वीरसायर, रहिका, कलुआही, बासोपट्टी, सतलखा आदि दर्जन भरी एहन पोखरि अछि जाही के दरभंगा महाराज लोगक हित मे खोदबेलैथ। मिथिला मे पोखरि खोदेबाक के परंपरा ताहि लेल सेहो छला जे एतय सब तेसर साल अकाल पडैत छल। जाहि कारण एतय पईन (पानी) के घोर अभाव भ जाइत छल। जेकरा देखैत महाराज आ जमींदार बड़का-बड़का पोखरि खोदबय छलथि।

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