गुरुवार, 23 जून 2016

सुपौल जिलाक बेटा गायकी मे बॉलीवुड मे केलैथ इंट्री

मिथिला धरोहर : सुपौल जिलाक अंतर्गत छातापुर प्रखंड के महम्मदगंज पंचायत स्थित अति पिछड़ल हसनपुर गामक बेटा आमोद ( Singer Amod Kumar )  गायकी के क्षेत्र मे बॉलीवुड मे इंट्री ल लेल अछि। मुंबई के पंचम स्टूडियो मे पवन यादव निर्मित मैथिली टेलिफिल्म ''सब सँ सुंदर अपन बिहार'' के ऑडियो रिकार्डिग पूरा क लेल गेल अछि।जाहिमे आमोद प्रख्यात गायिका पामेला जैन आ पा‌र्श्व गायक उदित नारायण झा केर संग स्वर लहरी बिखेरने छथि। कुल आठ टा गाना सँ सजल एही एलबम लेल टाइटल गीत उदित नारायण झा जी गेने छथि। जेखनकि शेष गाना मे आमोद आ पामेला जैन केर युगलबंदी अछि। मशहूर भोजपुरी संगीतकार दामोदर राव केर निर्देशन मे आमोद आ पामेला सबटा गीत मैथिली मे गेने छथि। सुमधुर संगीतक संगे सुमधुगर आवाज के मेल कर्णप्रिय त एछे संगे संग इ कामयाबी आमोद केर संघर्षक खिस्सा सेहो कहैत अछि। पद्मभूषण पा‌र्श्व गायक उदित नारायण जी एलबम के टाइटल साग मे बिहारक गौरव गाथा केर बखान केने छथि त पामेला के सुर म सुर मिला क आमोद मिथिलांचलक ग्रामीण परिवेश के बहुते निक चित्रण केने छथि। 



इंटरक परीक्षाक बाद आमोद घर बार छोइड़ मुंबई के लेल रवाना भेलैथ। लगातार पाच साल धैर पढ़ाई सँ दूर भ ओ मुंबई के गलि के खाक छानला मुदा अथक प्रयासक बादो कामयाबी नय भेंटलनि। ओहि बिच आमोद केर भेंट भोजपुरी गीतकार राजेश मिश्रा सँ भेलनि। लगातार पाच साल धैर संघर्षरत रहला के बादो  कामयाबी नय भेटला सँ थाइक- हैर आमोद घरक राह पकड़ लेलैथ। फेर आयल 2016 के अप्रैल जेखन राजेश मिश्रा के फोन सँ आमोद के घटी बंजलनी। राजेश मिश्रा केर बजेला पर आमोद मुंबई पहुंचला जतय हुनक भेंट भोजपुरी संगीतकार दामोदार राव सँ भेलनि।दामोदर राव केर माध्यम सँ उदित नारायण जुड़ला और मैथिली टेलिफिल्म ''सब सँ सुंदर अपन बिहार" पर काज शुरू भेल। आमोद एखन सहरसा के एमएलटी कॉलेज मे बीए फाइनल के छात्र छथि।

बुधवार, 22 जून 2016

मिथिलांचलक सम्मानक प्रतीक 'पाग' शब्द अर्बन डिक्शनरी मे शामिल

विश्वभर के मैथिली भाषि केर लेल 17, जून (शुकर) के दिन महत्वपूर्ण रहल, कियाकि 'अर्बन डिक्शनरी डॉट कॉम' मिथिलांचल के सम्मानक प्रतीक पाग के अपन डिक्शनरी मे शामिल कऽ लेलक अछि। मिथिलांचल आ नेपालक तराई इलाका मे रहय वला मैथिल के लेल पाग मात्र एकटा पहनावा के हिस्सा नय अछि, अपितु हुनकर सम्मान, आन-बान और शान के प्रतीक अछि। पाग के व्याख्या करैत वेबसाइट लिखने अछि जे पाग बिहार के मिथिलांचल मे रहैय वला लोगक लेल माथा झँपवाक परिधान अछि आ इ लोगक सम्मान सँ सेहो जुड़ल अछि।

इहो पढ़ब:-

जगत जननी जानकी (सीता) आ संत, विद्वान केर धरती और समृद्ध सांस्कृतिक पहचान हेबाक बावजूदो मैथिल केर सम्मानक प्रतीक 'पाग' एखन धैर एकटा क्षेत्र विशेष धरि सीमित अछि। एही वेबसाइट मे भेला सँ आब एही शब्द के बारे में पूरा दुनिया जैन सकत।

शनिवार, 18 जून 2016

मैथिली पञ्चांग -2016 : जुलाई सँ दिसम्बर धरि

मौना पंचमी -- 24 जुलाई
मधुश्रावणी पूजारंभ -- 24 जुलाई
श्रावणी सोमवारी -- 25 जुलाई
(भदवा समा. -- 26 जुलाई)
प्रदोष व्रत, दूर्वादलेन पारण -- 31 जुलाई

मधुश्रावणी व्रत -- 5 अगस्त
नागपंचमी -- 7 अगस्त
श्री शीतला सप्तमी, शीतला पूजन -- 10 अगस्त
प्रदोष व्रत, मासान्त - 16 अगस्त
पूर्णिमा व्रत, संक्रांति, -- 17 अगस्त
(भदवारंभ --17 अगस्त)
रक्षाबन्धन -- 18 अगस्त
भाद्रमासीय रवि व्रत, श्री विनायक व्रत -- 21 अगस्त
(भदवा समाप्ति -- 22 अगस्त
कृष्णाष्टमी व्रत -- 25 अगस्त

कुशी अमावस्या -- 1 सिरम्बर
हरितालिका व्रत -- 4 सितम्बर
चौठचन्द्र -- 4 सितम्बर
ऋषिपंचमी व्रत, सप्तर्षि पूजन -- 6 सितम्बर
(भदवा रा., मासान्त -- 8 सितम्बर)
कर्मा-धर्मा ११ व्रत  -- 12 सितम्बर
इंद्रपुजारम्भ  -- 13 सितम्बर
अनन्त १४ व्रत  -- 15 सितम्बर
अगस्त्याघ्रदान  -- 16 सितम्बर
पितृपक्षारम्भ  -- 17 सितम्बर
विशवकर्मा पूजा  -- 17 सितम्बर
जिमूतबाहन व्रत -- 23 सितम्बर

कलशस्थापन  -- 1 अक्टूवर
बेलनौती  -- 7 अक्टूवर
पत्रिका प्रवेश -- 8 अक्टूवर
निशा पुजा -- 8 अक्टूवर
महाष्टमी व्रत -- 8 अक्टूवर
महानवमी व्रत  -- 10 अक्टूवर
विजया दशमी  -- 11 अक्टूवर
(भदवा समाप्ति -- 14 अक्टूवर
कोजगरा  -- 15 अक्टूवर
धनतेरस --  28 अक्टूवर
काली पूजा  -- 29 अक्टूवर
दियावाती  -- 30 अक्टूवर

भ्रातृ द्वितीया -- 1 नवम्बर
चित्रगुप्त पूजा  -- 1 नवम्बर
छठी व्रत -- 6 नवम्बर
अक्षय नवमी -- 9 नवम्बर
देवोत्थान एकादशी -- 10 नवम्बर
कार्तिक पूर्णिमा -- 14 नवम्बर
वीड पंचमी --19 नवम्बर
सोमवती आम० -- 28 नवम्बर

षा० रविव्रतारम्भा -- 4 दिसम्बर
विवाह पंचमी -- 4 दिसम्बर


शुक्रवार, 17 जून 2016

बलिराजगढ़ : एकटा प्राचीन मिथिला नगरी

मिथिला धरोहर : भारतक दार्शनिक, उद्भव, सांस्कृतिक और साहित्यिक विकासक क्षेत्र मे मिथिला के महत्वपूर्ण स्थान रहल अछि। मिथिला केर इतिहास निस्संदेह गौरवमय रहल अछि। पुरातत्व के अवशेषोंक अन्वेषण, विश्लेषण मे पूरा पाषाणकाल, मध्यकाल आ नव पाषाण काल के बहुते अवशेष एखन धरि प्रकाश मे नय आयल अछि। उत्तर बिहारक तीरभुक्ति क्षेत्र मे पुरातात्विक दृष्टिकोण सँ वैशाली पुरास्थल के बाद अगर कुनो दोसर महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल प्रकाश मे आयल अछि त ओ अछि बलिराजगढ़। जेकरा डीआर पाटिल बलराजपुर लिखल जाइत अछि। बलिराजगढ़ हिमालय के तराई मे भारत-नेपालक सीमा सँ लगभग 15 किलोमीटर दूर बिहार प्रान्तक मिथिलांचल छेत्र मे अवस्थित अछि।


प्राचीन मिथिलांचल के लगभग मध्यभाग मे मधुबनी जिला सँ 30 किलोमीटरक दुरी पर बाबूबरही थाना केर अन्तर्गत आवैत अछि। एतय पहुंचवाके लेल रेल आ सड़कक मार्ग दुनु सुविधा उपलब्ध अछि। बलिराजगढ़ कामलाबलान नदी सँ 7 किलोमीटर पूब आ कोसी नदी सँ 35 किलोमीटर पश्चिम मे मिथिलांचल के भूभाग पर अवस्थित अछि।

वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल मे मिथिला अति प्रसिद्ध विदेह राज्य केर रूप मे जानल जाइत छल। द्वितीय नगरीकरण अथवा महाजनपद काल मे वज्जि संघ, लिच्छवी संघ आदि नाम सँ प्रसिद्ध रहल अछि। बलिराजगढ़ केर महत्व देखैत किछु विद्वान् एकरा प्राचीन मिथिला केर राजधानीक रूप मे संबोधित करैत छथि। एतय के विशाल दुर्ग रक्षा प्राचीर सँ रक्षित पूरास्थल निश्चित रूप सँ तत्कालीन नगर व्यवस्था मे सर्वोत्कृष्ट स्थान राखय छल।

175 एकड़ वला विशाल भूखंड के बलिराजगढ़, बलराजगढ़ या बलिगढ़ कहल जाइत अछि। स्थानीय लोग केर माननाय अछि जे महाकाव्य और पुराण मे वर्णित दानवराज बलि केर राजधानी क इ ध्वंष अवशेष अछि, मैले के अनुसार स्थानीय लोगक सबक विश्वास अछि जे एही समय सेहो राजा बलि अपन सैनिकक संगे एही किला मे निवास करैत छथि। सम्भवतः एही करण सँ किओ खेती लेल जोतबा के हिम्मत नय करैत अछि। एही अफवाहक चलैत एही भूमि और किला केर सुरक्षा अपने आप होइत रहल। 

बुकानन के अनुसार वेणु, विराजण और सहसमल के चौथा भाई बलि एकटा राजा छलैथ। इ बंगालक राजा बल केर किला छल जिनकर शासनकाल किछ दिनक लेल  मिथिला पर सेहो छल। बुकानन के अनुसार ओ  लोग दोमकटा ब्राह्मण छल जे महाभारत मे वर्णित राजा युधिष्ठिर केर समकालीन छल। मुदा डीआर पाटिल एकरा ख़ारिज करैत कहैत छथि जे वेणुगढ़ आ विरजण गढ़ के किला सँ बलिराजगढ़ के दूरी बेसी अछि।

एकटा आन विद्वान् एही गढ़ के विदेह राज जनक केर अंतिम सम्राट द्वारा निर्मित मानैत छथि। हिनका अनुसार जनक राजवंश के अंतिम चरण मे आबि के वंश शाख मे बंटा गेल और वैह मे सँ एकटा शासक द्वारा किला केर नाम बलिगढ़ राखल गेल।
रामायण के अनुसार राम, लक्ष्मण और विश्वामित्र गौतम आश्रम सँ ईशाणकोण के दिस  मिथिला के यज्ञमण्डप पहुंला। गौतम आश्रम केर पहचान दरभंगा जिला के ब्रह्मपुर गांव सँ कैल गेल अछि। जेकर उल्लेख स्कन्दपुराण मे सेहो भेटैत अछि। आधुनिक जनकपुर गौतम आश्रम अर्थात ब्रह्मपुर सँ ईशाणकोण नय भ के  उत्तर दिशा मे अछि। एही तरहे गौतम आश्रम सँ ईशाणकोण मे बलिराजगढ़ के अलावा और कुनो ऐतिहासिक स्थल देखाय नय दैत अछि, जाहिपर प्राचीन मिथिलापुरी हेबाके सम्भावना व्यक्त कैल जा सके। अतः बलिराजगढ़ के पक्ष मे एहन तर्क देल जा सकैत अछि जे मिथिलापुरी एही स्थल पर स्थित अछि।

पाल साहित्य मे कहल गेल अछि जे अंग केर राजधानी आधुनिक भागलपुर सँ मिथिलापुरी साइठ योजन केर दूरी पर छल। महाउम्मग जातक केर अनुसार नगरक चारु द्वार पर चाइर बजार छल जेकरा यवमज्क्ष्क कहल जाइत छल बलिराजगढ़ सँ प्राप्त पुरावशेष एही बात के पुष्टि करैत अछि। बौद्धकालीन मिथिलानगरी के ध्वंशावशेष सेहो बलिराजगढे अछि।

बलिराजगढ़ जे पुरातात्विक महत्व के सर्वप्रथम 1884 मे प्रसिद्ध प्रसाशक, इतिहासकार और भाषाविद् जार्ज ग्रीयर्सन उत्खनन के माध्यम सँ उजागर करवा के चेष्टा केलनि, मुदा बात यथा स्थान रही गेल। ग्रियर्सन के उल्लेखके बाद भारत सरकार 1938 मे एही महत्वपूर्ण पुरास्थल के राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे घोषित क देल गेल।

सर्वप्रथम एही पुरास्थल के उत्खनन 1962-63 मे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रघुवीर सिंह केर निर्देशन संपादित भेल। एही उत्खनन सँ ज्ञात भेल जे एही विशाल सुरक्षा दीवार के निर्माण मे पक्का ईटक संग मध्यभाग मे कच्चा ईटक प्रयोग कैल गेल अछि। सुरक्षा प्राचीर के दुनु दिस पक्का ईटक प्रयोग दीवार के मजबूती प्रदान करैत अछि। सुरक्षा दीवार के चौड़ाई सतह पर 8.18 मी. आ 3.6 मी. तक अछि। सुरक्षा दीवारक निर्माण लगभग तेसर शताब्दी ई.पू. सँ ल के लगातार पालकालीन अवशेष लगभग 12-13 शताब्दी पर प्राप्त होइत अछि पुरावशेष मे सुंदर रूप सँ गढ़ित मृण्मूर्ति महत्वपूर्ण अछि।

एकर उपरांत 1972-73 और 1974-75 मे बुहार राज्य पुरातत्व संग्रहालय द्वारा उत्खनन कैल गेल। एही उत्खनन कार्य मे बी.पी सिंह के समान्य निर्देशन मे सीता राम रॉय द्वारा के.के सिन्हा, एन. सी.घोष, एल. पी. सिन्हा तथा आर.पी सिंह के सहयोग सँ कैल गेल। उक्त खुदाई मे पुरावशेष आ भवन के अवशेष प्राप्त भेल। एही उत्खनन मे उत्तर कृष्ण मर्जित मृदभांड सँ ल के पालकाल तक के मृदभांड भेटल अछि। सुंदर मृण्मूर्ति अथाह संख्या मे भेटल अछि। अर्ध्यमूल्यवाल पत्थर सँ बनल मोती, तांबा के सिक्का, मिट्टी के मुद्रा प्राप्त भेल अछि। एखन हाले मे 2013-14 मे एक बेरा फेर उत्खनन कार्य भरतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना मण्डल के मदन सिंह चौहान, सुनील कुमार झा आ हुनक मित्र द्वारा उत्खनन कार्य कैल गेल।

एही स्थल के उत्खनन मे मुख्य रूप सँ चाइर संस्कृति काल प्रकाश मे आयल।
1. उत्तर कृष्ण मर्जित मृदभांड
2. शुंग कुषाण काल
3. गुप्त उत्तर गुप्तकला
4. पाककालीन अवशेष

एही स्थल सँ एखन धरि पुरावशेष मे तस्तरी, थाली,पत्थर के वस्तु, हड्डी और लोहा, बालुयुक्त महीन कण, विशाल संग्रह पात्र, सिक्का, मनके, मंदिर के भवनावशेष प्राप्त भेल अछि और एकटा महिला केर मूर्ति सेहो प्राप्त भेल अछि जे कोरा मे बच्चा के स्तन सँ लगने अछि। 

एतय सबसँ महत्वपूर्ण साक्ष्य मे प्राचीर दीवार अछि जे पक्का ईट सँ बनल अछि और एखन धरि सुरक्षित अवस्था मे अछि दीवार मे केतउ-केतउ कच्चा ईट के प्रयोग कैल गेल अछि। एतय प्रयोग कैल गेल ईटाक लंबाई 25 फिट और चौड़ाई 14 फिट धैर अछि।

पाल काल या सेन कालक अंत मे भीषण बाईढ़ द्वारा आयल मट्टी के जमाव केतउ केतय 1 मीटर तक अछि। एही सँ निष्कर्ष निकालल जा सकैत अछि जे एही महत्वपूर्ण कारक रहल अछि। एही समय मे कुनो पुरास्थल मिथिला क्षेत्र मे अतेक वैभवशाली नय प्राप्त भेल अछि। किछु विद्वान द्वारा एही पुरास्थल के पहचान प्राचीन मिथिला नगरी के राजधानी के रूप मे चिन्हित करैत छथि। इ पुरास्थल मिथिला के राजधानी ऐछ की नय एही विषय मे और बेसी अध्ययन आ पुरातात्विक उत्खनन और अन्वेषण के आवश्यकता अछि।

Tags : # Balirajgarh

गुरुवार, 9 जून 2016

मिथिला और मैथिली

मिथिला मे सीता पर बहुते दंत खिस्सा-पिहानी  प्रचलित अछि। आयो मिथिला मे बेटी के नाम सीता या मैथिली नय रखाल जाइत अछि। एकटा कथा के मुताबिक, सीता के दुर्भाग्य पर सीता के चाचा और बाद मे मिथिला नरेश बनल कुशध्वज अतेक दुखी भेलैथ जे ओ मिथिला मे कतेक रास पाबंदि लगा देलथि।

विवाह पंचमी केर दिन विवाह केनाय मना क देल जेल, जेखनकि परंपरा के मुताबिक ओ वियाह के सर्वोत्तम दिन मानल जाइत छल। एकटा घर मे तीनटा बेटि केर वियाह मना क देल गेल।, कियाकि उर्मिला के अकारणे 14 साल धरि पति के वियोग झेलय पड़ल छल! मिथिला मे ओहि समय सँ इ परंपरा बना देल गेल जे पश्चिम मे बेटी के वियाह नय होयत। एकटा कथा इहो अछि जे कुशध्वज के बेटा राम द्वारा सीता केर वनवास देल जेवाक कारण विद्रोह केने छलथि।

इ एकट लोककथा अछि। राम केर जीवनीकार एकर केतउ जिक्र नय करैत छथि। राम ओहि विद्रोह के कुचैल देने छलथि आ ओहि विद्रोह मे मिथिलाक सेना अपन राजा के संग नय द राम केर संग देलक। ओहि लोककथा केर अनुसार, सीता एही सँ बहुते क्षुब्ध भेलि और ओ मिथिला के श्राप देली जे विद्रोह एकर स्वभाव सँ खत्म भ जायत। मैथिल कखनो भी विद्रोही नय बैन पायत। लोककथा के माध्यम सँ मिथिला आयो ओहि संत्रास, ओहि विद्रोह आ ओहि दुख के जीवैत अछि। मिथिला के दादी-नानि आयो काशी-मथुरा-जगन्नाथपुरी के नाम लैइत अछि अयोध्या के नय!
आईचौक: सुशांत झा