बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

आब भोजपुरी, मगही, मैथिली मे सेहो हैत ऑनलाइन अनुवाद

हिंदी सँ भोजपुरी, मगही और मैथिली के ऑनलाइन अनुवाद जल्द संभव हैत। ट्रांसलेटर तैयार करवा के प्रोजेक्ट पर आईआईटी बीएचयू और काशी हिंदू विश्वविद्यालय मिल के काज क रहल अछि। वैज्ञानिक के मुताबिक क्षेत्रीय भाषा के अनुवाद के लेल इ अपन तरहक पहिल मशीनी ट्रांसलेटर होयत। एक साल मे अहि कार्य के पूरा कैल जेवाक के लक्ष्य अछि।

आईआईटी के डॉ. अनिल कुमार सिंह के निर्देशन में ‘प्रोजेक्ट वाराणसी’ के तहत ट्रांसलेटर विकसित करवाक काज भ रहल अछि। बीएचयू के भाषा विज्ञान विभाग एहिके लेल लैंग्वेज रिसोर्स तैयार केलक अछि, जहन कि आईआईटी बीएचयू के कंप्यूटर विज्ञान आ इंजीनियरिंग विभाग टूल्स आ सॉफ्टवेयर तैयार केलक अछि। प्रोजेक्ट के पहिला चरण पूरा भ चुका अछि। परीक्षण मे किछ कमियां पैल गेल जेकरा दूर करवाक क़ाज चैल रहल अछि।

आईआईटी बीएचयू के निदेशक प्रो. राजीव संगल क्षेत्रीय भाषाओं के संवर्धन के लेल अहि प्रोजेक्ट के शुरू केलैथ अछि। अहि सँ भोजपुरी, मगही और मैथिली मे उपलब्ध साहित्य के ऑनलाइन कैल जा सकत और एकरा डिजिटल रूप मे सहेजल जा सकत। भोजपुरी चूंकि पूर्वांचल के प्रमुख भाषा अछि, प्रो. संगल के मुताबिक, ‘‘अखन धरि मगही और मैथिली पर कुनो काज नय भेल अछि, इ हमर क्षेत्रीय भाषा अछि, ताहिलेल एकर साहित्य के सहेजवाक जरूरत अछि’’ प्रोजेक्ट मे कंप्यूटर साइंस आ इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. स्वस्ति मिश्रा और भाषा विज्ञान विभाग के डॉ. संजुक्ता घोष सहयोग द रहल छथि।

आईआईटी बीएचयू के कंप्यूटर साइंस आ इंजीनियरिंग विभाग के असि. प्रो., डॉ. अनिल कुमार सिंह  बतेलखिन, 'हमर सॉफ्टवेयर गूगल ट्रांसलेटर जँका काज करत। भोजपुरी, मगही और मैथिली भाषा के रिसोर्स तैयार अछि। भोजपुरी के सिस्टम तैयार कैल जा चुका अछि। मगही आ मैथिली के सिस्टम विकसित करवा पर काज बाद मे शुरू कैल जायत। प्रोजेक्ट मे आईआईआईटी हैदराबाद सेहो सहयोग क रहल अछि।’
(अमर उजाला ब्यूरो)

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

मिथिलाक लोकपर्व कोजगरा आ लक्ष्मी पूजा 15 के

मिथिला धरोहर : अहि बेर मिथिलाक लोकपर्व कोजागरा आ लक्ष्मी पूजा पूर्ण अमृत योग मे आबि रहल अछि। 15 अक्तूबर के शैनदिन कोजागरा आ लक्ष्मी पूजा अछि। पंडित कहलखिन जे अहि बेरा आश्विन मास शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा तिथि के लक्ष्मी पूजा आ कोजागरा अछि। 122 बरखक उपरांत इ पूर्ण अमृत योग मे पैड़ रहल अछि। शैनदिन के उदयकाल मे चतुर्दशी तिथि मे रहत, जे सब तरहक सिद्धि के प्रदान करय  वला शैन होइत अछि। 

मान्यता अछि जे पूर्णिमा तिथि के भगवान श्रीकृष्ण अपन 64 कला के महारास केने छलथि। अहिमे ब्रह्मांड केर सब देवी-देवता भाग लेने छलथि। एते तक जे भगवान शिव सेहो अहि नृत्य मे शामिल भेल छलथि। ओहि राति माता राधा रानी लक्ष्मी केर रूप मे अमृतवर्षा कऽ रहल छलखिन।

धर्म शास्त्र मे अहि दिन के 'कोजागरा व्रत' मानल गेल अछि। जिनकर बियाह सालक भीतर होइत छैक ओ नव विवाहित दम्पत्ति के कोजगरा होईत अछि। कोजागरा के शाब्दिक अर्थ अछि - के जैग रहल? मान्यता अछि जे अहि राति मे माँ लक्ष्मी के उपासना फलदायी होइत छैक।

शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

कुमाइर भोजक बिना अधूरी अछि नवरात्रि पूजा, पढूं कुमाइर पूजा विधि-

मिथिला धरोहर : शास्त्र मे नवरात्रि के अवसरा पर कुमाइर (कन्या) पूजन आ कुमाइर भोज के अत्यंत महत्वपूर्ण कहल गेल अछि। नवरात्रि मे देवी माँ के सब साधक कुमाइर के माँ दुर्गा के दोसर रूप मैइन हुनक पूजा करै छथि। विशेष कऽ कलशस्थापना करै वला और नौ दिन कऽ व्रत राखय वला के लेल कुमाइर भोज के बहुते महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। 

किछ लेख'कऽ अनुसार, भविष्यपुराण आ देवीभागवत पुराण मे कुमाइर (कन्या) पूजनक वर्णन कैल गेल अछि। अहि वर्णन कऽ अनुसार नवरात्रि के पर्व कुमाइर भोज के बिना अधहां अछि। कुमाइर पूजा नवरात्रि पर्व के कुनो भी दिन या कखनो भी कैल जा सकैत अछि। मुदा पौराणिक कथा के अनुसार, नवरात्रि के अंतिम दू दिन अष्टमी आ नवमीं के कुमाइर पूजनके श्रेष्ठ दिन मानल गेल अछि।

नौ टा कुमाइर के कैल जाइत अछि भोज-
कहल जाइत अछि जे कुमाइर पूजन के लेल दू सँ दस साल के कुमाइर के बहुते शुभ मानल गेल अछि। कथा मे कहल गेल अछि जे कुमाइर भोजक लेल आदर्श संख्या नौ टा होइत अछि।ओना अपन श्रद्धा अनुसार कम या बेसी कुमाइर के सेहो भोजन करा सकै छी।

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कुमाइर भोजक लेल जे नौ टा कुमाइर बजायल जाइत अछि हुनका माँ दुर्गा केर नौ रूप मैन के पूजल जाइत अछि। कथा मे कुमाइर के उम्र के अनुसार हुनका नाम सेहो देल गेल अछि। जेल दू वर्षक कुमाइर के कन्या कुमारी, तीन सालक कुमाइर के त्रिमूर्ति, चाइर सालक कुमाइर के कल्याणी, पांच सालक कन्या के रोहिणी, छह सालक कुमाइर के कालिका, सात सालक कुमाइर के चंडिका, आठ सालक कुमाइर के शाम्भवी, नौ सालक कुमाइर के दूर्गा आ दस सालक कुमाइर के सुभद्रा केर स्वरूप मानल जाइत अछि। यैह कारण अछि जे कुमाइर भोज या कुमाइर पूजन के लेल दस साल सँ कम उम्र के बालिका के महत्वपूर्ण मानल जाइत अछि। 

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छवि - JC
पूजाक विधि-
प्रातः काल स्नान कऽ के प्रसाद मे खीर, पूरी, और हलुआ आदि तैयार करवा के चाही। एकर उपरांत कुमाइर के बजा कऽ शुद्ध जल सँ हुनकर पैर (पांव) धोबाक चाहि। कुमाइर के पैर धोला के उपरांत हुनका साफ आसन पर बैसेबाक चाहि। कुमाइर के भोजन परोसबा सँ पहिले माँ दुर्गा के भोग लगेबाक चाहि और फेर एकर बाद प्रसाद स्वरूप मे कुमाइर के ओ खुएबाके चाहि। भोजन करेबा सँ पहिले सिंदूरक ठोप लगा दिओ। नौ टा कुमाइर के एक संगे एकटा छोट कुमार (बालक) के सेहो भोज करेबा के प्रचलन अछि। बालक भैरव बाबा के स्वरूप या लंगूर कहल जाइत अछि। कुमाइर के भैरपेट भोजन करेबाके बाद अपन सामर्थ्य अनुसार हुनका रुपया या वस्त्र भेंट कऽ और हुनक पैर छूय के आशिर्वाद प्राप्त कऽ लिअ। अहाँ के सबटा मनोकामना पृर्ण हैत।

Tags : # kumari bhojan # Kanya Puja


शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

सात सौ वर्ष सँ बहेरी प्रखंडक हावीडीह गाम मे विराजमान छथि नवादाक भगवती

मिथिला धरोहर : दरभंगा जिलाक, बहेरी प्रखंडक देवकुली - सिसौनी ( Devkuli Sisoni  ) मुख्य सड़क पर हावी गांव मे स्थित हैहट देवी ( Havidih Bhagwati, Baheri ) के मूर्ति के दर्शन आ पूजा-अर्चना लेल लोग दूर-दूर सँ एतय आबैत छथि। भगवती के दरबार मे जे भक्त समर्पित भावना सँ कोबला-पाती लऽ के आबैत अछि मैया हुनक मनोकामना पूर्ण करैत छथिन।

हावीडीह गामक डीह टोल पर स्थापित अहि मंदिर के सिद्ध पीठक रूप मे सेहो जानल जाइत अछि। एक दिस अष्टभुजी माँ दूर्गा तऽ दोसर दिस माँ काली विराजमान छथिन। 

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गामक लोगक अनुसार, अहिके स्थापना कर्नाट वंशीय शासक राम सिंह देव लक्ष्मण संवत् 212 अर्थात 1331 ई० मे केने छलैथ। अहिके उल्लेख चरण पादुका पर सेहो उत्कृण अछि। हाले मे (लगभग 10-12 साल पहिले) तेलक खोजक लेल आयल स्कॉलैण्ड के कंपनी कैनन इंडिया आधार बनेबा के लेल मंदिरक लग सँ मैटक उठाव केलक तऽ सूर्य के प्रतिमा आ महादेव के शिव लिंग भेटल। अहिके देवी के मंदिरक प्रागंण मे दोसर मंदिर बना कऽ स्थापित कऽ देल गेल। 

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एतय नवरात्रा मे बलि प्रदानक सेहो प्रथा अछि। आसपासक लोगक कहवा अछि जे हावी के भगवती नवादा सँ एकटा भक्त पर प्रसन्न भऽ एतय आयल छलखिन। हावीडीह केर ग्रामीण के कहव अछि जे एतय दशहरा मे दू चरण मे माँ केर पूजा-अर्चना कैल जाइत अछि।

सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

माँ ज्वालामुखी भगवती स्थान, कसरौर, दरभंगा | Kasraur Bhagwati Mandir

दरभंगा : बिरौल अनुण्डल अन्तर्गत कसरौर गाम केर ज्वालामुखी भगवती ( Jwalamukhi Bhagwati Kasraur ) केर ख्याति दूर-दूर तक पसरल अछि। एतय श्रद्धालु सिमरिया सँ गंगाजल भैर कय मंदिर मे माँ ज्वालामुखी केँ अर्पण करैत छैथ। मैयाक दरबार मे निक मुन सँ जे भी मांगैत छैथ माता ओय सँ अधिक दैत छथीन। अही सब लेल लोक साल भैर एहि मंदिर मे भगवतीक स्थायी पिंडक पूजा करै लेल दूर-दूर सँ पहुंचैत छैथ।
स्थानीय बुजुर्ग सबहक कहबाक अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व भगवती हिमाचल प्रदेश मे अनन्य भक्त उफरौल गांव केर लखतराज पांडेय नामक व्यक्ती केँ साक्षात दर्शन देलैथ आ वरदान मांगबाक लेल कहलैन। हिमाचल केर ज्वालामुखी दरबार मे सेवा कय रहला भक्त पांडेय हुनका सँ अपन गाम चलबाक याचना केलैन। माता हुनकर बात मानिकय हुनकहि संग चैल देलखिन।

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लखतराज कसरर के जंगल सँ जा रहल छलैथ। बेसी समय धरि चलला पर थकान भेला सँ ओ एक ठाम बैसिकय सुस्ताए लगलाह। किछुए काल बाद ओ भगवती सँ गाम चलबाक आग्रह केलखीन। भगवती केँ कसरर वन केर सुंदरता आ स्वच्छताक बात कहि भक्त लखतराज पांडेय सँ हुनका ओत्तहि स्थापित कय पूजा-अर्चना लेल इच्छा प्रकट केलखीन। भगत पांडेय हुनका ओत्तहि स्थापित कयलखीन। तहिया सँ आसपास केर भक्त-श्रद्धालू लोकनि द्वारा मैया ज्वालामुखीक निरंतर पूजा-अर्चना ओहि निर्जन कसरर वन मे होमय लागल। कालांतर म यैह कसरर भगवतीक रूप मे सुविख्यात भेली। एकटा और खास बात इ अछि जे अहि गाम मे किनको घर मे भगवती के स्थापना नय कैल गेल अछि। गाउँ बला सभके सबटा शुभ काज चाहे शादी-बियाह होय या मुंड़न - उपनयन सबटा मां केर प्रांगण मे संपन्न होइत अछि।

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भगवतीक माहात्म्य केर साक्षात उदाहरण यैह अछि जे हुनकर अनन्य भक्त शंभू बाबा (Shambhu Baba, Kasraur ) बिना अन्न-जल ग्रहण करैत आइ कतेको वर्ष सँ हुनक सेवा मे लागल छैथ। शंभू बाबा अपन एक छोट कुटी मे निरंतर यज्ञ अनुष्ठान कय रहला अछि। मान्यता आइयो कहैत अछि जे शंभू बाबा मे सिद्धिक वास अछि। ओ नित्य वायूमार्ग सँ सिमरिया पहुँचि ओतय सँ गंगाजल आनि भगवती ज्वालामुखीक विशेष पूजा-अर्चना करैत छथि। एक सिद्ध योगीक रूप मे शंभू बाबा जानल जाएत छथि। दूर-दूर सँ लोक मैयाक दर्शन करबाक लेल तऽ अबिते छथि, हुनका सबहक मोन मे शंभू बाबा केर दर्शन लेल सेहो ओतबे व्यग्रता देखल जाएछ।