सोमवार, 27 मार्च 2017

भगवती बाला त्रिपुर सुंदरी : बड़हिया, लखीसराय

भगवती बाला त्रिपुर सुंदरी
मिथिला धरोहर, लखीसराय : सिद्ध मंगलापीठ के नाम सँ प्रसिद्ध माँ बाला त्रिपुर सुंदरी जगदम्बा के मंदिर पवित्र गंगा नदी के तट पर लखीसराय जिला अंतर्गत बड़हिया ग्राम मे स्थित अछि ( Maa Bala Tripura Sundari, Barhiya Lakhisarai ) । लाखक आबादी बला इ नगर हावड़ा दानापुर रेलखंड के मुख्यमार्ग पर स्थित अछि। बड़हिया स्टेशन पर प्राय: सबटा गाडि रुकैत अछि अत: देशक कुनो भी स्थान सँ एतय पहुचल जा सकैत अछि। यात्रि सबके रुकवाक लेल एतय मंदिर समिति दिसन सँ भक्त श्रीधर सेवाश्रम के नाम सँ एकटा बहुमंजिला धर्मशाला के निर्माण कैल गेल अछि। अहि मंदिर के ऊंचाई 151 फीट अछि आ स्वर्ण कलश के संग 167 फीट अछि जे बिहारक सबसँ ऊँच मंदिर अछि।

माँ बाला त्रिपुर सुंदरी केर संक्षिप्त इतिहास
जतय आय मंदिर अछि ओ जमीन सातवीं शताब्दी मे पालवंश केर प्रतापी राजा इंद्रद्युम्न मैथिल ब्राह्माण प्रथु ठाकुर आ जय ठाकुर के देने छलथी। जगन्नाथपुरी जेबाक क्रम मे गंगा पार होइत काल अहि स्थल पर उक्त दुनु ब्राह्माण बंधु बिलाई (बिल्ली) के मुस (चूहा) सँ लडैत देखने छलथि। अहिमे बिलाइर के हाइर् भऽ गेल। ताहि सँ हुनका लगलनि जे इ स्थल देवी शक्ति के केन्द्र अछि फेर दुनु ब्राह्माण बंधु सेहो एतय रहय लगला। 
भगवती बाला त्रिपुर सुंदरी, मंदिर, बड़हिया  
जय ठाकुर कर्म कांड केर विद्वान छलैथ ओ मैथिल ब्राह्माण तऽ छलैथे, दान पुण्य मे भेटल जमीन आ संपत्ति अपन भाई प्रथु ठाकुर के देबय लगला। अहि कारण हिनक भाई भूमिहार ब्राह्माण केर नाउ सँ पुकारल जाय लगला। हिनके वंश मे श्रीधर ओझा पैदा भेला जे घर सँ दूर रैह गंगा तट पर कुटिया मे सिद्धि के प्राप्त कऽ रहल छला। यैह क्रम मे ओ कश्मीर सेहो गेला और ओतय वैष्णो देवी केर स्थापना केलैथ। मान्यता अछि जे ओहि क्रम मे श्रीधर ओझा के स्वप्न एलनि जे प्रात: काल गंगा मे ज्योति मृतका एकटा खप्पर मे प्रवाहित होइत देखाइत। एकर आराधना सँ संसार के दुख दूर होयत। ओ आपस बड़हिया एलखिन और गंगा तट पर ज्योति स्वरूपा त्रिपुर सुंदरी के प्रज्वलित शिखा के रूप मे देख'लथि। फेर देवी दर्शन देलखिन और कहलखिन तोरा पांडित्य सँ प्रभावित छी हमर बाला रूप बड़हिया मे विराजमान हेतय।
पांच टा पिण्ड
देवी दू टा शर्त रखलखिन पहिला इ जे माँ बाला त्रिपुर सुंदरी गंगा केर मइट्ट मे निवास करथिन आ दोसर शर्त श्रीधर ओझा के ओतय जलसमाधि लेबय परतन। शर्तक अनुसार श्रीधर ओझा शास्त्रीय विधि सँ त्रिपुर सुन्दरी महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती के पिण्डी केर स्थापना केलथि आ ओतय जल समाधि ल लेलखिन। फेर बाद मे भक्त सब एकटा और पिण्ड के स्थापना श्रीधर ओझा केर रूप मे ओतय केलनि। आब मंदिर मे पांच पिण्ड केर पूजा होइत अछि।
भगवती बाला त्रिपुर सुंदरी : बड़हिया (रात्रि दृश्य)
धरती सँ करीब 16 फीटक ऊंचाई पर देवी स्थापित छथि जेखन कि मंदिर के ऊंचाई 151 फीट अछि। मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश के संग माँ जगदम्बा के ध्वज फहरइत रहैत अछि।

सोमवार, 20 मार्च 2017

मिथिला महोत्सव मे धूम मचेति मैथिली ठाकुर

झारखंड मिथिला मंच दिस सँ 12 अप्रैल के शुरू होय बला मिथिला महोत्सव मे मिथिला के बेटी मैथिली ठाकुर धूम मचेति। इ सांस्कृतिक और साहित्यिक महाकुंभ रांची के ऐतिहासिक हरमू मैदान मे होयत। अंहि मे मिथिला के परंपरा और संस्कार के दर्शन हरमू के संग पूरा रांची करत। मौका पर मिथिला के ख्याति प्राप्त कलाकार रंजना झा, माधव राय संग कलर चैनल के प्रोग्राम राइजिंग स्टार के प्रतिभागी और मिथिलाक बेटी मैथिली ठाकुर के संगेह स्थानीय कलाकार रूपा चौधरी और निभा झा केर अवाज सेहो गूंजत। अंहि  महाकुंभ मे साहित्यकार'क अलावा दोसर विद्वान सेहो जुटता।

बुधवार, 8 मार्च 2017

मैथिली कविता : 'नारी' आब त्याग अपन लाचारी !

तौइर् दे चुप्पी मुंह खोल अपन
आसमान मे उर तौइर् सब बन्धन
केकरो मुठ्ठी मे कैद नय रह
कीयो क'ले चाहे कतेबो जतन
अहाँक वस्त्र पर टिप्पणी नय होय केतौ
चाहे पहिरे चिन्स या साड़ी
'नारी' आब त्याग अपन लाचारी।

उठ ठाड़ होउ आब चैलते रहु
आंगिक धधरा सन जैरते रहु,
लोग समाजक परवाह नय करु
निश्चल पथ पर आगू बैढ़ते रहु
अंहिसँ जीवनक होय आरम्भ
अंहि सगरो श्रिष्टि के अधिकारी
आब त्याग अपन लाचारी।

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दहेजक लेल किया अहाँ मरम
राह चलैत किया अहाँ डरब
मोनक भीतर सँ डर हटा लिअ
केकरो गुलामी किया अहाँ करब
दुष्टक संघार करवा के लेल
आब क'लिअ सिंह सवारी,
आब त्याग अपन लाचारी।

अहाँक नाम एक मुदा रूप अनेक
घर-घर पहुँचाय इ एक संदेश
होइत नारी के सम्मान जतय
करय छथि ओतय लक्ष्मी प्रवेश
अंहिक देवी रूप मे पूजैत ऐछ
कतउ बेचय ऐछ बैन व्यपारी
आब त्याग अपन लाचारी।
© साभार - प्रभाकर मिश्रा 'ढुन्नी

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शनिवार, 4 मार्च 2017

Mithila Paag Tradition | मिथिला मे पाग के परम्परा

मिथिला धरोहर, प्रभाकर मिश्रा : 'पाग' मिथिलाक परंपरा के एकटा प्रतीक अछि। 'पाग' मिथिला मे सम्मानक प्रतीक अछि। 'पाग' मिथिला के पहचानक सेहो प्रतीक अछि। 'पाग, जेकरा पहिर के लोग स्वयं केर गौरवान्वित अनुभव करैत छथि। मिथिलांचल मे अपन अतिथि के सम्मान देबाक लेल हुनका 'पाग' पहिराबय छथि। कवि कोकील श्री विद्यापति सँ ल के आजुक महानुभाव केर बीच सम्मानक रूप मे प्रचलित 'पाग' के अपन विशिष्ट महत्ता अछि।
ओना त शास्त्र मे एहन कुनो विशेष समय के उल्लेख नय भेटय अछि जे कहल जाय जे फलां समय मे फलां व्यक्ति एकर शुरूआत केलैथ। मुदा अतेक जरूर कहल जा सकैत अछि जे समय के बदलैत चक्र के संगे पागक वर्तमान स्वरूप हमरा सबक सोंझा आयल।

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आजुक पाग बीसवीं सदी के उत्तरार्ध केर देन अछि, जेकरा कुलाचार और लोकाचारक संगे फैशनक रूप मे सेहो अंगीकार क लेल गेल।भले ही चित्रकार अपन कल्पना केर आधार पर कवि कोकिल विद्यापति केर माथ पर एही पाग के देखेने हेथिन।
मिथिला संस्कृति मे गर्भाधान सँ ल के श्राद्घकर्म धरि सोलह संस्कार के समायोजित कैल गेल अछि। एही संस्कार मे सर्वप्रथम उपनयन संस्कार और ओकर बाद विवाह संस्कार मे पाग केर प्रचलन अछि। पाहिले साठा पाग'क चलन छल, जेकरा अमूमन साइठ हाथक कपड़ा सँ बनायल जाइत छल और एकरा पहिरय वाला स्वयं एकरा अपन माथ पर बांधय छलैथ। मुदा समय बदलल और लोगक सोच सेहो, से पाग अपन प्रारंभिक अवस्था सँ आधुनिक अवस्था मे पहुंच चुकल अछि। मुदा अतेक त जरूर कहल जा सकैत अछि जे पाग आयो भी हमरा सबक संस्कृति के पहचान अछि।
पहिले कोढि़ला सँ पाग बनय छल, मुदा आब ओ उपलब्ध नय भ पेबाक कारण बत्तीस औंसक कूट सँ पाग'क ढ़ांचा तैयार कैल जाइत अछि, फेर मलमल या सूती कपड़ा सँ ओकरा छाड़ल सजायल जाइत अछि। पाग के उपरी भाग के चनवा कहल जाइत अछि जाहि पर तिकोना कूट लगायल जाइत अछि, जेकरा त्रिफला कहल जाइत अछि। पाग के आगु भाग के आगूक चूनन ओकर नीच्चा मुड़ल भाग के पेशानी आ पाछु के हिस्सा के पिछुआ कहल जाइत अछि।

मिथिला मे मांगलिक, संस्कृति आ धार्मिक परियोजनक अनुसार अलग - अलग रंगक पाग पहिरबाक परम्परा सेहो अछि, जेना उपनयन संस्कारक अवसर पर पियर पाग, शादी बियाहक शुभ अवसर पर ललका पाग, कुनो तरहक धार्मिक परियोजनक अवसर पर उज्जर रंगक पाग पहिरल जाइत अछि।