रविवार, 23 सितंबर 2018

कवि राजकमल चौधरी के सम्पूर्ण जीवनी - Poet Rajkamal Choudhary Biography

राजकमल चौधरी एकटा प्रसिद्ध कवि, लेखक, उपन्यासकार, आलोचक आ विचारक छलथि। साहित्य मे ‘हटी क’ सोचनिहार प्रयोगकर्मी राजकमल केर वास्तविक नाम मनीन्द्र नारायण चौधरी छलनि। मुदा स्नेह सँ लोग हुनका फूलबाबू कही क बजबैत छलनि। मधेपुरा जिला मे मुरलीगंज'क पास रामपुर हवेली नामक गाँव मे जन्मल (१९२९) राजकमल जी केर बचपन बहुते सामान्य नै रहल छलनि, हुनकर शुरूआती बचपन अपन पैतृक गाँव महिषी मे बितलनी, बाद मे ओ अपन पिता केर संग नवादा, बाढ़ और जयनगर सेहो गेलथि जेतय हुनक पिता नौकरी करैत छलथि।

शिक्षा:-
राजकमल जी १९४७ मे नवादा उच्च विद्यालय, बिहार से मैट्रिकुलेशन जे परीक्षा पास केलनि। तदुपरांत पटना के बी. एन. कॉलेज के इंटरमीडिएट (कला) मे ओ दाखिला लेलनि। ओ बी. एन. कॉलेज के छात्रावास मे किछू दिन रहलैथ जतय ओ साहित्य आ चित्रकला दिस उन्मुख भेलैथ। राजकमल जी मित्र सबक बीच बहुते लोकप्रिय छलथि आ बहुते शीघ्रता सँ दोस्त बना लै छलथि। एहिठाम शोभना नाम के एकटा छात्रा सँ हुनक परिचय भेलनि जिनका दिस ओ आकर्षित भ गेलथि। ताहि बीच शोभना के पिताक स्थानांतरण भागलपुर भ गेलनि जतय ओ अपन पिता संगे चैल गेली।शोभना के नजदीक रहबाक लेल राजकमल सेहो भागलपुर चैल गेलथि जतय १९४८ मे ओ मारवारी कॉलेज मे इंटरमीडिएट (वाणिज्य) मे दाखिला लेलैथ। कुनो तात्कालिक व्यवधानक कारण राजकमल भागलपुर मे अपन पढ़ाई पूरा नै क पेला और गया जा क गया कॉलेज मे दाखिला लेलैथ।

निजी जीवन:-
१९५१ मे हुनकर बियाह चानपुरा, दरभंगा के शशिकांता सँ भेलनि जे की सौराठ सभा'क माध्यम सँ भेल छल। ई बियाह राजकमल पारिवारिक दबाव मे केने छलथि। १९५६ मे ओ मसूरी के सावित्री शर्मा सँ दोसर बियाह अपन प्रथम बियाह मे रहिते भेल छलनि। मुदा राजकमल सँ हिनक बियाह एको वर्ष नै चैल पेलनी। मसूरी मे रहिते ओ संतोष नामक एकटा और महिला सँ लगाव भ गेल छलनि। अहि सबंधक बावजूद राजकमल केर लगाव हुनक प्रथम पत्नी शशिकांता सँ रहलनि। हुनक कहानी जीभ पर बूटों के निशान के पात्र शशि शायद हुनक पत्नी के रूपित करैत छनि।


स्नातक केलाक उपरांत ओ पटना सचिवालय मे शिक्षा विभाग मे नौकरी के संगे-संग अपन लेखनी के शुरुआत अपन मातृभाषा मैथिली सँ क देलथि। ओ हिंदी, मैथिली आ बांग्ला भाषा मे अनेको रचना लिखलनि। ‘अपराजिता' सँ अपन लेखन यात्रा शुरू केनिहार राजकमल जी कहानिक माध्यम सँ ग्रामीण समाज मे पसरल रुढ़िवादी ढाँचा पर गंहीर प्रहार केलनि। ओ मैथिलि कविता संग्रह ‘स्वरगंधा’  समेत लगभग १०० कविता,  ३७ कहानि और कतेको एकांकी आ आलोचनात्मक लेख लिखलथि। हुनक सबसँ चर्चित रचना मे सँ एकटा मैथिली कहानिक प्रथम संग्रह ‘ललकापाग’ जाहि पर एकटा मैथिली फिल्म सेहो बनि चुकल अछि।

उपन्यास : आदिकथा, पाथर फूल, आंदोलन, चम्पाकली’ , एकटा  विषधर, बेमेल विवाह (मैथिली), मछली मरी हुई, देहगाथा, नदी बहती थी, शहर था शहर नहीं था, अग्निस्नान, बीस रानियों के बाइस्कोप, ताश के पत्तों का शहर (हिंदी), कविता संग्रह : स्वरगंधा, कविता राजकमलक, ललका पाग, निर्मोही बालम हमर (मैथिली), विचित्रा, इस अकालबेला मे, कंकावती, कहानी संग्रह : एकटा चंपाकली एकटा विषधर, एक अनार एक रोगाह (मैथिली), सामुद्रिक और अन्य कहानि, मछलीजाल (हिंदी) मैथिली मे ओ करीब १०० टा कविता, तीन टा उपन्यास, ३७ टा कहानि, तीन एकांकी आ चाइर आलोचनात्मक निबंध लिखलथि। हुनक वृहत साहित्यिक लेखनक अधिकांश हिस्सा हुनकर जीवनकाल मे अप्रकाशित रहलनी। हुनक मृत्यु के लगभग दस महीनाक उपरांत बी आई टी सिन्दरी स्थित मित्र सब हुनक मैथिली कहानि'क प्रथम संग्रह ललका पाग के प्रकाशन केलनि। ओकर पश्चात निर्मोही बालम हमर और एक अनार एक रोगाह के प्रकाशन भेल। १९८० मे मैथिली अकादेमी कृति राजकमलक के प्रकाशन केलक। तदुपरांत १९८३ मे तारानंद वियोगी केर संपादन मे एकटा चम्पाकली, एकटा विषधर के प्रकाशन भेल। हुनक कहानी एकटा चम्पाकली एकटा विषधर मे मिथिला मे व्याप्त बेमेल पुनर्विवाह पर गंहीर चोट अछि।
अपन लेखनी के माध्यम सँ ओ स्त्रि केर शोषणक विरोध केने छथि जे ओहि दौर के लिहाज सँ हुनका सबसँ परिस्कृत सोच बला लेखक बनाबय छैथ।

चान सन सज्जित धरा पर
कय रहल प्रियतमा अभिनय
बूड़ि भोर मन टुभुकी उठले
अहीं सं हम करब परिणय



मंगलवार, 18 सितंबर 2018

उदासी - मैथिली लोकगीत

१. जौं हम जनितहुँ हे सखि - Maithili Lokgeet

जौं हम जनितहुँ हे सखि कृष्ण चलि जयता
सबेरे बिहाने घरबा जयतहुँ हो लाल
जौं हम जनितहुँ कृष्ण रूसि जयता
से पलंगे पर सप्पत खुअबितहुँ हो लाल
एक मोन होइए कृष्ण संगे जइतहुँ
कुलबा मे दगबा लगै छै हो लाल
जौं हम जनितहुँ कृष्ण रूसि जयता
दोसरे प्रीति लगाय रोकितौं हो लाल
घोड़बा चढ़ल आबथि कृष्ण जी पहुनमा
चम चम चमके चदरिया हो लाल
धैरज धरू गोपी से कृष्ण चलि एता
सांझ बिहाने घरबा मे जायब हो लाल

२. माधव चलल मधइयापुर - Maithili Lokgeet

माधव चलल मधइयापुर हे नगरी
तेजि गेल सकल समाज
के मोरा वृन्दावन मे गइया हे चरेतै
के मुख मुरली बजाइ
के मोरा जमुना मे हैत घटबरबा
के मोरा उतारत पार
बाबा मोरा वृन्दावन मे गइआ हे चरेता
भइया मोरा मुरली बजाइ
देओरा मोरा जमुना तट मे हैत घटबरबा
स्वामी लगाओत पार
जौं हम जनितहुँ माधव तेजि जयता
बान्हितहुँ रेशमक डोरि
रेशमक डोरि टुटिये फाटि जयतै
बान्हितहुँ अंचरा लगाय
अंचरा के फाड़ि-फाड़ि कागज बनेलहुँ
नयना के काजर सँ मोसि
चारू कात लिखलहुँ कुशल क्षेम
बीच मे धनि के विरोग

३. एते दिन भमर हमर - Maithili Lokgeet

एते दिन भमर हमर छल सखि हे,
आजु गेल विदेश
मधुपुर भमरा लोभाए गेल सखि हे,
मोरा किछु कहियो ने गेल
भूखल अन्न ने खायल सखि हे,
प्यासल पीब ने पानि
कतेक जनम सँ बोधल सखि हे,
तइयो बसु ओतहि प्राण
श्रीखंड जौं शीतल भेल सखि हे,
शीतल आब नब रीत
चक्रपाणि कवि गाओल सखि हे,
पुरुषक कोन परतीत

४. कथी लय प्रीत लगेलें रे - Maithili Lokgeet

कथी लय प्रीत लगेलें रे जोगिया,
प्रीत लगेने चल जाय
तोरा हाथक पान सपन भेल रे जोगिया,
तोरा बिनु रहलो ने जाय
आंगन तोरा बिनु बिजुवन रे जोगिया,
घर लागय सुन्न-अन्हार
आरे सूतक पलंग विषम भेल रे जोगिया,
निन्दिया मोहि ने सोहाय
भनहि विद्यापति सुनू हे सखि सभ,
हुनि बिनु रहलो ने जाय

५. काँच ईंटाक महल उठाओल - Maithili Lokgeet

तोहर दरस मुख छूटत सखि हे, जखन जायब हम गाम
तखन मदन जीव लहरत सखि हे, कि देखि करब ज्ञान
बिसरि देत नहि बिसरत सखि हे, तुअ मुख पंकज प्राणे
विरह विकल तन फलकत सखि हे, छन-छन झूर झमाने
जौं हम जनितौं एहन सन सखि हे, हरि हेता आन समान
कथी लेल नेह लगाओल सखि हे, आब ने बचत मोर प्राण
भनहि विद्यापति गाओल सखि हे, धैरज धरू ब्रजनारि
सब सँ धैरज यैह थिक सखि हे, पलटि आओत दिन चारि

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६. जखन सिया जी तेजि मिथिला - Maithili Lokgeet

जखन सिया जी तेजि मिथिला सँ चलली, हे की कहिअ बहिन
मिथिला खसल मुरझाय, हे की कहिअ बहिना
नयन सँ झहरनि नोर, हे की कहिअ बहिना
कनथिन सुनैना रानी तोता आर मयना, हे कि कहिअ बहिना
कहलो ने जाइ अछि सिया केर सुरतिया, हे कि कहिअ बहिना
आब सिया जेती बिसराय, हे कि कहिअ बहिना
कहथिन पूनम रानी अपनी बचनिया, हे की कहिअ बहिना
फेर सिया औथिन मिथिला धाम, हे कि कहिअ बहिना

७. जखनहि रामचन्द्र चलला - Maithili Lokgeet

जखनहि रामचन्द्र चलला अवध सँ, संग भेल लछुमन भाइ
सगुनक पोथिया उचारू भइया लछुमन, कते दिन लिखल बनवास
कय दिन केर एक रे महिनमा, कय बरस लिखू बनवास
तीसहि दिन केर एक रे महिनमा, बारह बरस लिखू बनवास
एक तऽ बैरिन भेल बीध विधाता, दोसर कैकेयी माय
तेसर बैरिन भेल इहो रे पंडित, तीनू मिलि देल बनवास
भनहि विद्यापति गाओल उदासी, राम के लिखल बनवास
जखनहि रामचन्द्र चलला अवधसँ, सुन्न भेल दशरथ धाम

८. भितिया मे चितिया साटल रघुनन्दन - Maithili Lokgeet

भितिया मे चितिया साटल रघुनन्दन, ताहि मे जे सिनुर-पिठार
जखन जमाय बाबू कोबर सँ बहार भेला, सरहोजि भेलीह उदास
एहनर नन्दोसिया जी के जाइयो नहि दीतहुँ, रखितहुँ पान खोआय
जखन जमाय बाबू भानस घर सँ बहार भेला, सासुजी भेलीह उदास
एहन जमाय के जाहू ने दीतहुँ, रखितौं मिश्री खोआय
जखन जमाय बाबू आंगन संओ बहार भेला, सारि भेलीह उदास
एहन बहिनोइया जी केँ जाइयो ने दीतहुँ, रखितौं मोन लोभाय

९. सिहकि रहल पुरिबा भादव - Maithili Lokgeet

सिहकि रहल पुरिबा भादव मास हे, भादव मास संगी पावस मास हे
एक तऽ हमर संगी पिया परदेशिया, दोसर भादव मास अन्हरिया
खेपि रहल दिन गनैत मास हे, भादव मास संगी पावस मास हे
अरजि गरजि कऽ गीत सुनाओल, कुदि-कुदि दह पर नाच देखाओल
झनकि रहल झींगुर पाबि आकाश रे, भादव मास संगी पावस मास हे
कुचरि रहल अछि कौआ अंगनमा, खनकि रहल अछि हाथ केर कंगनमा
सजलहुँ साज संगी मन दय आस रे, भादव मास संगी पावस मास हे
आओत पाहुन पूरत आस रे, घुरैत दिन संगी फागुन मास रे
जीनगीक गीत संगी आसक भास रे, भादव मास संगी पावस मास हे
भरल अन्हरिया मे छिटकय इजोरिया, सोभै छै दूतिया केर चान
छबे महीना संगी छै संताप रे, भादव मास संगी पावस मास हे
सिहकि रहल पुरिबा भादव मास हे....

१०. गोखुल गमन सँ चलल - Maithili Lokgeet

गोखुल गमन सँ चलल नन्द-नन्दन, गोकुले मे भय गेल साँझ
केओ नहि मोरा लेखे हित बसु सखिया, रखितनि मोहन बिलमाय
कमलक पात तोड़ि कागज बनाओल, नयनाक काजर बनल मोसि
कदमक डारि तोड़ि कमल बनाओल, प्रेम सँ चिठिया लिखाएल
कहथि विद्यापति सुनू हे सखिया, फेरो आयब एहिठाम

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११. शबरीक द्वार सँ चलल - Maithili Lokgeet

शबरीक द्वार सँ चलल रघुनन्दन, शबरी खसल मुरछाइ
कल जोड़ि मिनती करै छी रघुनन्दन, नैना सँ झहरय नोर
अनघन भूषण वसन नहि हमरा, किए लय करब बिदाइ
एहन चरण राजा कहाँ हम पायब, राखब हृदय लगाय
भनहि विद्यापति सुनू हे रमापति, लीखल मेटल नहि जाय

१२. जखन रघुबर संग सिया - Maithili Lokgeet

जखन रघुबर संग सिया वन चलली, मोने मोन करथि विचार
केहन करम मोरा लिखल विधाता, चौदह बरख बनवास
धीरे-धीरे चलिअउ देओर यौ लछुमन, पयर मोर अधिक पिराय
किये हम बिगारलहुँ हे माता कैकेयी, देल तरुणी वयस बनवास
भनहि विद्यापति सुनू सिया सुन्दरि, विधि लीखल मेटल ने जाय

१३. घूरि घूरि घूरि तकिऔ - Maithili Lokgeet

घूरि घूरि घूरि तकिऔ, बात एक सुनिऔ यौ निरमोही दुलहा
धरू किछु हिया मे विार यौ निरमोही दुलहा
जहिया सँ एलहुँ दुलहा सभकेँ लोभएलहुँ यौ निरमोही दुलहा
जोड़िकऽ एतेक प्रेम तोड़ि आइ जाइ छी यौ निरमोही दुलहा
सब के कनाय कयल लचार यौ निरमोही दुलहा
एहन पतित हिया नहि छल ककरो यौ निरमोही दुलहा
मिथिलाक यैह बेबहार यौ निरमोही दुलहा

१४. कृष्ण ओ कृष्ण कहि ककरा - Maithili Lokgeet

कृष्ण ओ कृष्ण कहि ककरा पुकारब, करब आंगन बिच सोर
मधुर वचन मोरा केये सुनाओत, दही माखन घृत घोर
सूतल छलहुँ एकहि पलंग पर, निन्दिया मे गेलहुँ सपनाइ
निन्दिया मे देखै छलहुँ कृष्ण के, मुरली बसुरिया चलि जाय
मुरली सबद सुनि हिया मोर सालय, नयना सँ झहरय नोर
भनहि विद्यापति सुनू हे राधिका, घर घुरि आओत पिय तोर

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१५. जौं सिया जानकी चलल - Maithili Lokgeet

जौं सिया जानकी चलल वन रहना, कानल राम लखन सहित
आरे घुरि जइऔ फिरि जइऔ देओर लछुमन, मोरो संग बिपति बहुत
नहि हम घुरबइ रामा नहि हम फिरबइ, अहूँ संग देब दिवस गमाय
आरे मुठीएक सरिसो खोंइछा बान्हि लेलनि, छीटैत छीटैत वन जाय
गोर लागू पइयाँ पडू धरती माता, जल्दी सँ फाटू हम समाय
एही बाटे जयता श्री राम लछुमन, सरिसो सुररिते घर जाय

रविवार, 16 सितंबर 2018

मैथिली किस्सा : गोनू झा के खेत पटौनी

गोनू झा खेती-पथारी सँ कम्मे मतलब राखथि। अधिकांश समय राज दरबार मे बीतैन। तथापि जे किछु पुरखा लोकनिक छोड़ल खेत रहनि ताहि पर खेती-बाड़ी करथि। ओहो खेत सभ अल्पे मात्रा मे रहनि आ जे रहैन से प्राय: घरे लग रहैन। एकबेर किछु गोटाक कहला पर ओ घर लगहक खेत मे गहूम बाग कऽ देलनि। बाग करबाक समय मे हाल रहैक आ तें जल्दीये गहूमक खेत भरि गेलैक। तथापि जेना कि अपेक्षित छल किछु मासक बाद एकरा पटायब जरुरी भऽ गेलैक। तथापि लग मे पटेबाक एक मात्र साधन हुनक इनार रहनि। ओ गाम मे जोनक वास्ते घूमय लगलाह जे कियो उचित बोनि लऽ कऽ हमर गहूम पटा देत। मुदा जखने कियो इनार सँ पानि घीचि के पटेबाक बात सुनै तँ ओ मना कऽ दैन। आब गोनू पड़लाह बेस फेर मे। पटौनीक बिना गहूमक पौध सभ मुरझाय लगलैक।

एमहर चोर सभ गोनू सँ अपन बेर-बेर ठकेबाक बदला लेबाक एहो योजना बनेलल । जहिना एकबेर गोनू चोर सभ कें छका अपन खेत तैयार करबेने रहथि किछु तेहने सन जोगारक फिराक मे गोनू रहय लगलाह । एमहर चोरो सभ फिराक मे रहय जे कोनो ने कोनो प्रकारे एक बेर गोनूक घर मे चोरि करबाक मौका लागय । ओना धन प्राप्ति आश तँ रहबे करैक, सभ सँ बेसी चिन्ता रहैक गोनू सँ बेर-बेर भेल अपमानक बदला लेनाई ।

एहि बीच राज दरबार मे काजक अधिकताक कारणें गोनू कें घर अयबा मे कनेक अबेर भऽ जाईन । चोरो सभ ताहि मध्य अपन प्रोग्राम बनेलक । चूँकि ओ सभ राति आ सांझ मे जा कऽ छका चुकल छल आ तें एकटा अनुभवी चोर अभ्यागतक रूप मे सांझे गोनूक द्वारि पर पहुँच गेल । संजोग सँ गोनू ओहि दिन सबेरे घर आबि गेल रहथि । ओ चोर कोनो बाबाक रूप लेलक आ राति भरि गोनू कें अपना ओहिठाम ठहरय देबाक आग्रह केलक । ताहि समय मे अभ्यागतक आव-भगत होईत छल आ तें गोनू बाबाक आव-भगत मे लागि गेलाह । आँगन मे बाबाक आगमनक सूचना दऽ देल गेल । बाबा आ गोनू दुनू गोटे बैसि गेलाह नाना तरहक गप्प करय लेल ।

शनै:-शनै: गप्पक मुद्दा चोरीक समस्या पर आबि गेल जे आब केहेन जमाना आबि गेल अछि आ चोर सभक कारनामाक अणगिनत खिस्सा सभ बाबा गोनू कें सुनबय लगलाह । संगहि बाबा गप्पक क्रम मे गोनू द्वारा चोरि सँ बचबाक लेल कयल गेल इंतजामक विषय मे सेहो जानय चाहलनि । सतर्क गोनू कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलनि जे ई कोनो बाबा नहि वरन्‌ साक्षात्‌ चोरे महोदय छथि । गोनू तँ एकरे ताक मे रहथि जे चोर सभ कें छका कोना गहूमक पटौनी कराओल जाय । संजोग सँ मौका सामने रहनि ।

गप्पक सिलसिला कें दोसर दिस मोड़ैत गोनू बाबा सँ सम्पत्ति आदिक सुरक्षाक की इंतजाम कयल जाय तकर जिज्ञासा केलनि आ संगहि प्रकट रूप सँ कहलनि जे हमरा घर मे सोना-चांदीक सिक्काक अंबार अछि, कारण रोज-रोज दरबार सँ भेटिते रहैत अछि । ताहि पर बाबा सलाह देलनि जे सोना-चाँदी आदि के बिनु ताला लगेने राखक चाही, कारण चोरक ध्यान पहिने ताला लागल सामान पर जाइत छैक । बाबाक मूँह सँ चोर सभक गप्प सूनि गोनू बेस चिंतित भेलाह आ भोजन सँ पहिने एकरा सुरक्षित स्थान पर रहबाक गप्प कहि ओ आँगन चलि गेलाह । आँगन मे जाईतहि ओ घर मे उपलब्ध दू-चारि टा सिक्का के बेर-बेर खनखनाय के गनलनि आ पुन: एकटा मोटरी मे झूटमूठ किछु बान्हि बाहर अयलाह आ ढ़प्प दऽ मोटरी घर लगहक इनार मे खसा देलनि ।

बाबा जिज्ञासा केलनि जे अपने ई की कयल? गोनू उत्तर देलनि जे जहन सँ अहाँ मूँह सँ चोर सभक खिस्सा सभ सुनलौं हम तँ आतंकित भऽ गेलौं । अपन सभटा सोना-चांदीक सिक्का मोटरी मे बान्हि एहि इनार मे खसा देलियैक आ आब निश्चिंत सँ सूतब । ने घर मे किछु रहत आ ने चोर लऽ जायत । चोर के की पता जे सभटा कीमती सामान एहि इनार मे अछि । ई कहैत गोनू झा अपन चेहरा पर बेस खुशीक भाव प्रकट केलनि आ संगहि बाबा कें उचित सलाह देबाक लेल धन्यवाद सेहो देलनि ।

ता भोजनक समय भेल । बाबाक संग गोनू भोजन केलनि आ चल गेलाह सूतय । एमहर बाबा दलान पर सूतलाह आ निशाभाग राति होईत देरी अपन संगी सभ के इशारा सँ बजाय सभटा गप्प कहि देलनि । फेर की छल । सभ चोर मीलि कें लागल इनार कें उपछय । शनै:-शनै: हुनक गहूमक खेत पाटय लगलनि । जहन इनार पूरा सुखा गेलैक तँ चोर सभ कें मोटरी भेटि गेलैक । ओ सभ यत्न सँ मोटरी कें निकालि लत्ते-पत्ते ओतय सँ पड़ा गेल । मोटरी निकलैत-निकलैत गोनूक खेत नीक जेना पाटि गेलनि ।

ओमहर चोर सभ अपन घर पहुँचल आ सभ मीलि कें मोटरी के खोललक । परन्तु ई की? एहि मे तँ एकोटा सिक्का नहि छल । चोर सभ फेर गोनूक हाथ सँ छका चुकल छल । ओ सभ अपन माथ पीटि कें रहि गेल । परन्तु आब पछतेला सँ की हो? समय हाथ सँ निकलि चुकल छल । भोर भऽ चुकल छल । एमहर राता-राती गोनूक गहूमक खेत पाटि जेबाक खबरि भोर होइत सौंसे गाम मे पसरि गेल । लोक कें ई बुझबा मे भांगठ नहि रहलैक जे गोनू कोना अपन खेत चोरबा सभ सँ पटबा लेलनि । पहिनहुँ तँ कयक बेर छकेने छ्लाह चोर कें गोनू झा ।





रविवार, 9 सितंबर 2018

चौठ चंद्र, चौरचन अथवा चौठी चान के महत्व

मिथिलाक पावनि में चौरचनक सेहो बहुत पैघ महत्व अछि। पबनौतिन सब व्रत राखि नियम निष्ठा स खीर पूरी पकवान आदि बना क नाना प्रकारक ऋतुफल डाली में सजा क आँगन निपि अरिपन दय पहिल साँझ में चन्द्रमाक विधिवत पूजन क तखन हाथ उठबैत छथि। तकर बाद परिजन लोकनि फल लय चन्द्रमाके प्रणाम् करैत छथि तकर बादे प्रसाद ग्रहण कायल जाइछ । एहि में ब्राह्मण भोजन के सेहो बहुत महत्व अछि ।
भादव मासक शुक्ल पक्षक चतुर्थी (चौठ) तिथिमे साँझखन चौठचन्द्रक पूजा होइत अछि ,जकरा लोक चौरचन पाबनि सेहो कहै छथि। पुराणमे प्रसिद्ध अछि, जे चन्द्रमा के अहि दिन कलंक लागल छलनि, ताहि कारण अहि समयमे चन्द्रमाक दर्शन के मनाही छैक। मान्यता अछि, जे एहि समयक चन्द्रमाक दर्शन करबापर  कलंक लगैत अछि। मिथिला में अकर निवारण हेतु रोहिणी सहित चतुर्थी चन्द्रक पूजा कायल जाइत अछि !

स्कन्द पुराण के अनुसार एक बेर भगवान कृष्ण के मिथ्या कलंक लागल छल,लेकिन ओ अहि वाक्य सअ  कलंक मुक्त भेलाह !



एक टा अन्य कथा के अनुसार , एक बेर गणेश भगवान के देखि चन्द्रमा हँसि देलखिन्ह । एहिपर गणेशजी  चन्द्रमा के श्राप देलखिन्ह कि, जे अहाँ के देखत ओ कलंकित होयत। तखन चन्द्रमा भादव शुक्ल चतुर्थीमे गणेशक पूजा केलनि। ओ प्रसन्न भऽ कहलखिन्ह - अहाँ निष्पाप छी। जे व्यक्ति भादव शुक्ल चतुर्थी के अहाँक  पूजा कऽ ‘सिंह प्रसेन...’ मन्त्रसँ अहाँक दर्शन करत ,तकरा मिथ्या कलंक नञि लगतै,आ ओकर सभ मनोरथ पुरतै। चन्द्रमा के दर्शन के समय हाथ में फल अवश्य राखी और मंत्र के साथ दर्शन करी !मिथिलाक अन्य पाबनि जकाँ अहु में खीर ,पूरी ,मधुर ,ठकुआ ,पिरूकिया, मालपुआ,दही आदि के व्यवस्था रहैत अछि !

Tags : # Chaurchan # Chaut Chandr # Chauthi Chan



मंगलवार, 4 सितंबर 2018

पद्मश्री सँ सम्मानित मिथिला चित्रकला के गुरु गोदावरी दत्त

मिथिला धरोहर : १९३० मे दरभंगा के बहादुरपुर गांव मे जन्मलि गोदावरी दत्त बच्चे सँ मिथिला कला मे रूचि लेबय लागल छलथि। अपन माँ सुभद्रा देवी केर आधा बनल चित्र मे नुका क रंग भरनाई शुरू क देने छलथि फेर माँ प्रशिक्षण देलनि। ओहि के बाद अपन पूरा समय कला के समर्पित क देलथि। एखन रांटी मधुबनी मे रहयवाली मिथिला सहित पूरा बिहारक गौरव गोदावरी दत्त मिथिला पेंटिंग ( Mithila Painting Artist Godawari Dutt ) के महादेवी वर्मा कहल जाइत छथि। मिथिला चित्र कला के देश-विदेश मे पहुंचेबा मे हिनको अहम योगदान रहल छनि।

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गोदावरी दत्त चारीम कलाकर छथि जिनका मिथिला पेंटिंग लेल पद्मश्री सम्मान सं सम्मानित कैल गेल छनि। हिनका राष्ट्रीय पुरस्कारक अलावा शिल्पगुरु पुरस्कार सेहो भेट चुकल छनि। कचनी शैली के श्रेष्ठ कलाकार मे सँ एक मानल जाइत छथि। अधिकतर इ पौराणिक कथा और धार्मिक विषये पर चित्रण केने छथि आ अपन चित्रक बैकग्राउंड के खास ध्यान राखय छथि। किछुए मास पहिने महादेवी वर्मा बिहार म्यूजियम मे एकटा बड़का पेंटिंग उकेर क खूब बाराइ कमेने छलथि। हिनकर पेंटिंग जापान के मिथिला म्यूजियम मे सेहो प्रदर्शित कैल गेल छनि।

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हिनक तीनटा चित्र विशेष क याद कैल जायत त्रिशूल, धनुष और डमरू जाहिमे ओ अपन असीम कल्पनाशीलता के परिचय देने छथि गोदावरी दत्त केर सपना छनि जे भारत मे सेहो जापान सन मिथिला कला के कुनो म्यूजियम बनय।