पांहुन-परक के पसिन इ खाना
बनल अछि एहि पे मैथिली गाना
'चुरा-दही' संगे लोंगीया मिर्चाइ
सगरो मिथिला एकर दीवाना।
बिदागरी के सनेश इ पूरी
देखिते नै अहाँ राखव दूरी
एकरा मे भरल दाईल-मसल्ला
नाम एकर छै 'दाइल पूरी'।
सुज्जि - चिन्नी, मेदा सानल
गरम तेल मे जायत इ छानल
नाम एकर ऐछ 'पिरुकिया'
एकरा बिनु नै कुनो पाबैन मनल।
पुच - पुच करै छै इ पकवान
अपना पर छै एकरा गुमान
नाम एकर अछि 'मालपुआ'
पाबैन - तिहारक इ मेहमान।
सगरो मिथिला एकरे सोर
भेटय गाँव मे चारु ओर
पिठार संग छानल जाइत इ
नाम एकर अछि 'तिलकोर'।
घाईट के कनि गीलगर क सैन
गरम तेल मे लिअ एकरा छैन
नाम एकर अछि 'बड़ी'
देखिते मुंह सँ टपके पैइन।
मेला मे कीनब झिल्ली-कचरी
खोलू बाबा पैसा के गेठरी
और खेबय बदसाहि, खाजा
यैह पकवान मिथिला के राजा।
इचना, पोठी, कबैह के झोर
अहि पकवानक नै छै तोर
'मांछ - भातक' बात नै पुछु
ताहि लेल भुल्ला कनठी तोर।
----✒️ प्रभाकर मिश्रा 'ढुन्नी'----
Tags : # Maithili Kavita, Maithili Poem
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