गुरुवार, 17 अगस्त 2017

मैथिली कविता : मिथिलाक पकवान

पांहुन-परक के पसिन इ खाना
बनल अछि एहि पे मैथिली गाना
'चुरा-दही' संगे लोंगीया मिर्चाइ
सगरो मिथिला एकर दीवाना।

बिदागरी के सनेश इ पूरी
देखिते नै अहाँ राखव दूरी
एकरा मे भरल दाईल-मसल्ला
नाम एकर छै 'दाइल पूरी'।

सुज्जि - चिन्नी, मेदा सानल
गरम तेल मे जायत इ छानल
नाम एकर ऐछ  'पिरुकिया'
एकरा बिनु नै कुनो पाबैन मनल।

पुच - पुच करै छै इ पकवान
अपना पर छै  एकरा  गुमान
नाम एकर अछि 'मालपुआ'
पाबैन - तिहारक इ मेहमान।

सगरो मिथिला एकरे सोर
भेटय  गाँव  मे  चारु  ओर
पिठार संग छानल जाइत इ
नाम एकर अछि  'तिलकोर'।

घाईट के कनि गीलगर क सैन
गरम तेल मे लिअ एकरा छैन
नाम एकर अछि 'बड़ी'
देखिते मुंह सँ टपके पैइन।

मेला मे कीनब झिल्ली-कचरी
खोलू बाबा पैसा के गेठरी
और खेबय बदसाहि, खाजा
यैह पकवान मिथिला के राजा।

इचना, पोठी, कबैह के झोर
अहि पकवानक नै  छै  तोर
'मांछ - भातक' बात नै  पुछु
ताहि लेल भुल्ला कनठी तोर।
----✒️ प्रभाकर मिश्रा 'ढुन्नी'----


Tags : # Maithili Kavita, Maithili Poem

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