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शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

माता सीता केर समर्पित ‘जानकी मंदिर’ जनकपुर, नेपाल

मिथिला धरोहर : नेपाल'क शहर जनकपुर विदेह राजा जनक के नगरी छलनि। एतय माँ जानकी केर विशाल मंदिर (  Janakpur Dham, Janakpur Mandir ) अछि। जनकपुर प्राचीन मिथिला राज्यक राजधानी छल। इ ओ पवित्र स्थान अछि, जाहिके धर्मग्रंथ, काव्य आ रामायण मे उत्कृष्ट वर्णन अछि। एतय स्थित जानकी मंदिर देवी सीता केर समर्पित अछि। एहि मंदिर के नौलखा मंदिरके नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि।
सीता माता केर समर्पित जानकी मंदिर जनकपुर बाजारक उत्तर-पश्चिम मे स्थित अछि। वर्तमान जानकी मंदिरक निर्माण टीकमगढ़ के महारानी वृषभानु कुंअरि जी द्वारा १९६७ मे कैल गेल छल। मंदिर दूर सँ देखबा मे कुनो महल सन लागैत अछि। मंदिर के मुख्य गर्भगृह मे माता जानकी, राजा रामचंद्र और लक्ष्मण जी केर प्रतिमा छनि। मंदिर के बाहर विशाल प्रांगण अछि।

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झांकि मे सजल राम जन्म सँ जुड़ल कथा
मंदिरक अंदर २०१२ मे एकटा सुंदर गैलरी के निर्माण भेल, अहिमे राम जी केर जन्म सँ जुड़ल कथा झांकिक रूप मे देखल जा सकैत अछि। झांकिक संगे एतय मिथिला पेंटिंग के सुंदर संकलन अछि, जाहिमे रामकथाक कतेको प्रसंग अछि। झांकी मे माता सीता केर कैल जाय बला शृंगारक सामान सेहो देखल जा सकैत अछि। जनकपुर आबय बला श्रद्धालु मिथिला परिक्रमा सेहो करैत छथि, जाहिमे सीताजी सँ जुड़ल सब तीर्थ स्थल आबैत अछि। कहल जाइत अछि जे जनकपुर मे वैशाख शुक्ल नवमी के माँ जानकी केर अवतार भेल छलनि। अहि अवसर के जानकी नवमी के रूप मे मनायल जाइत अछि। जनकपुरक दोसर प्रमुख त्योहार विवाह पंचमी अछि। अहि दिन सीता जी के भगवान रामचंद्र जी सँ विवाह भेल छलनि। ओहि दिन इ मंदिर खूब सजायल जाइत अछि।
कोना पहुंचब जनकपुर
सीतामढ़ी सँ करीब ४१ कि० मी० उत्तर मे नेपालक तराई मे जनकपुर स्थित अछि। एतय पहुंचबाक सुगम रास्ता सीतामढ़ी शहर सँ अछि। सीतामढ़ी तक अहाँ रेलगाड़ी सँ पहुंच सकै छी। ओतय सँ बस द्वारा नेपालक सीमांत बाजार भिमोड़ और ओतय सँ बस द्वारा जनकपुर पहुंचल जा सकैत अछि। जनकपुर सँ नेपालक राजधानी काठमांडू के बस'क सफर १० घंटाक अछि।

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रविवार, 7 नवंबर 2021

समस्तीपुर मे अछि महाभारतकालीन पांडव स्थान

समस्तीपुर जिलाक दलसिंहसराय अनुमंडल के पांड स्थित पांडव डीह ( Pandav sthan ) के महाभारत कालीन दंतकथा सं जुड़ल हेबाक सगे-संग किछ वर्ष पूर्व आठम बेरा भेल पुरातात्विक उत्खनन सं कुषाणकालीन सभ्यता सं जुड़ल हेबाक सेहो प्रमाण भेटल अछि। इ संपूर्ण क्षेत्र तीनटा सांस्कृतिक चरण मे बांटल अछि। जेना 2000 ई. पूर्व ताम्रपाषाण काल, 300 ई. पूर्व उतरी काल पालिषदार मृदभाण्ड आ 100 ई. पूर्व कुषाणकाल।

छवि साभार - अदिति नंदन from artzindia.com
वर्ष 2002 मे शोधकर्ता के अधीन कैल गेल खोदाइ सं भेटल अवशेष, मानक, स्फटिक, माट्टीक बर्तन, हड्डि तथा हाथीक दांत सं बनल पाषाण इत्यादि कुषाणकालीन सभ्यता-संस्कृति के उजागर केने छल। ओहि समय एकर इतिहास ईसा सं 7वीं या 8वीं शताब्दी पूर्व शुरू हेबाक पुष्टि कैल गेल छल।

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छवि साभार - abp live
ओतय डीह सं लगभग 1.5 किमी. दूर चौर मे दीवार भेटल छल जे 45 से.मी सं ल के 1 मीटर चौड़गर छल। एकटा मृदमाण्ड के टुकड़ा पर ब्राम्ही लिपि के अभिलेख पढ़लाक बाद शासक आ शासन पद्धति के विस्तृत जानकारी प्राप्त भेल छल। एखन धरि भेल खोदाइ सं अहि स्थल के साढ़े तीन सं चाइर हजार वर्ष पुरान ताम्रपाषाण कालीन सभ्यता आ संस्कृति के राष्ट्रीय स्तर पर चिन्हित कैल गेल छल। 

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● परिचय : मैत्रेयी मिथिला के विदुषी


पांडव स्थान के खुदाइ जखन 24 फीट गहिर तक कैल गेल त 15 स्तंभ के सेहो पता चलल छल, जाहिमे सबसं निचला स्तर पर कारी मृदन, कटोरा, तसला, कृष्ण लिपत मृदमाण्ड, घड़ा सहित विविध आकार-प्रकारक बर्तन के भेटला सं पता चलैत ऐछ जे ओहि काल मे भोजन पद्धति मे तरल पदार्थ के अधिकता छल। सबसं महत्वपूर्ण चीज मृण्मूर्ति बाग के आकृति भेटला सं एतय नाथ पूजा हेबाक बात सोंझा आबैत ऐछ जे आय धरि एतय प्रचलित अछि,  ओतय टोरी बला जल पात्र आ गौड़ीदार कटोरा प्रमाणित करैत ऐछ जे एतय के लोग शिल्पकारी मे दक्षता प्राप्त छल।

छवि  - K P Jayaswal Institute
एकटा अनुमानक मुताबिक कहल जाइत ऐछ जे वर्षाक न्यूनता के कारण एतय के ताम्र पाषाण संस्कृति के पतन लगभग 1000 ई. पूर्व भ गेल छल। ताम्र पाषाण संस्कृति के संगेह हड़प्पा सभ्यता 1200 ई. पूर्व, वैदिक संस्कृति 1700 ई. पूर्व आ 1500 ई. पूर्व एतय एकटा ग्रामीण आ सप्रांतीय संस्कृति विकसित छल। मानल जाइत ऐछ जे मगध संप्राय के विस्तार बिहार मे मध्य बिहार आ उत्तर बिहारे धरि सीमित छल, मुदा अहि स्थानक खुदाइ मे भेटल मौर्य कालीन अवशेष संकेत दैत अछि जे अगर एतय फेर सं खुदाइ कैल जाय त कतेको आन सभ्यता के परत खुलनाय शुरू भ जायत।

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

दरभंगा स्टेशन पर स्थापित हेरिटेज इंजन नंबर 253 के इतिहास

दरभंगाः ब्रिटिश काल मे दरभंगा महाराज के कारखाना मे बनाओल जाय बला नील सं ल के चिन्नी के देशक कोन-कोन मे पहुंचेबाक संगे गुलामी सं आजादी धरिक दास्तान समारहने 105 साल पुरान वाष्प इंजन के बिहार मे पूर्व-मध्य रेलवे के दरभंगा स्टेशन परिसर मे प्रतीक के रूप मे स्थापित कैल गेल अछि। 

इंजन के इतिहास
अहि वाष्प इंजन नंबर 253 के निर्माण वर्ष 1885 में इंग्लैंड मे शुरू भेल छल। वर्ष 1914 मे पहिल बेरा अहि इंजन के बोगि मे जोइर दरभंगा सं सवारी गाड़ीक रूप मे चलायल गेल छल। बाद मे एकरा लोहट चीनी मिल मे पार्ट टाइम मे चलाबल जाय लागल।

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वर्ष 1975 मे अहि इंजन के पूर्ण रूप सं लोहट चीनी मिल के द देल गेल। चीनी मिल मे 16 मार्च, 1996 धरि अहि इंजन के सेवा लेल गेल। मुदा, मिल मे उत्पादन बंद भेलाक उपरांत इ इंजन सेहो हमेशा के लेल ठंडा भ गेल। अहि इंजन के मधुबनी जिलाक लोहट चीनी मिल सं 22 जुलाई 2018 के दरभंगा आनल गेल छल। 

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सोमवार, 19 अप्रैल 2021

मिथिलाक विक्रमशिला विश्वविद्यालय के खंडहर सं झांकैत इतिहास

सिल्क सिटी के नाम सं मशहूर भागलपुर जिला सं करीब 50 किलोमीटर पूरब मे कहलगांव ल'ग अंतीचक गाम स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय ( Vikramshila University In Bhagalpur ) के खंडहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटक के आकर्षण के केंद्र सेहो अछि। एकरा एकटा प्राचीन राजकीय विश्वविद्यालय के रूप मे सेहो जानल जाइत अछि। अहिसे किछ किलोमीटर उत्तर मे गंगा नदी बहैत अछि। 

सातवीं शताब्दी मे भारत भ्रमण पर आयल मशहूर चीनी यात्री ह्वेन सांग के यात्रा-वृतांत मे विक्रमशिला विश्वविद्यालय के कुनो जिक्र नै भेटय अछि, जे इ बताबय अछि जे ओहि समय धरि महाविहार वजूद मे नै आयल छल। 


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अहि विश्वविद्यालय के स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल आठवीं सदी के अंतिम वर्ष या नौवीं सदी'क शुरुआत मे केने छलथि। करीब चाइर सदि धरि वजूद मे रहलाक उपरांत तेरहवीं सदी के शुरुआत मे इ नष्ट भ गेल छल। एकटा मान्यता इ अछि जे महाविहार के संस्थापक राजा धर्मपाल के भेटल उपाधि 'विक्रमशील' के कारण संभवतः एकर नाम विक्रमशिला पड़ल।

सौ एकड़ सं बेसी भू-भाग मे स्थित अहि विश्वविद्यालय के खुदाईक शुरुआत साइठक दशक मे पटना विश्वविद्यालय द्वारा कैल गेल छल, एकरा  1978 सं 1982 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण  पूरा केलक। विक्रमशिला विश्वविद्यालय मे अध्यात्म, दर्शन, तंत्रविद्या, व्याकरण, तत्त्व-ज्ञान, तर्कशास्त्र आदि के पढ़ाई होइत छल। 

एतय पढ़य आबय बला सब कियो के विश्वविद्यालय के द्वारे पर कठिन प्रवेश परीक्षा सं गुजरय परैत छल। एतय एक संगे करीब एक हज़ार विद्यार्थी पढ़ैत छल आ सौ प्राध्यापक रहैत छल।

अहि विश्वविद्यालय के प्रबंधन द्वारा बिहार के एकटा दोसर मशहूर नालंदा विश्वविद्यालय के काम-काज के सेहो नियंत्रित कैल जाइत छल। दुनु दिसक शिक्षक एक-दोसरक एतय जा क पढ़ाबितो छलैथ। 


गुरुवार, 14 मई 2020

नौ लाख चांदीक सिक्का सं बनल राजनगर के नौलखा पैलेस

मिथिला धरोहर : मधुबनी जिलाक राजनगर (  Madhubani Rajnagar ) मे 17वीं शताब्दी मे बनल एकटा एहन अनोखगर महल अछि जे नौ लाख चांदीक सिक्का सं बैन के तैयार भेल छल।  मिथिलाक अनमोल सांस्कृतिक धरोहर के निर्माण दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह (Maharaja Rameshwar Singh Darbhanga ) द्वारा कैल गेल छलनी। राजा केर इच्छा छलनी जे जे दरभंगा राज हुनकर शासनकाल मे राजनगर सं चलै। मुदा एना नै भ सकल। 
अहि महल'क संग विडम्बना इ रहल जे सन 1934 मे आयल भूकंप मे इ महल खराब जंका क्षतिग्रस्त भ गेल छल, जाहिके उपरांत दरभंगा राज के 22वें महाराज कामेश्वर सिंह पुनः एकरा संवारलनी मगर कुदरत के इहो मंजूर नै भेल। 1988 मे इ महल फेर सं ध्वस्त भ गेल।

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महाराजा मां काली केर भक्त छलथि ताहिलेल महलक सोंझा काली मंदिर सेहो बनबेलथि। नौलखा मंदिरक ( Navlakha Palace, Rajnagar ) बीचो-बीच सात मंजिला इमारत स्थित अछि, अहि मंदिरक ठीक सोंझा एकटा पोखरी अछि, बतायल जाइत अछि जे महारानी के कमरा धरि अहि पोखरी द्वारा पैइन आबैत छल।बतायल जाइत अछि जे महाराजा के छोटकी और बरकी महारानी लेल पोखरी खोदबायल गेल छल।

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महल परिसर मे कतेको मंदिर अछि जाहिमे तंत्र के देवि केर मूर्ति स्थापित अछि। हिनक पूजा दक्षिण दिशा मे होइत अछि। संगमरमर सं बनल काली मंदिर पर्यटक के आकर्षण'क केंद्र अछि। चाइर हाथि के खंभा बला सिंहद्वार अपने मे बर भव्य लागैत अछि। 1934 मे आयल भूकंप मे अहि महल के बहुते नुकसान भेल छल।
परिसरक बाहर एकटा महादेव मन्दिर सेहो अछि।परिसर मे जलक्रीड़ा लेल पोखैर और राजकाज चलेबाक लेल महल सं स्टाल सचिवालय के सेहो निर्माण सेहो कराओल गेल छल।

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अहि मे वर्तमान समय मे विशेश्वर सिंह जनता महाविद्यालय चली रहा अछि ।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

एक नजैर - बेला पैलेस, दरभंगा

नै त इ कुनो राजा के महल अछि आ नैहे नरगौना या लक्ष्‍मेश्‍वर विलास पैलेस जँका इ संतानहीन छल, फेरो एकर भाग्‍य ओहि संतानहीन महल सं अलग नै रहल। शायद अहि लेल खुदा ने भी पूछा खता इसकी क्‍या थी।

जँहा धरि अहि महल'क इतिहास के सवाल अछि त 20वीं शताब्‍दी के पूर्वार्ध मे संगीत आ खेल के इतिहास तिरहुत के कुनो आन महल सं ज्‍यादा एतय लिखल गेल। भारतीय फुटबॉल संघ के स्‍थापना होय या फेर पोलो के दरभंगा कप के शुरुआत, अहि महल के आंगना आ दलान आयो  सिसैक सिसैक क अपन कहानी सुनाबैत अछि। शायरा बानू के मां नशीम बानू सेहो अहिक महल के संबंध मे कहने छली जे एतय के हवा सेहो भी सुरीली अछि। केएल सहगल सं ल के कजनी बाई  धरि के प्रस्‍तुति के गवाह रहल एतय के विशेश्‍वर सभागार आयो ओहि जमाना के शायद बिसैर नै पाओल। के बिसैर सकैत अछि जे बिस्मिलाह सं ल के रामचतुर मल्लिक धरि नै जैन कतेक फनकार के अहि ठाम पनाह भेटल अछि। इ अलग बात अछि जे इतिहास के पुस्‍तक मे अहि महल के जगह नै भेटल।


जंहा धरि कहिके निर्माण आ इतिहास के सवाल अछि त जाहि प्रकार रामायण मे उर्मिला के विरह कोन अपराध लेल झेलय परलनी भगवान सेहो नै  बता पेलथी, ओहि प्रकार अहि महल के इतिहास किया नै लिखल गेल कियो बुईझ नै  पेलक। 1934 के भूकंप उपरांत पूरा तिरहुत लगभग ध्‍वस्‍त भ चुकल छल। दरभंगा के सबटा महल क्षतिग्रस्‍त भ गेल छल। राजनगर त मानु तबाहे भ गेल छल। एना मे तिरहुत सरकार महाराजा कामेश्‍वर सिंह दरभंगा के नवनिर्माण करबाक फैसला केलनि त अपन छोट भाई राजा बहादुर विशेश्‍वर सिंह के दरभंगा इंप्रुभवमेंट ट्रस्‍ट के निदेशक बना देलथि। दरभंगा इंप्रुभवमेंट ट्रस्‍ट के राज परिसर'क बाहर एकटा सुनियोजित शहर बसेबाक छल। राजनगर के जमींदार राजा बहादुर विशेश्‍वर सिंह लेल दरभंगा के नवनिर्माण एतेक बरका  चुनौति छलनी जे ओ अपन राजनगर लेल कुनो ठोस निर्णय नै निकैल पेलथी। एना मे हिनका लेल रहबाक समस्‍या पैदा भ गेलनि।राजामाता रामेश्‍वरी लता के जहन पता भेलनि जे कामेश्‍वर सिंह छत्र निवास पैलेस के जगह अपना लेल नबका भवन बना रहल छथि त हुनका भेंट करबाक संदेश भेजबा देलनि। 
महाराजा राजमाता केर संदेश भेटिते हुनका सं मिलय पहुंचला। राजमाता कहलनि जे जेखन महाराजा लक्ष्‍मेश्‍वर सिंह आनंदबाग पैलेस मे रहैत छलथि त अहाँक पिता मोतीमहल मे आबि के रुकैत छलथि। आब नै त मोती महल अछि आ नैहे छत्रनिवास पैलेस। विशेश्‍वर के राजनगर सेहो ध्‍वस्‍त भ चुका अछि.. ओ कोन ठाम रहता। राजमाता के अहि सवाल पर महाराजा तत्‍काल कुनो जबाव नै देलनि आ ओतय सं सीधा दरबार पहुंचला और नरगौना के बेला गार्डन मे पोलो मैदान सं पूर्व दिशा मे एकटा भवन अपन छोट भाई लेल बनेबाक आदेश देलथि। अहि प्रकार एकर निर्माण कराओल गेल। 
बहुत लोगक कहब अछि जे बेला पैलेस मे विशेश्‍वर सिंह अपन पिता के वास्‍तुशैली के अपनेला, जहनकि कामेश्‍वर सिंह नरगौना के एकटा आधुनिक वास्‍तुशैली मेे बनेबाक इच्‍छा व्‍यक्‍त क चुकल छलथी। कियाकि महाराजा कामेश्‍वर सिंह कला और खेल के प्रति बहुत लगाव नै राखैत छलथि, अहि लिहाज सं 20वीं शताब्‍दी के पूर्वार्ध अहि क्षेत्र मे नरगौना सं ज्‍यादा बेला पैलेस मे संरक्षण भेटल। संगीत और कला क शायदे कुनो एहन नाम होय जे पैलेस मे अपनी प्रस्‍तुति देबय नै आयल होय। 


भारत रत्‍न उस्‍ताद बिस्मिलाह खां शहनाई बजेनाय अहि परिसर मे सीखने छलथि। हुनकर पहिल नौकरी सेहो बेला पैलेसे मे लागल छलनी। पद्मश्री रामचतुर मल्लिक होय या प्रख्‍यात कजरी गायिका कजनी बाई...कतेक नाउ गिनाबु.. नूर बानो त महीनो अहि महल मे रही के अपन गायकी सं तिरहुत के जनता के सराबोर करैत रहली। मगन खबास अहि बेला पैलेस के रत्‍न मे सं एक रहलथि।
अहि पैलेस मे संगीत सं जुरल एहन कुनो वस्‍तु या बाद़ययंत्र नै , जे उपलब्‍ध नै छल। बांसुरी'क अबाज निकालनिहार हारमुनियम त अपने विशेश्‍वर सिंह बजाबैत छलथि। कलाए नै खेल जगत लेल सेहो इ एकटा बरका पीठ रहल अछि। पोलो के तेसर सबसं पुरान प्रतियोगिता दरभंगा कप के स्‍थापना अहि परिसर मे भेल। सबसं दुखद इतिहास त भारतीय फुटबॉल ल के छल। भारतीय फुटबॉल संघ के स्‍थापना अहि बेला पैलेस मे भेल। भारतीय फुटबाल संघ के पहिल अध्‍यक्ष राजा संतोष निर्वाचित भेलथि और पहिल सचिव बनला बाबू विशेश्‍वर सिंह। अहि परिसर मे तय भेल जे अध्‍यक्ष और सचिव के नाम पर फुटबॉल के दु गो प्रतियोगिता आयोजित हैत। बिहार के सबसं पुरान खेल परिसर सेहो अहि महल के परिसर मे अछि। अहि महल मे कुल 12 खेलक लेल आधारभूत संरचना उपलब्‍ध अछि, जाहि मे  जिनमें टेनिस, बास्‍केटबॉल, पोलो, फुटबॉल आ कतेको इंडोर गेम शामिल अछि।
विशेश्‍वर सिंह के तीनटा बेटा भेलनि। सबसं बरका बेटा तिरहुत के आखिरी युवराज छलथि। युवराज जीवेश्‍वर सिंह। ओ महाराजा निवास अर्थात नरगौना मे रहैत छलथि। पिता विशेश्‍वर सिंह के निधन और चाचा कामेश्‍वर सिंह सं मतभेद भेला पर ओ बेला पैलेस मे रहय लगला। शायद ताहि लेल हुनकर अहि महल सं बहुते लगाव नै छलनी। पिता केर रहतौ ओ बेला पैलेस बहुते कम जाइत छलथि। महाराजा कामेश्‍वर सिंह केर निधन पश्चात जेखन हुनकर भातीज के चाचा के संपत्ति सं बेदखल हेबाक सूचना भेटल त अवसादग्रस्‍त भ गेला।

 विशेश्‍वर सिंह केर बेटा पिता और चाचा के संपत्ति के अलग अलग नजरिया सं नै देख पाबिला और दुनु के एके नजैर सं देखबाक खामियाजा इ भेल जे सबसं पहिले वैह लोग पिता के अहि संपत्ति के भारत सरकारक हाथ सौंप देलक। ओहि समय भारत सरकार के सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय के सचिव आदित्‍य नाथ झा छलथि। अहि महल के जेबाक पश्चात एकटा एहन रास्‍ता खुजल जे पिछला 50 साल मे विशेश्‍वर सिंह के संपत्ति हुनक बेटा आ पोता कामेश्‍वर सिंह के संपत्ति बुईझ क बेचैत आबि रहल अछि। शुक्र बस अतेक अछि जे आन संपत्ति के मुकाबला बेला पैलेस के स्थिति बेहतर अछि। संप्रति इ भारतीय डाक प्रशिक्षण संस्‍थान, केंद्र सरकार के अधीन अछि और बहुते किछ अछि अहि  महल के संबंध में, तथ्‍य और तसवीर के संग आगुओ... जारी....।


शनिवार, 10 मार्च 2018

ताजमहल एहन एकटा कलाकृति मिथिला मे सेहो अछि

अहि दुनु तस्वीर मे हमरा ख्याल सँ समानान्तर अध्ययनक आवश्यक अछि, दुनु मकराना संगमरमर के बनल अछि, बेल बूटे, नक्कासी दुनु मे उम्दा किस्मक अछि। दुनु के अपन इतिहास छैक। एगो मुगलक कृति अछि त एकटा भारतीय हिन्दू शासक द्वारा निर्मित, एकटा मे प्रेमक प्रतिरूप अछि त दोसर मे आस्थाक स्वरूप अछि।
राजनगर, मधुबनी मे 18वीं सदी में निर्मित इ माँ काली मंदिर केर बनावट, नक्काशी, बेलबूट के देखबा सँ ताजमहल एहने लागय अछि, चमक त आयो भी ताजमहल सँ बेसी अछि, मुदा दुर्भाग्य छैक मिथिला (बिहार) मे एकर देखभाल और प्रचार प्रसार  शून्य छैक। वीरान पड़ल इ ऐतिहासिक धरोहर दिनरात अपन पीढ़िक उदासीनता पर नोर बहा रहल अछि।समाजसेवी, इतिहासकार, साहित्यकार, कलाकार और सरकार की घोर उपेक्षा के कारण मिथिलाक इ बेशकीमती धरोहर सुन पड़ल अछि। सन्निकट के कतेको बेशक़ीमती मंदिर और इमारत धराशायी भ चुका अछि। अगर एकरा बचा लेल गेल और प्रचारित कैल गेल त निश्चित तौर पर उत्तर बिहार मे लाखों लोग के पर्यटन सँ रोजगार भेटबाक उम्मीद जागय लागत। अगर बर्बाद भ गेल त आबय बला पीढ़ी अपन पूवज के कहियो माफ नै करत। उम्मीद अछि मिथिला, और मिथिला सँ बाहरक लोग एकरा बचेबाक मुहिम मे मिथिला धरोहर के संग दैथ, अपन धरोहर के बचेबा मे  सहयोग करैथ। #MithilakTaj




रविवार, 24 दिसंबर 2017

अहिल्या स्थान, कमतौल : मिथिलाक ऐतिहासिक गौरव

मिथिला धरोहर : श्रीमद वाल्मीकि रामायण के बाल-कांडक ४८वां सर्ग मे वर्णित कथा अछि - मुनि विश्वामित्र राम आ लक्ष्मण केर संग मिथिला नरेश जनक केर राजधानी जनकपुर जा रहल छलखिन। किछ दूर गेलाक बाद हुनका एकटा विराट आश्रम देखेलनी जे सून पड़ल छल। जिज्ञासावश रामचंद्र जी विश्वामित्र सँ पूछलनी यदपि इ आश्रम अतेक भव्य अछि फेर किओ ऋषि-मुनि नै देखा रहल अछि। रामचंद्र केर प्रश्न सुनी विश्वामित्र कहलखिन जे इ महर्षि गौतम के आश्रम अछि आ इन्द्र - अहिल्या प्रसंग आ महर्षि गौतम द्वारा दुनु के श्राप देबाक कथा सुनेलनी। फेर रामचंद्र केर चरण स्पर्श सँ अहिल्या के उद्धार भेलनि, जेना की श्रापक आदेश छलै।
यैह स्थान अहिल्या स्थानक ( Ahilya Sthan, Ahiyari,  Kamtaul ) नाम सँ जानल जाइत अछि। १६३५ ई. मे दरभंगा के तत्कालीन राजा छत्र सिंह द्वारा एकटा भव्य मंदिरक निर्माण कैल गेल छलनि। अहि मंदिर मे सीता-राम आ लक्ष्मण संगे हनुमान आ अहिल्या-गौतम के स्फुटित मूर्ति विद्यमान अछि। महाराजा छत्र सिंह एहने एकटा विशाल मंदिर सौराठ ग्राम मे सेहो बनबेने छलखिन आ शिव लिंग केर स्थापना केने छलथि।

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करीब 50 बरख पहिले दछिण भारत सँ रामानुज अनुयायी के एकटा टोली सीता-राम सम्बंधित स्थलक जानकारी लेबाक क्रम मे एतय आयल छल। ओसब अहिल्या उद्धारस्थल पर एकटा स्तम्भ आ पिंड के निर्माण करबेने छलथि। इ एखनो मौजूद अछि, एतय आशाराम बापू के आश्रम छनि जतय धार्मिक आ सामाजिक काज होइत रहैत अछि। अहि स्थानक लगे मे गौतम कुण्ड अछि जे खिरोई नदी के तट पर अछि, एतय गौतम ऋषि केर आश्रम छनि। याग्लाव्य मुनि के आश्रम जगवन आ श्रृंगी मुनि केर आश्रम सब ५ किलो मीटरक दायरा मे अछि।

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अहिल्या स्थान दरभंगा जिला मे दरभंगा-सीतामढ़ी रेल पथ के कमतौल स्टेशन सँ दछिण दिशा मे २ किलो मीटरक दूरी पर अवस्थित अहियारी गामक मध्य मे स्थित अछि। एतय दरभंगा-मधवापुर राज्य उच्च पथ संख्या ७५ सँ कमतौल आ टेकटार सँ सेहो गेल जा सकैत अछि। इ स्थान सीता केर जन्मस्थली सीतामढ़ी सँ ४० किमी पूर्व मे स्थित अछि।

आलेख : रुनु झा, मैथिली अनुवाद : प्रभाकर मिश्रा 'ढुन्नी'

मंगलवार, 2 मई 2017

राजनगर पैलेस : हिन्दू-रोमन शैली मे बनल 140 साल पुरान महल

मिथिला धरोहर, प्रभाकर मिश्रा : मधुबनी सँ 12 किमी दूर राजनगर स्थित राजनगर पैलेस ( Rajnagar palace ) के दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह 1880 ई० मे हिंदू रोमन शैली मे बनवेने छलैथ। राजनगर पैलेस 1934 के भूकंप मे खराब जँका क्षतिग्रस्त भ गेल छल। भूकंप उपरांत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सेहो अहिके देखय लेल आयल छलथी। पैलेस के दरबार महल चाइर हाथीक पीठ पर बनैल गेल अछि।

लोग अखन सेहो एतय के नौलखा महल मे बनल काली मंदिर, कामाख्या मंदिर, गिरिजा मंदिर, दुर्गा मंदिर, महादेव मंदिर मे पूजा करबाक लेल आबैय अछि। अहि पूरा परिसर मे कुल 11टा मंदिर अछि। अहि मंदिरक निर्माण लेल फ्रांस सँ कारीगर बजायल गेल छल।हालांकि मरम्मतक बावजूद किछ मंदिर आब दरकय लागल अछि। इ एकटा बेहतरीन पर्यटन स्थल बैन सकैत अछि।
एखन एकर बड़का हिस्सा मे सशस्त्र सीमा बल के प्रशिक्षण केंद्र चली रहल अछि।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

दरभंगा किला - Darbhanga Fort : लाल किला सँ ऊंच अछि दरभंगा किलाक दीबार

छवि साभार - फेसबुक सं
मिथिला धरोहर : दिल्ली के लाल किला सँ दरभंगा राज के किला ( Darbhanga Kila ) के दीबार नौ फीट ऊंचगर अछि। एकरा रामबाग पैलेस सेहो कहल जाइत अछि। किला के वास्तुकारी मे फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरबाजा के झलक देखाइत अछि। मिथिला नरेश कामेश्वर सिंह के पास किला नय छलनी। तत्कालीन अंग्रेजी हुकुमत मिथिलांचल के पूर्ण राज्यक दर्जा नय द रहल छल। एकरे हासिल करवाक इरादा सँ किलाबंदी शुरू कैल गेल छल।   
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1936 मे कोलकाता के एकटा कंपनी काज शुरू केलक। छह वर्ष मे हजारों कारीगर दीबार के उत्तर- दक्षिण पूरब सँ खड़ा क देलक। पश्चिमी भाग के निर्माण'क दौरान 1942 मे बंग्लागढ़ निवासी अग्रवाल परिवार के आवेदन पर हाईकोर्ट निर्माण पर रोक लगा देलक। दीबार आय धरि अधूरे अछि। 15 अगस्त 1947 के किला के सिंह द्वार पर तिरंगा लहरायल गेल छल।

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किला के दिबारक निर्माण लाल ईंट सँ कैल गेल अछि। करीब 85 एकड़ भूखंड के दीबार तीनो दिशा के घेरने रखाने अछि। लंबाई लगभग 500 मीटर अछि। वॉच टावर और गार्ड हाउस सेहो अछि। किला के मुख्य द्वार जेकरा सिंहद्वार कहल जाइत अछि पर वास्तुकला सँ दुर्लभ दृश्य उकेरल गेल अछि। किला के भीतर दिबारक चारु दिस खदाइर (खाई) के निर्माण कैल गेल छल। ओहि समय खदाइर मे बराबर पैइन रहय छल। एना किला आ वस्तुतः राज परिवारक सुरक्षा के लेल कैल गेल छल।

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भारत सरकार के पुरातत्व विभाग 1977-78 मे अहि किला के सर्वेक्षण सेहो केने छल, तहन एकर ऐतिहासिक महत्वता के स्वीकार करैत किला के तुलना दिल्ली के लाल किला सँ केने छल।

शनिवार, 14 जनवरी 2017

मिथिलाक अहि संग्रहालय मे अछि एक इंच के दुर्लभ रामायण आ कुरान ...जानू

मिथिला धरोहर : दरभंगा जिला मे स्थित चंद्रधारी संग्रहालय मे बहुते बहुमूल्य धरोहर सुरक्षित राखल गेल अछि। एतय ब्रह्मा के दुर्लभ पांचजन्य शंख अछि। दांया दिस मुंह वला दक्षिणवर्ती शंख अछि। 24 तरहक हीरा अछि। एकटा एहन अंगूठी सेहो अछि, जेकरा पहिरला सँ शरीर के तापमान'क जानकारी भेटैत अछि। हीरा जडि़त शिव विद्या यंत्र, श्रीचक्र, एकमुखी रुद्राक्ष समेत सोना के बहुते सिक्का अछि। अहि ठामक धरोहर के लिस्ट एतय पूरा नय होइत अछि। 
एतय महज एक इंच के रामायण, दुर्गा सप्तशती आ कुरान सेहो राखल गेल अछि। अहि पुस्तक के लेंसे टा सँ पढ़ल जा सकैत अछि। एतय बहुते अन्य दुर्लभ चीज सेहो अछि, जेकरा देखला सँ समृद्ध विरासत के स्मृति जीवंत भऽ उठैत अछि। संग्रहालय के विशेष दीर्घा मे राखल एक इंच के तीनो धार्मिक ग्रंथ (रामायण, दुर्गा सप्तशती आ कुरान) के लंबाई आ मोटाई मात्र एक इंच अछि। अहिमे रामायण आ दुर्गा सप्तशती केर सबटा अध्याय और कुरान कऽ सबटा आयत समाहित अछि। लेखक अचलाईनाथ योगी जी पूरा ग्रंथ के एही तरहे समायोजित केने छथिन जे देखय बला आश्चर्यचकित रैह जाइत छथि। अहिक प्रकाशन बनारस'क गोरखानंद पुस्तकालय सँ भेल अछि।
1957 मे भेल छल स्थापना
चंद्रधारी संग्रहालय के स्थापना 7 दिसंबर 1957 के कैल गेल छल। पहिले एकर नाम मिथिला संग्रहालय पड़ल। बाद मे मुख्य दाता मधुबनी जिला के रांटी ड्योढ़ी के जमींदार बाबू चंद्रधारी सिंह केर नाउ पर एकर नामकरण भेल। हुनका सँ भेटल कलाकृति आ धरोहर सँ एकर निर्माण कैल गेल छल। एतय 11 दीर्घा मे पुरातात्विक आ कलात्मक कृतिं प्रदर्शित अछि। आम दर्शक लेल दस सँ चाइर बजे धरि संग्रहालय खुजल रहैत अछि। 


कतेको हस्ति के भऽ चुकल अछि आगमन
संग्रहालय मे देश के कतेको हस्ति के आगमन भऽ चुकल अछि। दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह खुद धरोहर के अवलोकन कऽ चुकल छथि। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, लोकनायक जयप्रकाश नारायण आ हुनक  पत्नी प्रभावती, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सह, कर्पूरी ठाकुर, पूर्व राज्यपाल डॉ. एआर किदवई, डॉ. एलपी शाही, जगन्नाथ कौशल आदि एकर मुआयना कऽ चुकल छथि।

Tags: # Bihar museum # Chandradhari museum # Darbhanga museum  # Mithila heritage

शुक्रवार, 17 जून 2016

बलिराजगढ़ : एकटा प्राचीन मिथिला नगरी

मिथिला धरोहर : भारतक दार्शनिक, उद्भव, सांस्कृतिक और साहित्यिक विकासक क्षेत्र मे मिथिला के महत्वपूर्ण स्थान रहल अछि। मिथिला केर इतिहास निस्संदेह गौरवमय रहल अछि। पुरातत्व के अवशेषोंक अन्वेषण, विश्लेषण मे पूरा पाषाणकाल, मध्यकाल आ नव पाषाण काल के बहुते अवशेष एखन धरि प्रकाश मे नय आयल अछि। उत्तर बिहारक तीरभुक्ति क्षेत्र मे पुरातात्विक दृष्टिकोण सँ वैशाली पुरास्थल के बाद अगर कुनो दोसर महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल प्रकाश मे आयल अछि त ओ अछि बलिराजगढ़। जेकरा डीआर पाटिल बलराजपुर लिखल जाइत अछि। बलिराजगढ़ हिमालय के तराई मे भारत-नेपालक सीमा सँ लगभग 15 किलोमीटर दूर बिहार प्रान्तक मिथिलांचल छेत्र मे अवस्थित अछि।


प्राचीन मिथिलांचल के लगभग मध्यभाग मे मधुबनी जिला सँ 30 किलोमीटरक दुरी पर बाबूबरही थाना केर अन्तर्गत आवैत अछि। एतय पहुंचवाके लेल रेल आ सड़कक मार्ग दुनु सुविधा उपलब्ध अछि। बलिराजगढ़ कामलाबलान नदी सँ 7 किलोमीटर पूब आ कोसी नदी सँ 35 किलोमीटर पश्चिम मे मिथिलांचल के भूभाग पर अवस्थित अछि।

वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल मे मिथिला अति प्रसिद्ध विदेह राज्य केर रूप मे जानल जाइत छल। द्वितीय नगरीकरण अथवा महाजनपद काल मे वज्जि संघ, लिच्छवी संघ आदि नाम सँ प्रसिद्ध रहल अछि। बलिराजगढ़ केर महत्व देखैत किछु विद्वान् एकरा प्राचीन मिथिला केर राजधानीक रूप मे संबोधित करैत छथि। एतय के विशाल दुर्ग रक्षा प्राचीर सँ रक्षित पूरास्थल निश्चित रूप सँ तत्कालीन नगर व्यवस्था मे सर्वोत्कृष्ट स्थान राखय छल।

175 एकड़ वला विशाल भूखंड के बलिराजगढ़, बलराजगढ़ या बलिगढ़ कहल जाइत अछि। स्थानीय लोग केर माननाय अछि जे महाकाव्य और पुराण मे वर्णित दानवराज बलि केर राजधानी क इ ध्वंष अवशेष अछि, मैले के अनुसार स्थानीय लोगक सबक विश्वास अछि जे एही समय सेहो राजा बलि अपन सैनिकक संगे एही किला मे निवास करैत छथि। सम्भवतः एही करण सँ किओ खेती लेल जोतबा के हिम्मत नय करैत अछि। एही अफवाहक चलैत एही भूमि और किला केर सुरक्षा अपने आप होइत रहल। 

बुकानन के अनुसार वेणु, विराजण और सहसमल के चौथा भाई बलि एकटा राजा छलैथ। इ बंगालक राजा बल केर किला छल जिनकर शासनकाल किछ दिनक लेल  मिथिला पर सेहो छल। बुकानन के अनुसार ओ  लोग दोमकटा ब्राह्मण छल जे महाभारत मे वर्णित राजा युधिष्ठिर केर समकालीन छल। मुदा डीआर पाटिल एकरा ख़ारिज करैत कहैत छथि जे वेणुगढ़ आ विरजण गढ़ के किला सँ बलिराजगढ़ के दूरी बेसी अछि।

एकटा आन विद्वान् एही गढ़ के विदेह राज जनक केर अंतिम सम्राट द्वारा निर्मित मानैत छथि। हिनका अनुसार जनक राजवंश के अंतिम चरण मे आबि के वंश शाख मे बंटा गेल और वैह मे सँ एकटा शासक द्वारा किला केर नाम बलिगढ़ राखल गेल।
रामायण के अनुसार राम, लक्ष्मण और विश्वामित्र गौतम आश्रम सँ ईशाणकोण के दिस  मिथिला के यज्ञमण्डप पहुंला। गौतम आश्रम केर पहचान दरभंगा जिला के ब्रह्मपुर गांव सँ कैल गेल अछि। जेकर उल्लेख स्कन्दपुराण मे सेहो भेटैत अछि। आधुनिक जनकपुर गौतम आश्रम अर्थात ब्रह्मपुर सँ ईशाणकोण नय भ के  उत्तर दिशा मे अछि। एही तरहे गौतम आश्रम सँ ईशाणकोण मे बलिराजगढ़ के अलावा और कुनो ऐतिहासिक स्थल देखाय नय दैत अछि, जाहिपर प्राचीन मिथिलापुरी हेबाके सम्भावना व्यक्त कैल जा सके। अतः बलिराजगढ़ के पक्ष मे एहन तर्क देल जा सकैत अछि जे मिथिलापुरी एही स्थल पर स्थित अछि।

पाल साहित्य मे कहल गेल अछि जे अंग केर राजधानी आधुनिक भागलपुर सँ मिथिलापुरी साइठ योजन केर दूरी पर छल। महाउम्मग जातक केर अनुसार नगरक चारु द्वार पर चाइर बजार छल जेकरा यवमज्क्ष्क कहल जाइत छल बलिराजगढ़ सँ प्राप्त पुरावशेष एही बात के पुष्टि करैत अछि। बौद्धकालीन मिथिलानगरी के ध्वंशावशेष सेहो बलिराजगढे अछि।

बलिराजगढ़ जे पुरातात्विक महत्व के सर्वप्रथम 1884 मे प्रसिद्ध प्रसाशक, इतिहासकार और भाषाविद् जार्ज ग्रीयर्सन उत्खनन के माध्यम सँ उजागर करवा के चेष्टा केलनि, मुदा बात यथा स्थान रही गेल। ग्रियर्सन के उल्लेखके बाद भारत सरकार 1938 मे एही महत्वपूर्ण पुरास्थल के राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे घोषित क देल गेल।

सर्वप्रथम एही पुरास्थल के उत्खनन 1962-63 मे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रघुवीर सिंह केर निर्देशन संपादित भेल। एही उत्खनन सँ ज्ञात भेल जे एही विशाल सुरक्षा दीवार के निर्माण मे पक्का ईटक संग मध्यभाग मे कच्चा ईटक प्रयोग कैल गेल अछि। सुरक्षा प्राचीर के दुनु दिस पक्का ईटक प्रयोग दीवार के मजबूती प्रदान करैत अछि। सुरक्षा दीवार के चौड़ाई सतह पर 8.18 मी. आ 3.6 मी. तक अछि। सुरक्षा दीवारक निर्माण लगभग तेसर शताब्दी ई.पू. सँ ल के लगातार पालकालीन अवशेष लगभग 12-13 शताब्दी पर प्राप्त होइत अछि पुरावशेष मे सुंदर रूप सँ गढ़ित मृण्मूर्ति महत्वपूर्ण अछि।

एकर उपरांत 1972-73 और 1974-75 मे बुहार राज्य पुरातत्व संग्रहालय द्वारा उत्खनन कैल गेल। एही उत्खनन कार्य मे बी.पी सिंह के समान्य निर्देशन मे सीता राम रॉय द्वारा के.के सिन्हा, एन. सी.घोष, एल. पी. सिन्हा तथा आर.पी सिंह के सहयोग सँ कैल गेल। उक्त खुदाई मे पुरावशेष आ भवन के अवशेष प्राप्त भेल। एही उत्खनन मे उत्तर कृष्ण मर्जित मृदभांड सँ ल के पालकाल तक के मृदभांड भेटल अछि। सुंदर मृण्मूर्ति अथाह संख्या मे भेटल अछि। अर्ध्यमूल्यवाल पत्थर सँ बनल मोती, तांबा के सिक्का, मिट्टी के मुद्रा प्राप्त भेल अछि। एखन हाले मे 2013-14 मे एक बेरा फेर उत्खनन कार्य भरतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना मण्डल के मदन सिंह चौहान, सुनील कुमार झा आ हुनक मित्र द्वारा उत्खनन कार्य कैल गेल।

एही स्थल के उत्खनन मे मुख्य रूप सँ चाइर संस्कृति काल प्रकाश मे आयल।
1. उत्तर कृष्ण मर्जित मृदभांड
2. शुंग कुषाण काल
3. गुप्त उत्तर गुप्तकला
4. पाककालीन अवशेष

एही स्थल सँ एखन धरि पुरावशेष मे तस्तरी, थाली,पत्थर के वस्तु, हड्डी और लोहा, बालुयुक्त महीन कण, विशाल संग्रह पात्र, सिक्का, मनके, मंदिर के भवनावशेष प्राप्त भेल अछि और एकटा महिला केर मूर्ति सेहो प्राप्त भेल अछि जे कोरा मे बच्चा के स्तन सँ लगने अछि। 

एतय सबसँ महत्वपूर्ण साक्ष्य मे प्राचीर दीवार अछि जे पक्का ईट सँ बनल अछि और एखन धरि सुरक्षित अवस्था मे अछि दीवार मे केतउ-केतउ कच्चा ईट के प्रयोग कैल गेल अछि। एतय प्रयोग कैल गेल ईटाक लंबाई 25 फिट और चौड़ाई 14 फिट धैर अछि।

पाल काल या सेन कालक अंत मे भीषण बाईढ़ द्वारा आयल मट्टी के जमाव केतउ केतय 1 मीटर तक अछि। एही सँ निष्कर्ष निकालल जा सकैत अछि जे एही महत्वपूर्ण कारक रहल अछि। एही समय मे कुनो पुरास्थल मिथिला क्षेत्र मे अतेक वैभवशाली नय प्राप्त भेल अछि। किछु विद्वान द्वारा एही पुरास्थल के पहचान प्राचीन मिथिला नगरी के राजधानी के रूप मे चिन्हित करैत छथि। इ पुरास्थल मिथिला के राजधानी ऐछ की नय एही विषय मे और बेसी अध्ययन आ पुरातात्विक उत्खनन और अन्वेषण के आवश्यकता अछि।

Tags : # Balirajgarh

रविवार, 15 मई 2016

सीतामढ़ी : जतय आयो रहय छथि माता सीता

मिथिला धरोहर, सीतामढ़ी : भगवान राम के धर्म पत्नी सीता के जन्म और समाधि सँ जुड़ल दु टा स्थान अछि, एहि दुनु स्थान के सीतामढ़ी ( Sitamarhi, Sita Janm Sthan ) के नाम सँ जानल जाइत अछि। एकटा सीतामढ़ी मे माता सीता जन्म लेने छलथि आ दोसर भूमि मे समाधि लेने छलीह। जाहि सीतामढ़ी मे भगवती जन्म लेने छलखिन, ओहि जिला के आय माता सीता के नाम सँ जानल जाइत अछि। एत्य के लोगक माननाय अछि जे माता सीता आयो एतय निवास करय छथि और अपन भक्त के सहायता करय छथि। 
माता सीता केर प्रतिमा, सीतामढ़ी, छवि साभार
कौना भेल छल माता सीता के जन्म
रामायण'क अनुसार, त्रेतायुग मे एक बेरा मिथिला नगरी मे भयानक अकाल पड़ल छल। बहुते साल तक बरखा नय भेला सँ परेशान राजा जनक जी पुरहितक सलाह पर अपने सँ हर (हल) चलेबाक निर्णय लेलैथ। जेखन राजा जनक हर चला रहल छलथि तेखन धरती सँ मईट्ट के एकटा पात्र भेटल, जाहिमे सँ माता सीता शिशु अवस्था मे छलखिन। एहि स्थान पर माता सीता भूमि मे सँ जन्म लेने छलखिन, ताहिलेल एहि जगहक नाम सीतामढ़ी पैड़ गेल।

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बीरबल दास केलैथ एतय मूर्ति के स्थापना
कहल जाइत अछि जे बहुते साल सँ इ जगह जंगल बनी गेल छल। एक बेरा लगभग पांच सौ साल पहिले अयोध्या मे रहय वला बीरबल दास नाम के एकटा भक्त के माता सीता अयोध्या सँ एतय एबाके प्रेरणा देलखिन। किछ समय उपरांत बीरबल दास एतय एला और ओ एहि बन-जंगल के साफ-सुथरा क के एहि स्थान पर मंदिरक निर्माण केलैथ और ओहिमे सीता जी केर मूर्ति स्थापित केलैथ।
पुनाओरा मंदिर, छवि साभार
संतान पेबाक लेल कैल जाइत अछि एतय स्नान
मिथिलांचल मे सीतामढ़ी नामक रेलवे स्टेशन और बस अड्डा सँ लगभग २ कि.मी. के दूरी पर माता सीता के जानकी मंदिर अछि। मंदिर के पाछु जानकी कुंड के नाम सँ एकटा प्रसिद्ध सरोवर अछि। एहि सरोवर के लके मान्यता अछि जे एहिमे स्नान केला सँ महिला के संतान के प्राप्ति होइत अछि।
पंथ पाकार, छवि साभार
पुनाओरा मंदिर:  माता सीता के जन्म स्थान
जानकी मंदिर सँ लगभग ५ कि.मी. के  दूरी पर माता सीता के जन्म स्थान अछि। एहि जगह पर पुनराओ मंदिर अछि। सीता जन्म के समय पर एतय बहुते भीड़ रहय अछि और भारी उत्सव मनायल जाइत अछि।

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हलेश्वर मंदिर, छवि साभार
माता सीता के विवाह सँ जुड़ल पंथ पाकार
सीतामढ़ी नगर के उत्तर-पूर्व दिशा मे लगभग ८ कि.मी. दूर पंथ पाकार नाम के प्रसिद्ध जगह अछि। इ जगह माता सीता के विवाह सँ जुड़ल अछि। एहि जगह पर एकटा बहुते ही प्राचीन पीपरक गांछ एखनो अछि, जेकर नीचा पालकी बनायल गेल अछि। कहल जाइत अछि जे विवाह के उपरांत माता सीता पालकी मे जा रहल छलखिन तखन किछ समय के लेल एहि गांछक निचा आराम केने छलखिन।

भगवान शिव के हलेश्वर मंदिर
सीतामढ़ी के उत्तर-पश्चिम दिशा मे लगभग तीन कि.मी. के दूरी पर हलेश्वर शिव मंदिर अछि। हिनका हलेश्वर नाथ मंदिर सेहो कहल जाइत अछि। मान्यता अछि जे एक समय पर विदेह नाम के राजा एहि शिव मंदिर के निर्माण पुत्रयेष्टि यज्ञ के लेल करवेने छलखिन।