भगवती वंदना
जगदंब अहिं अबलंब हमर, हे माई अहां बिनु आस केकर के रचयिता छथि रचनाकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
जगदम्ब अहिं अवलम्ब हमर
हे माय अहाँ बिनु आस केकर
हे माय अहाँ बिनु आस केकर
जगदम्ब अहिं अवलम्ब हमर
जँ माय अहाँ दुःख नै सुनबय - 2
त जाय कहु ककरा कहबय - 2
करू माफ़ जननि अपराध हमर
हे माय अहाँ बिनु आस केकर
जगदम्ब अहिं अवलम्ब हमर
हम भरि जग सँ ठुकरायल छी
मां भरि जग सँ ठुकरायल छी
माँ अहिं के शरण में आयल छी
हे माँ अहिं के शरण में आयल छी
देखू नाव पड़ल अछि बीच भंवर
हे माय अहाँ बिनु आस केकर
जगदम्ब अहिं अवलम्ब हमर
काली लक्ष्मी कल्याणी छी - 2
तारा अम्बे ब्रह्माणी छी - 2
अछि पुत्र प्रदीप बनल टुगर
हे माय अहाँ बिनु आस केकर - 2
जगदम्ब अहिं अवलम्ब हमर
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