रचनाकार - विद्यापति
बटगमनी गीत
लट छल खुजल बयस सजनी गे
बैसल मांझ दुआरे
ताहि अवसर पहु आयल सजनी गे
देखल नयन पसारे
एक हाथ केस सम्हारल सजनी गे
अचरा दोसर हाथे
पहु के पलंग चढि बैसल सजनी गे
तखन करथि बलजोरे
नहिं-नहिं जओं हम भाखीय सजनी गे
तओं राखथि मन रोशे
भनहि विद्यापति गाओल सजनी गे पुरुषक यैह बढ़ दोषे।
ليست هناك تعليقات:
إرسال تعليق
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !