शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

उचित बसए मोर मनमथ चोर - विद्यापति Uchit basay mor manamath chor

उचित बसए मोर मनमथ चोर,
चेरिआ बुढ़िआ करए अगोर।

बारह बरख अवधि कए गेल,
चारि बरख तन्हि गेलाँ भेल।

बास चाहैत होअ पथिकहु लाज,
सासु ननन्द नहि अछए समाज।

सात पाँच घर तन्हि सजि देल,
पिआ देसाँतर आँतर भेल।

पड़ेओस वास जोएनसत भेल,
थाने थाने अवयव सबे गेल।

नुकाबिअ तिमिरक सान्धि,
पड़उसिनि देअए फड़की बान्धि।

मोरा मन हे खनहि खन भाग,
गमन गोपब कत मनमथ जाग।

रचनाकार : विद्यापति

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