रविवार, 29 दिसंबर 2013

बेटी बनत गुमान : मैथिली कविता

एक माँ के छै दुनू सन्तान
तहन किया ने बेटा-बेटी एक समान
आउ अहि भेद के सम्माप्त करि
एकर मिथिला सँ सुरुबात करु।

कोखि मे बेटी जँ किओ मारत
पापक भागी तैं ओ बनत
इ गलती अहाँ नै फेर करब
इ बात अहाँ स्वीकार करु।

लाड़ दुलार सँ पोसब बेटी
जहिना किसान करै छै खेती
बेटा  सँ  की  कम  छै  बेटी
अहि बात पर अहाँ विचार करु।

बेटे जँका  बेटी  के पढ़ाबू
दू रंग के अहाँ भेद मिटाबू
पूरा शिक्षा के अधिकार भेटय
अहि बातक अहाँ प्रचार करु।

पैढ लिख के अफसर बनती
गाम  समाजक  मान  बढेती
पैघ  हैत  अहूँ  के  सम्मान
अहि बात पर कनि गौर करु।

बियाह करब अठारह के बादे
किछ कहें चाहे लोग समाज
बचपन मे बियाह क के अहाँ
बेटी'क जिनगी नै बरबाद करु।
© प्रभाकर मिश्रा "ढुन्नी"

Tags : # Kavita # Poem

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