मिथिला मे एकटा कहावत प्रचलित अछि- पग-पग पोखरि माछ मखान...,। एहि ठाम पोखरि के संख्या देश के कुनो भी क्षेत्र सँ बेसी अछि। मिथिला क्षेत्र मे प्राचीन काले सँ बड़का - बड़का पोखरि खुदेबाक परंपरा छल। जाहीके मध्यकाल सँ दरभंगा महाराज चालू रखलथी। जिला मे हिनकर द्वारा बड़का-बड़का पोखरि खोदबायल गेल जे आयो विद्यमान अछि। एतय लखनौर के जानो मानो, रहिका, कपिलेश्वर, अररिया संग्राम, चनौरागंज, वीरसायर, मंगरौनी, बासोपट्टी के बभनदेई पोखरि, सतलखा के पद्मसागर पोखरि दरभंगा के गंगा सागर, दिघि हरही पोखरि प्रमुख् अछि। एहि के अलावा एतय निजी आ सरकारी करीब ११ हजार छोटका-बड़का पोखरि आयो मौजूद अछि।
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किछु विशिष्ट पोखरि के खिस्सा
लखनौर प्रखंड मे स्थित जानो मानो पोखरि ऐतिहासिक अछि। बगलक गांम मे महाराज शिव सिंह के ससुराल छल। एक दिन हिनक साइर (साली) मजाक करवा के लेल हुनक भोजनक थाली मे तुरूप के फूल के परोसला जे देखअ मे उजर चाउर जेहन लागै छल। महाराज जेखन भोजन करवा के लेल हाथ बढेलैथ त साइर हाथ रोकी देलथि आ हंसै लगलि। जाहि पर महाराज कहला जे अहाँ सब किया हंसै छि। ओहि पर साइर बजली जे इ चाउर नै फूल अछि। जाहि पर महाराज प्रसन्न भेला आ किछु मांगै के लेल कहला। साइर जिनकर नाम जानो मानो छला एकटा पोखरि खोदेबा के मांग केलक। जाहीके महाराज सहर्ष स्वीकार करैत विशाल पोखरि खोदबेलैथ जे कहिओ सुखैअ नै अछि। एहि तरहे महाराज के द्वारा खोदायल गेल चनौरागंज, अररिया संग्राम, वीरसायर, रहिका, कलुआही, बासोपट्टी, सतलखा आदि दर्जन भरी एहन पोखरि अछि जाही के दरभंगा महाराज लोगक हित मे खोदबेलैथ। मिथिला मे पोखरि खोदेबाक के परंपरा ताहि लेल सेहो छला जे एतय सब तेसर साल अकाल पडैत छल। जाहि कारण एतय पईन (पानी) के घोर अभाव भ जाइत छल। जेकरा देखैत महाराज आ जमींदार बड़का-बड़का पोखरि खोदबय छलथि।
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