मिथिला धरोहर : एहि पावनि केँ पुत्र केर मंगल कामना आ दीर्घायु होबय केर लेल कैल जाएत अछि। जितिया पावनि अर्थात जिमूतबाहन के व्रत आशिन कृष्ण पक्ष अष्टमी के होइत अछि। व्रत केनिहारि सप्तमी दिन नहाकेँ अरबा-अरबाईन खाई छथि। ई व्रत अईहव आ वीधव सभ सेहो करैत छथि। अपन-अपन सन्तानक दीर्घायुक लेल ई व्रत कएल जाईछ। अष्टमी दिन निराहार रहिक ई व्रत होईत अछि।
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एहि मे फलहार के कोन बात एक बून्द पानियो तक कंठ तर नै जेबाक चाही। व्रत केनिहारि सब ओहि दिन कोनो नदी या पोखरि मे नहाथि। ओहि दिन असगर नहि नहेबाक विधान अछि। पाँच-सात गोटेक संग मील के नेहेबाक चाही। व्रत केनिहारि नेहेलाकऽ बाद झिमनिक पात पर खईर आ सरिसो कऽ तेल जितवाहन के चढ़वैत छथि। अपना पुत्रक दीर्घायु आ सब मनोरथ पूरा करबाक वरदान मंगैत छथि । कथा सुनलाक बाद सब अपन-अपन घर अबैत छथि । नवमी दिन फ़ेर ओही तरहें पूजा पाठ कऽ केँ खीरा, अंकुरी, अक्षत, पान-सुपारी नवेद दऽ धूप=दीप जरा कऽ विसरजन करैत छथि । जिनका लोकनिक संतान लग मे रहैत छथि से माय पहिने संतान के जीतबाहनक (Jimutavahan Puja) प्रसादी दऽ केँ तखन अपने पारन करैत छथि।
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