मिथिला धरोहर : कार्तिक मासक अमावस्या के दियाबाती मनेला के तुरंत बाद मनायल जाय बला छठि व्रत के सब सं कठिन आ महत्वपूर्ण राइत कातिक शुक्ल सष्ठी के होइत अछि। एहि कारणे एहि व्रत के नामकरण छठि व्रत भ गेल। इ पावैन एक बरख मे दु बेरा मनायल जाएत अछि। पहिल बेरा चैत्र मे आ दोसर बेरा कातिक मे। चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाऔल जायबला छैठ पर्व के चैती छैठ आ कातिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनायल जायवला पर्व के कातिक छैठ कहल जाइत अछि। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि आ मनोवांछित फलप्राप्ति के लेल इ पर्व मनाऔल जाइत अछि।
कहिया छै छठ 2024 में - Chhath Puja 2024 Date
5 नवम्बर 2024 : नहाय-खाय, अरबा-अरबाइन
6 ववम्बर 2024 : छठि व्रतक खरना,
7 ववम्बर 2024 : छठि व्रतक सायंकालीन अर्धदान
8 ववम्बर 2024 : छठि व्रतक प्रातःकालीन अर्धदान
छैठ व्रतके संबंध मे बहुते रास कथा प्रचलित अछि; एहिमे सं एकटा कथाक अनुसार जेखन पांडव अपन सबटा राजपाट जुआ मे हारी गेलाह, तखन द्रौपदी छठि व्रत रखलनी। तखन हुनक मनोकामना पूर्ण भेलनि आ पांडव के राजपाट आपस भेट गेलनि। इ व्रत खासतौर पर मिथिलांचल संगे पूरा बिहार और एकर आस-पासक प्रदेश मे प्रचलित अछि। ओना आब इ पावनि संपूर्ण भारत वर्ष मे मनायल जाइत अछि।
धर्म शास्त्र मे इ पर्व सुख-शांति, समृद्धि के वरदान आ मनोवांछित फल दय बला कहल गेल अछि। लोकपरंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठि मइया के संबंध भाई-बहिन के छन्हि। लोक मातृ के षष्ठी के पहिल पूजा सूर्य केने छथि। छैठ पावैन के परंपरा मे बहुते गहिर विज्ञान छिपल अछि, षष्ठी तिथि (छैठ) एकटा विशेष खगौलीय अवसर अछि। एहि समय सूर्य के पराबैगनी किरण पृथ्वी के सतह पर सामान्य सं बेसी मात्रा मे एकत्र भ जाइत अछि। हिनक संभावित कुप्रभाव सं मानव के यथासंभव रक्षा करवाक सामर्थ्य एहि परंपरा मे अछि।
इ पर्व चाइर दिनक अछि। भरदुतिया के तेसर दिन सं इ आरंभ होइत अछि। पहिल दिन सैंधा नुन, घी सं बनायल गेल अरवा चाउर आ कदिमा'क सब्जी प्रसादक रूपमे लेल जाइत अछि। अगिला दिन सं उपवास आरंभ होइत अछि। एहि दिन राइत मे खीर बनय अछि। व्रत केनिहार रातइमे यैह प्रसाद लइत छथि। तेसर दिन डूबैत सूर्यके अर्घ्य अर्पण कैल जाइत अछि आ अंतिम दिन उगैत सूर्यके अर्घ्य चढ़ायल जाइत अछि। एहि पावनि मे पवित्रता'क बड़ ध्यान राखल जाइत अछि। जिनका घर मे इ पूजा होइत अछि, ओतय गीत-नाद सोहो गायल जाइत अछि। एहिके शुरुआत कातिक शुक्ल चतुर्थी के आ समाप्ति कातिक शुक्ल सप्तमी के होइत अछि। एहि दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटा के व्रत राखय छथि। पहिला दिन कातिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप मे मनायल जाइत अछि। सबसं पहिले घर के साफ क निक-पोइत ओकरा पवित्र बना लेल जाइत अछि। एहि पश्चात छैठव्रती स्नान क पवित्र तरीका सं बनल शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण क व्रत के शुरुआत करय छथि। घर के सब सदस्य व्रती के भोजनोपरांत भोजन ग्रहण करय छथि। दोसर दिन कातिक शुक्ल पंचमी के व्रतधारी दिन भरी के उपवास रखवा के बाद शांझ के भोजन करय छथि जेकरा ‘खरना’ कहल जाइत अछि। प्रसाद'क रूप मे कुसियार के रस मे बनायल गेल चाउर'क खीर'क संग दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है।
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तेसर दिन कातिक शुक्ल षष्ठी के दिन म छैठ प्रसाद बनायल जाइत अछि। प्रसादक रूप मे टिकरी, भुसवा, पेरा आदि बनायल जाइत अछि। शांझ के पूरा तैयारी और व्यवस्था क बाँसक छिट्टा मे अर्घ्य के सूप, कोनियां सजायल जाइत अछि। सब छैठव्रती अपन लग-पासक पोखरी या नदी कात इकट्ठा भ सामूहिक रूप सं अर्घ्य दान संपन्न करय छथि। चारिम दिन कातिक शुक्ल सप्तमी के भोरे उदियमान सूर्य के अघ्र्य देल जाइत अछि।
हिंदू धर्म के देवता मे सूर्य एहन देवता छथि जिनका मूर्त रूप मे देखल जा सकैत छनि। सूर्य के शक्ति के मुख्य श्रोत हुनक पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा छन्हि। छैठ में सूर्य के संगे-संग दुनु शक्तिय के संयुक्त आराधना होइत अछि। भिनसर काल मे सूर्य के पहिल किरण (ऊषा) और शांझकाल मे सूर्य के अंतिम किरण (प्रत्यूषा) के अघ्र्य द के दुनु के नमन कैल जाइत अछि।
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