एक बेरा मिथिलाक राजदरबार मे दिल्लीकऽ एकटा पहलवान आयल। सात फुट ऊँच भारी डील-डौल बला, मजबूत शरीर बला पहलवान छल जेकरा बांह कऽ माछ देखते बनैत छल।
मिथिलानरेश कला के बहुत प्रेमी छलखिन। पहलवान कऽ दरबार मे बड़ आदर कऽ संग आनल गेल। महाराज ओकर स्वागत केलैथ।
पहलवान कनि कारगर बोल मऽ - मिथिला नरेश! हम दिल्ली सं आयल छी आ हमर नाम ज्वाला सिंह छी।
दिल्ली मे हमरा मुकाबलाक कुनो पहलवान नै ऐछ। हम लगपासक राज्य के सब पहलवान के कुश्ती मे पछाइड़ चुकल छी आ आब मिथिला एलौ हन। हम सुनलौ जे अहाँक राज्य मे एक सं एक मल्ल अछि।कनि हमहू त देखू जे हमरा कियो टक्कर दऽ सकैत ऐछ या नै।
मिथिला नरेश - तोरा अपना शक्ति के घमंड छौ। तु इ किया बिसैर जाइत छिंहि जे संसार मे सब कलाक एक सं बड़ा एक मर्मज्ञ पैल जाइत छैक।
ज्वालासिंह बाजल - महाराज द्वंद्वकला मे हमरा आय धरि कियो एहन नै भेटल जे हमरा पराजित कऽ सकै। अवश्य एहने बात हेतै मुदा एकर अर्थ इ त नै जे तु कहियों पराजिते नै हेमहि। हमरा तऽ यैह लागैत ऐछ।
फेर ठीक छै काइल प्रातः अखाड़ा मे तोहर भुजाक शक्ति आ पैतरा के आकलन हेतौ। मिथिला नरेश कहलैथ।
मिथिलाक कतेको मल्ल ओकरासँ द्वंद्वयुद्ध के तैयार छल। राजा के आबिते पहिल कुश्ती शुरू भऽ गेल। ज्वालासिंह वास्तव मे गजबक पहलवान छल। ओ क्षणे भैर मे प्रतिद्वंद्वी के चित कऽ देलक। ओकरा बाद तऽ और चाइर टा पहलवान ओकरा आगू घुटना टेक चुकल छल।
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आब मिथिलाक सम्मान खतरा मे छल। राजा चिंतित छलैथ। दोसर दिन तऽ औरो गजब भेल। मिथिलाक कुनो भी मल्ल ज्वालासिंह सं भिड़बाक लेल तैयारे नै छल। आब महाराज बुइझ गेला जे मिथिलाक सम्मान कियो नै बचा सकत।
राजा कहै छैथ - कि मिथिला मे कियो एहन मल्ल नै जे ज्वाला सिंह के दर्प कऽ चूर-चूर कऽ सकै। कि हम अपन मल्ल कऽ कयर्थे घी-दूध आदि खुएलौ हन। एहि प्रकार तऽ मिथिलाक सम्मान नै बचत।
दरबार मे गोनू झा सेहो छलैथ। हुनका महाराजक लटकल मुंह देख कऽ नीक नै लगलनि। आब हुनका किछ करय परतैन। महाराज, हम ज्वालासिंह सं मल्ल्युद्ध करब। गोनू झा गरैज कऽ बजला - यद्यपि इ हमर क्षेत्र नै छी कियाकि हम बचपन मे कुश्ती लडैत छलौं तऽ हमरा पर कुनो जिन्न सवार भऽ जाइत छल।
प्रतिद्वंद्वी कऽ हाथ-पैर टूइट जाइत छल। तहन घरक लोक हमरा कुश्ती लड़य सं रोइक देलक। फेर एक दिन ज्योतिषी बतेलक जे हमरा हाथो लड़ैत-लड़ैत कुनो मानहत्या सेहो भऽ सकैत अछि। तैं हम लड़ैत नै छलौं मुदा आय बात मिथिलाक सम्मानक छीयै तऽ हम अवश्य लरब।
महाराज बुइझ गेलैथ जे गोनू झा बुद्धिक कुनो प्रयोग कऽ के ओहि पहलवानक गर्व चूर करय चाहैत छैक।
हँ भाई ज्वाला सिंह। गोनू झा बजला - कुश्ती के तऽ विद्वान छं आ सैकड़ों कुश्ती जीतने सेहो हेमह। कुश्ती कऽ सरगम तऽ जानैते हेमहि।
स....... सरगम! ज्वाला सिंह अचकचायल।
हे, सरगम नै जानैत छिहि कुश्ती कऽ ? केहन पहलवान छं?
जानैत छीयै न ! सब जानैत छी। ज्वाला सिंह कऽ कहय पड़ल। भरल दरबार मे ओ केना कैह दयतय जे ओ मल्ल भऽओ कऽ कुश्तीक सरगम नै जानैत।
तऽ फेर काएल हमर कुश्ती पंचम स्वर, द्रुत लय आ पटक ताल सं होयत। संगे कालभैरब राग मे होयत। गोनू झा बाजलैथ।
ज्वाला सिंह सहमति मे मुड़ी तऽ हिला देलक मुदा ओकर दिल लरैज उठल। रात्रिक भोजन करबाक उपरांत आराम कऽ रहल छल कि दरबारी बाजल-काएल तऽ वास्तव मे आनन्द आबि जाएत।
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असली कुश्ती तऽ काइलहे देखबाक भेटत। गोनू झा पटक ताल मे कनि काच्च छथि मुदा द्रुत लय मे हुनकर जवाब नै। अहाँ पलको नै झपकेबै कि अहाँक रीढ़क हड्डी मे दरार पैर जायत। कि गजबक पैंतरा छैन हुनकर।
ज्वाला सिंह ठोड़ पर जीभ फेरैत।
दरबारी - अहाँ कोन ठाम सीखलियै इ मल्ल विद्या ?
दिल्लीए सं!
हूँ। दिल्ली मे दांव-पेंच तऽ सब सिखाओल जाइत ऐछ। मुदा जाबे धरि लय, तालक पता नै चलत तऽ कि सिखलौ। गोनू झा तऽ राग काल भैरब के उस्ताद छथिन आ काल भैरब तऽ अहाँ अपने जानैते छीयै बड़ क्रोधी मल्ल छीयै।
ज्वाला सिंह के तऽ किछ समैझे मे नै आबि रहल छल।
आब..... हमरा आराम करय दे। भोरे जल्दी उठानाय छै।
दरबारी हँसैत ओतय सं चैल गेल।
भोरे अखाड़ा मे गोनू झा शेरक भांति गरैज रहल छल। चारों दिस बहुते भीड़ जुटल छल।
मिथिला नरेश अपन गद्दी पर बैसल छलैथ। मुदा दिल्ली के पहलवान ज्वाला सिंह के केतौ अता-पता नै छल। सगरो मिथिला मे खोजलो पर ओ केतौ नै भेटल।
महाराज बुइझ गेलखिन जे गोनू झा के विजेता घोषित कऽ देल गेलैन आ बहुते रास पुरस्कार सं सम्मानित कैल गेलनि।
महाराज के पूछला पर गोनू झा हँसैत बतेलखिन जे ओ ज्वाला सिंह कऽ सुर, लाय, तालक उलझन मे तऽ द'ए देने छलियै।
राइत कऽ एकटा विश्वस्त दरबारी द्वारा ओकरा अतेक भयभीत कऽ देल गेल जे ओ भाइगे गेला मे भलाई बुझलक।
महाराज प्रसन्न भऽ गेलाह। मिथिलाक सम्मान जे बइच गेल छल।
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