Ke Patiaa Lay Jaayat Re Lyrics by Vidyapati
के पतिआ लए जाएत रे
मोरा पियतम पास,
हिय नहिं सहए असह दुःख रे
भेल सावन मास।
एकसरि भवन पिया बिन रे
मोरा रहलो न जाय,
सखि अनकर दुख दारुन रे
के पतिआय।
मोर मन हरि हरि लए गेल रे
अपनो मन गेल,
गोकुल तजि मधुपुर बस रे
कत अपजस लेल।
विद्यापति कवि गाओल रे
धनि धरु पिय पास,
आओत तोर मन भावन रे
एहि कातिक मास।
के पतिआ लए जाएत रे अर्थ
हमर चिट्ठी हमर प्रियतम लग के ल' जायत? सावनक मास आबि गेल, आब हमर हृदय असहनीय दुख नहि सहैत अछि। हम अपन प्रियतमक बिना एहि भवन मे नहि रहि सकैत छी। हे सखी ! दोसरक दारुण पीड़ा पर के विश्वास करत। कृष्ण हमर मोन केँ हर के अपने संग ल गेलाह, हमर (समर्पण) मोन सेहो अपना संग ल' गेलाह। गोकुल छोड़ि मथुरा में रहि क कृष्ण एतेक बदनामी किएक अर्जित केलनि? कवि विद्यापति गायन करैत कहैत छथि जे हे सुंदरी! अहाँ प्रियतमक आगमनक आशा राखु। अहाँक मनभावन साजन एहि कार्तिक मास मे आबि जेताह।
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