गुरुवार, 4 जून 2020

जाइत पेखलि नहायलि गोरी - लिरिक्स

रचनाकार - विद्यापति

जाइत पेखलि नहायलि गोरी।
कल सएँ रुप धनि आनल चोरी।।

केस निगारहत बह जल धारा।
चमर गरय जनि मोतिम-हारा।।

तीतल अलक-बदन अति शोभा।
अलि कुल कमल बेढल मधुलोभा।।

नीर निरंजन लोचन राता।
सिंदुर मंडित जनि पंकज-पाता।।

सजल चीर रह पयोधर-सीमा।
कनक-बेल जनि पडि गेल हीमा।।

ओ नुकि करतहिं जाहि किय देहा।
अबहि छोडब मोहि तेजब नेहा।।

एसन रस नहि होसब आरा।
इहे लागि रोइ गरम जलधारा।।

विद्यापति कह सुनहु मुरारि।
वसन लागल भाव रुप निहारि।।

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