माधव हम परिणाम निराशा
तुंहूँ जगतारन दीन दयामय अतए तोहर विसवासा।
आध जनम हम नींद गमायलु जरा सिसु कत दिन भेला,
निधुवन रमनि-रभस-रंग मातनु तोंहे भजब कोन बेला।
कट चतुरानन मरि-मरि जाओत न तुअ आदि अवसाना,
तोंहे जनमि पुनि तोंहे समाओत सागर लहरि समाना ।
भनहि विद्यापति सेष समन भय तुअ बिनु गति नहीं आरा,
आदि अनादिक नाथ कहओसि अब तारन भार तोहारा।
रचनाकार : विद्यापति
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