Ankur Tapan Tap Jadi Jarab Vidyapati Geet
अंकुर तपन ताप जदि जारब कि करब बारिद मेघे।
ई नव जोबन बिरह गमाओब कि करब से पिया गेहे॥
हरि हरि के यह दैब दुरासा।
सिंधु निकट जदि कंठ सुखाएब के दुर करब पियासा॥
चंदन तन जब सौरभ छोड़ब ससधर बरखब आगी।
चिंतामनि जब निज गुन छोड़ब कि मोर करम अभागी॥
साओन माह धन-बिंदु न बरिखब सुरतरु बाँझ कि छाँदे।
गिरिधर सेबि ठाम नहिं पाएब विद्यापति रहु धाँदे॥
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