Jahan Jahan Pad Jug Dhari
जहाँ-जहाँ पद-जुग धरई।
तहिं-तहिं सरोरुह झरई॥
जहाँ-जहाँ झलकए अंग।
तहिं-तहिं बिजुरि-तरंग॥
कि हेरलि अपरुब गोरि।
पइठलि हिअ मधि मोरि॥
जहाँ-जहाँ नयन विकास।
ततहिं कमल परकास॥
जहाँ लहु हास संचार।
तहिं-तहिं अमिअ-बिथार॥
जहाँ-जहाँ कुटिल कटाख।
ततहिं-मदन-सर लाख॥
हेरइत से धनि थोर।
अब तिन भुवन अगोर॥
पुनु किए दरसन पाब।
अब मोर ई दु;ख जाब॥
विद्यापति कह जानि।
तुअ गुन देहब आनि॥
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