Ki Ham Sanjhak Ek Sari Tara
की हम साँझक एक सरि तारा भादव चौठिक ससी।
इथि दुहु माझ कोन मोर आनन जे पहु हेरसि न हँसी॥
साए-साए कहह-कहह कन्हुँ कपट करह जनु कि मोर भेल अपराधे।
न मोय कबहुँ तुअ अनुगति चुकलि हुँ वचन न बोलल मंदा।
सामि समाज पेम असुरंजिए कुमुदिनि सन्निधि चंदा॥
भनए विद्यापति सुन बर जौबति मेदनि मदन समाने।
राज सिवसिंघ रूपनारायण लखिमा देइ रमाने॥
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