शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

की हम साँझक एक सरि तारा लिरिक्स - विद्यापति

Ki Ham Sanjhak Ek Sari Tara 

की हम साँझक एक सरि तारा भादव चौठिक ससी। 
इथि दुहु माझ कोन मोर आनन जे पहु हेरसि न हँसी॥ 

साए-साए कहह-कहह कन्हुँ कपट करह जनु कि मोर भेल अपराधे। 

न मोय कबहुँ तुअ अनुगति चुकलि हुँ वचन न बोलल मंदा। 
सामि समाज पेम असुरंजिए कुमुदिनि सन्निधि चंदा॥ 

भनए विद्यापति सुन बर जौबति मेदनि मदन समाने। 
राज सिवसिंघ रूपनारायण लखिमा देइ रमाने॥ 

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