किसान गीत
मूनै छह आँखि तऽ रहि जाइये परती
फोलै छह आँखि तऽ नाचैये धरती
तोरे ले‘
भेल तोरे ले‘ नवका विहान
जागह जागह हओ भइया किसान-2
हाथमे तोरा बास अमृत केर
भूखल मरबह कोना
तोरे सन बेटा तें धरती
उगलै मोती सोना
मनुखक चारू धाम ओहि ठाम
घाम सहि कऽ तों कएलह काम।। जागह जागह
अनकहि ले छऽ अपर्तित जीवन
तदऽपि बड़द टा संगी
बस्तर तन पर मात्र लंगोटी धन्य धन्य बजरंगी
हे हलधर धन भरलह घर-घर
पतिराखन हनुमारन जागह-जागह
श्रमक उमंग उठल छह मनमे
धमनीमे तुफान,
एको पल अछि चैन तोरा नइ
जा भूखल इनसान
माटिक लाल लाज दुनियाके
तोरा पर अभिमान । जागह-जागह
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