मिथिलाधरोहर : मिथिलांचल मे वैवाहिक रीति-रिवाज थोर भिन्न होइत अछि। बेसीकाल हमर सबक जीवन शैली सँ अनचिन्हार लोग के हमरा सबक बियाहक विध - व्यवहार बेतुक और दीर्घावधि लागैत छै। मुदा इ सर्वविदित अछि जे मैथिल दम्पति मे जे पारस्परिक प्रेम भाव होइत छै, एक दोसरके प्रति जे सम्मान के भावना होइत छै, ओ गौर करय वला गप्प अछि। कखनो- कखनो निहायत बेमेल विवाह सेहो सफल भ जाइत छै।
फेर कोहबर मे नैना -जोगिन। जाहिमे होय वाली पत्नी और साईर के बिना देखने (दुनु कपड़ा के नीचा नुकैल रहय छथि) एकटा के चुननाय।
एहिमे लोग के बहुते मनोरंजन त होइते अछि संगे बर के पारखी नजैर समझ मे आबैत अछि। एकर बाद समाज परिवार के बुजुर्ग'क संगे मिल क ओठंगर कुटल जाईत अछि। मतबल सगरो समाज के स्वीकृति के संग गृहस्त जीवन मे प्रवेश के अनुमति। चाहे ओठंगर कूटनाय हो या भाईक संग मिल क धानक लावा छीरयेनाय, एहि सबटा विधक पाछु कुनो नय कुनो व्यवहारिक तर्क होइत अछि।
फेर आमक लकड़ि के प्रज्वलित क ओहिके समक्ष मन्त्र द्वारा बियाह संपन्न करवैल जाइत अछि ओहि अग्नि पर ओठंगर मे कुटल धानक चाउर सँ बर खीर बनाबय छथि अर्थात गृहस्तथी मे पूर्ण सहयोग के तैयारी। वधु के पहिल सिंदूर दान 'भुसना सिंदूर' सँ कैल जाइत अछि। मतलब एखन बर के परीक्षा संपन्न नय भेल ऐछ!
एहि विवाह के उपरांत बर - वधु कोहबर मे जाइत छथि। कोहबर के चित्र द्वारा सजायल गेल रहय छै जाहिमे सांकेतिक रूप मे गृहस्त जीवनक महत्व के देखायल जाइत अछि। एहि दिन सुहाग शैया नय सजायल जाइत अछि बल्कि जमीन पर सुतवाक व्यवस्था कैल जाइत ऐछ। कोहबर मे विधकरी वघू के ल'क आबय छथि और बर - वधु के झिझक के तोड़य के माध्यम बनैत छथि। अगिला तीन दिन धरि यैह क्रम चलैत अछि। बर - कन्या बिधकरी के माध्यमे सँ भेटैत अछि एहि तीन दिनक दौरान वर - वधु के भोजन मे नुन खाय लेल नय देल जाइत अछि। विध- वैबहारक दौर पूरा दिने चलैत रहैत ऐछ। बर-वधु एक दोसर के निक जंका बुईझ लैत छथि। हँ, बरयाति गन बर के छोइड़ के वापस चैल जाइत छथि।
असल विवाह चारिम दिन पुनः होइत अछि, जेकरा चतुर्थी कहल जाइत छैक। चतुर्थी के उपरांत लोग सब अपन सुविधानुसार आ शुभ-अशुभक मुताबिक बिदा कैल जाइत छैक। जेकरा द्विरागमन कहल जाइत अछि।
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Tags : Maithil Vivah Unique Tradition # Vidh Vaivhar
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