मिथिलाक चौरचन (चौठचंद्र) पावनि आ संगे हरितालिका तीज 4 सितम्बर के मनायल जायत। तीन सितम्बर दिनक साढ़े तीन बजे सँ तृतीया लगी जायत। एही दिन दिनक 2:25 बजे सँ हस्ता नक्षत्र सेहो प्रारंम्भ भ रहल अछि, जे 4 सितम्बर के साँझ 4 बाजीके 18 मिनट धरि रहत। शैनदिन उदया तिथि मे तृतीया नय भेटवाक कारण रैवदिन के इ पावनि मनायल जा रहल अछि। रैवदिन के तृतीया साँझ 4:52 बजे तक अछि।
ताहिलेल व्रत धारि के एही समय सँ पहिले पावनि पूजा करय परत। कियाकि एहीके उपरांत सँ चौठ लगी जायत। एही दिन साँझ मे चौठ भेटवाक कारण चौरचन पावनि रैवदिन साँझ के मनायल जायत। एही दिन गणेश चतुर्थी व्रत सेहो अछि।
4 के साँझ मे मनत मिथिलाक लोक पर्व चौठ चंद्र : 4 सितम्बर के साँझ मे मिथिलाक लोक पर्व चौरचन मनायल जायत। सूर्यास्तक उपरांत चंद्रमा के अर्घ्य देल जेतनी। एहीके लेल घरक अांगना या छत पर ठांव कयल जाइत अछि गोरिया (चिकनी) माटि सँ, तखन ओहि पर चाउरक पिठार सँ भिन्न-भिन्न प्रकारक अरिपन उरेहल जायत अछि। भगवान केर प्रसाद स्वरूप घर मे बनल पिरुकिया, टिकुरी, खीर, पूड़ीक अलावा दही फल आ पान सुपारी आदि सँ अर्घ्य देल जायत। एही बेरा जे व्रतधारी दुनु व्रत करय छथि हुनका सोमदिन के पारण करय परत। कियाकि तीज के पारण अगिला दिन होयत।
मैथिली अनुवाद : प्रभाकर मिश्रा, स्रोत : प्रभात खबर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !