मिथिला धरोहर : अगहन शुक्ल मासक रैब सँ आरंभ भऽ बैसाख धरि चलै बला मिथिलाक अति श्रद्धा भक्ति सँ भरल अहि पावैन के मिथिलानी स्त्रीगन अपन परिवारक सुख-स्मृद्धि आ मनोवांछित फलप्राप्ति लेल मनाबैय छथि। अहि पावनिक अवधि अगहन सँ बैसाख धरि रहैत अछि अर्थात छः मास, अहि छः मास मे जतेको रैब परैत अछि व्रती ओतेक दिन एकसंझा करैत छथि। कियो गोटे मास मे एकटा रैबक एकसंझा सेहो करैत छथि आ आरो रैब के अनोना।
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पाबैन सँ एकदिन पहिले मिथिलानि स्त्रीगन अर्बा-अर्बाईन खाई छथि। रैब दिन भोरे-भोर पावैन केनिहार व्रती नहा-सुना क पहिने सँ नीपल स्थान पर पवित्र बासन मे ठकुआ बना पवित्र डाली मे डांट लागल पानक पात, सुपाड़ी, मखान, फल, फूल मधुर लडडू केरा बताशा संगे अरघौती बद्धी आरतक पात आदि सजा गोसाऊन भगवती केर पूजा अर्चना कऽ नवका कपड़ा सँ डाली झांपि कऽ गामक पोखरीक घाट जाय छथि। बहुतो व्रती के अंगना आयल डाली पोखरीक घाट पर छठि'क घाट जंका पसारल जाइत अछि। ताहि उपरांत व्रती स्त्रीगन जल मे ठार्ह भऽ दिनकर भगवान के डाली लऽ अर्घ्य दान दै छथि, पोखैर मे डुबकी लगा कऽ घाटे पर पीढी मे पिठार आ सेनुर लगा कलशस्थापन करै छथि, धूप-दीप जरा फूल, दुईभ, अछत, चानन सँ दिनकर भगवान के पूजा क बेरा-बेरी सब अंगना सँ आयल नैवेद्यक डाली के उसगरल जाइत अछि।
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अहि पावैन मे व्रती सूर्य देवताक माहात्म्य पर आधारित कथा सेहो सुनय छथि। कथा सम्पन भेला'क बाद दिनकर के कऽल जोइर प्रणाम कऽ सब अपन-अपन डाली लऽ आंगन आबि जाय छथि और डाली क गोसाऊनिक आगू मे राखि सबरिवार गोसाऊन के गोर लागी कऽ प्रसाद ग्रहण करै छथि। डाली के आरतक पात के घरक मोख पर साटि देल जाइत अछि।
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