रविवार, 4 फ़रवरी 2018

Baba Singheshwar Sthan | सिंहेश्वर स्थान मधेपुरा: विष्णु द्वारा स्थापित अछि शिवलिंग

मधेपुरा जिला मुख्यालय सँ १६ किलोमीटरक दूरी पर स्थित सिंघेश्वर स्थान ( Singheshwar Sthan, Madhepura ) मे भगवान शिव केर दिव्य शिवलिंग स्थापित छनि। जे अपन ऐतिहासिक आ धार्मिक महत्वक कारण बहुते प्रसिद्ध अछि। कहल जाइत अछि जे सिंहेश्वेर के अहि शिव मंदिर के कुनो काल मे स्वयं भगवान विष्णु जी बनबेने छलखिन। अनुश्रुतिक अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मक निमित्‍त पुत्रेष्टि यज्ञ सेहो एतय भेल छल।

सिंघेश्वर स्थानक सन्दर्भ वराह पुराण मे सेहो देखल गेल अछि। पुराणक अनुसार अहि स्थान पर घनगर जंगल होइत छल। कतेको चरबाहा एतय घास चरबाक लेल आबय छल। ओहि मवेशि मे एकटा एहन गाय छल जे घास चरै के क्रम मे एकटा ख़ास स्थान पर ढांड़ भ अपन थन (स्तन) सँ प्रति दिन दूध गिरा दै छल। इ सब दिनक घटना छल। लोग इ देख क अचंभित छल। एक दिन लोग सब ओहि स्थान के खोदलक जतय सँ एकटा शिव लिंग भेटल। लोग सब ओहि दिन सँ ओहि शिव लिंग के पूजा-पाठ केनाय शुरू क देलक। फेर धीरे-धीरे ओहि स्थान पर एकटा शिव मंदिर बनि क तैयार भ गेल जे आगू चैल क सिंघेश्वर स्थान भ गेल। मंदिर बनेनिहार भागलपुर के एकटा व्यापारी छल जिनक नाम हरि चरण चौधरी छलनि।
वराह पुराण मे एकटा दोसर कथा सेहो अछि जे अहि प्रकार अछि - एक बेरा भगवान विष्णु, भगवान ब्रम्हा और भगवान इंद्र, देवों के देव महादेव सँ एगो महत्वपूर्ण वैश्विक घटनाक पहलू पर विचार विमर्श करबाक लेल कैलाशपुरी गेला। मुदा भगवान शिव अपन नन्दी संग कैलाशपुरी सँ केतउ अज्ञात जगह चली गेल छलखिन। शिव के ओतय न देखी ओ मायूस भ गेला।

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ओमहर शिव अपन नन्दी संगे एकटा जंगल मे ध्यान करय लगला। संगे नन्दी के कैह देने छलखिन जे हमरा बारे मे केकरो पता नै चलबाक चाहि जे हम एतय ध्यान मे लीन छिं।तहिना भेल नन्दी एगो जगह बैठ क पहरेदारी करै लगला। ब्रम्हा, विष्णु और इंद्र शिव के ताकैत-ताकैत ओतय पहुंच गेला। नन्दी सँ शिव केर पता पूछला मुदा नन्दी हुनका सब के शिव केर ठेकान नै कहलखिन।

शिव जी तीनो देवगण के चिह्न लेलनि। ओ शीघ्र  एकटा नमहर सिंग बला हिरनक रूप मे आबी गेला। तीनो देवों सेहो ओहि विचित्र नमहर सींघ बला हिरन के देखी क शिव के चिन्ह लेलनि। ओ सब ओहि हिरन के पकड़बाक लेल दौड़ला, इंद्र सिंग के उपरका भाग के पकड़लनी, ब्रम्हा जी बीचला भाग के और विष्णु जी सिंघ'क जैड़ के पकरलखिन। आब तीनो देवगण बहुते ताकतक संग हिरन के अपना दिस खींचला। फेर एकाएक ओ हिरन बिलै (गायब) गेल और स्वर्ग सँ आकाशवाणी भेल जे अहाँ सब भगवान शिव के पेबा मे असमर्थ भेलहुँ।

इंद्र के हाथ मे जे सिंघक भाग छल ओकरा  स्वर्ग में इंद्र स्थापित क देलथि। ब्रम्हा जी सेहो अपन हिस्सा बला सिंघ के स्वर्ग मे स्थापित क देलखिन जहनकी विष्णु जी अपन हिस्सा बला सिंघ के पृथ्वी पर स्थापित क देलखिन।

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विष्णु जी द्वारा पृथ्वी के जाहि स्थान पर सिंघ के स्थापित कैल गेलनि वैह जगह कालान्तर मे सिंघेश्वर स्थान कहायल। यैह कारण अछि जे शिव केर पूजा एतय वैष्णव संस्कृति सँ होइत छनि। वराह पुराण'क अनुसार आहिक दु गो सीमा एकटा मुन्द्रान्चल शिखरक उत्तर मे आ एकटा मुन्ज्वर शिखरक दक्षिण मे अवस्थित अछि।

वर्तमान मे सिंघेश्वर मंदिरक संचालन बिहार सरकार द्वारा स्थापित ट्रस्ट'क द्वारा होइत अछि। एवं मंदिरक सम्पति के सार्वजनिक घोषित क देल गेल अछि। 



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