मिथिला के प्रसिद्ध शक्तिस्थल मे सहरसा जिलाक महिषी मे अवस्थित उग्रतारा स्थान प्रमुख अछि। मंडन मिश्र केर पत्नी विदुषी भारती सँ आदिशंकराचार्य के शास्त्रार्थ एतय भेल छल जाहिमे शंकराचार्य केर पराजित भेल पड़ल छलनि। उग्रतारा स्थान कोसी प्रमंडलीय मुख्यालय सँ १८ किमी पश्चिम धर्ममूला नदी के तट पर अवस्थित अछि।
शक्ति पुराण के अनुसार माहामाया सती केर मृत शरीर के ल'के शिव बताह जंका ब्रह्मांड मे घूमि रहल छलथि। एहिसँ होय बला प्रलय के आशंका के देखैत विष्णु जी द्वारा माहामाया केर मृत शरीर के अपन सुदर्शन सँ ५२ भाग मे विभक्त क देल गेल छलनि। सती केर शरीरक जे हिस्सा धरातल पर जेतय गिरल ओ सिद्ध पीठक रूप मे प्रसिद्धि भेटल। महिषी उग्रतारा स्थानक संबंध मे एहन मान्यता छैक जे सती केर बायां नेत्र भाग एतय गिरल छलनि।
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मान्यता इहो छैक जे ऋषि वशिष्ठ उग्रतप के बदौलत भगवती केर प्रसन्न केलनि। हुनक प्रथम साधक के अहि कठिन साधनाक कारणे भगवती वशिष्ठ अाराधिता उग्रतारा केर नाम सँ जानल जाइत छथि। उग्रतारा नामक पाछु दोसर मान्यता अछि जे माता अपन भक्त के उग्र सँ उग्र व्याधि के नाश करै बाली छथि। जाहि कारण भक्त द्वारा हुनका उग्रतारा केर नाम देल गेलनि।
महिषी मे भगवती तीनों स्वरूप उग्रतारा, नील सरस्वती आ एकजटा रूप मे विद्यमान छथि। एहन मान्यता अछि जे बिना उग्रतारा केर आदेशक तंत्र सिद्धि पूर्ण नै होइत अछि। यैह कारण अछि जे तंत्र साधना केनिहार एतय अवश्य आबय अछि। नवरात्रा मे अष्टमी के दिन एतय साधक के भीड़ लागय अछि।
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एतय पहुंचबाक इच्छुक लोग सहरसा सँ आटो या फेर बस सँ एतय पहुंचय अछि। बाकी तीनो दिस सँ इ स्थान तटबंध सँ घिरल अछि। एके दिसन सँ पहुंचबाक रास्ता हेबाक बावजूद एतय पहुंचनाय कठिन नै अछि। एतय बिहारक अतिरिक्त नेपाल के श्रद्धालु सेहो बड़का संख्या मे पहुंचैत अछि।
मंदिरक निर्माण सन १७३५ मे रानी पद्मावती केने छलथि। इ स्थल पर्यटन विभागक मानचित्र पर अछि।
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