गोनू झा खेती-बाड़ी सँ कम्मे मतलब राखथि । राज दरबारक काज सँ फुर्सति नहि रहनि तथापि बाप-पुरखाक छोड़ल जमीन पर येनकेन प्रकारेण खेती करथि । एहि बेर किछु समय सँ हुनका खुट्टा पर बड़द नहि रहनि । खेती कोनो खास नहि रहनि आ तें गोनू बड़द कीनब आवश्यक नहि बुझथि । तथापि गौंआ सभ बेर-बेर पूछि दैन जे गोनू अपने बड़द कहिया लेबैक? ताहि समय मे खुट्टा पर मालजाल राखब सम्पन्नताक निशानी मानल जाइक आ एहना स्थिति मे गोनू कें बड़द कीनब अति आवश्यक भऽ गेलनि ।
एक दिन नियारि कें गोनू बड़न किनबाक हेतु भिनसरे गाम सँ चललाह । गाम सँ तीन कोस पर हाट रहैक । गोनू हाट पर पहुँचला आ बड़ी काल धरि घुमला-फिरलाक बाद एकटा बड़द पसिन्न केलनि आ ओकरा कीनि लेलाह । आब गोनू ओकर डोरी धेने गाम दिस विदा भेलाह । गामक सिमान पर अबैत-अबैत करीब चारि बाजि गेल । एम्हर रस्ता मे जे कियो देखैन से पूछि दैन जे बड़द कतेक मे भेल? कय दाँतक अछि? कय माटि बहल अछि? आदि-आदि । जबाव दैत-दैत गोनूक मोन अकच्छ भऽ गेल रहनि । आब गामक निकट छलाह आ स्वभावत: एहने प्रश्नक उम्मीद गोनू कें गामो मे छलनि । गोनू गामक पछवारि सिमान पर रहथि आ हुनक घर रहनि पुबारि टोल मे । एहना स्थिति मे पूरा गाम के कटैत हुनका अपन घर पर जेबाक रहनि । रस्ता मे जबाव दैत-दैत गोनू अकच्छ भऽ गेल रहथि आ तें ओ गामक सिमान पर कने काल विलमलाह आ किछु सोचय लगलाह ।
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कनेक काल सोचलाक बाद तो लगे मे एकटा गाछ पर चढ़ि गेलाह आ चिकरय लगलाह – “लोक सभ दौगह हौ ! हैया बाघ छै हौ !…। बाघ हमरा घेर नेने अछि हौ !…” गोनूक ई आवाज सुनैत देरी सौंसे गामक लोक दौगल । जकरा जएह हाथ लगलैक, सएह हथियार लऽ लेलक । एवं क्रमेण गामक सिमान पर लगभग पूरा गामक मेला लागि गेल । मुदा सभ देखलक जे एतय कोनो बाघ नै छैक आ गोनू गाछक एकटा ठाढ़ि पर बैसि कऽ निश्चिंत सँ तमाकुल चुना रहल छथि ।
हुनक ई हावभाव देखि लोक कें ई बुझवा मे भांगठ नहि रहलैक जे गोनू हमरा सभ कें छका देलनि, परन्तु किएक? सभक मोन मे ई प्रश्न छलैक । आखिर किछु गोटा पुछिये देलखिन गोनू सँ जे अपने एना कोना चिकरय लगलहुँ? एतय तँ कोनो बाघ नहि अछि? की अहाँ दिने मे सपना तँ नहि देखैत छलहुँ?
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उत्तर मे गोनू बजलाह – हम अपने सभ कें व्यर्थ मे परेशान कयल ताहि लेल सर्वप्रथम हम माँफी चाहैत छी । वस्तुत: हम आइये एकटा बड़द लेलहुँ अछि आ भरि रस्ता एकर दाम, गुण आदि कहैत-कहैत परेशान भऽ गेलहुँ अछि । बड़द अहाँ सोंझा मे गाछक नीचाँ बान्हल अछि । ई बड़द ६ दाँतक अछि, दू माटि बहल अछि, सय टका मे कीनल अछि…। चूँकि अपनहुँ सभ अलग-अलग सभ कियो एकरा विषय मे पुछबे करितहुँ तें हम उपयुक्त बूझल जे सौंसे गौंआ कें एके बेर मे बजा ली आ सभ कें एक बेर बजेबाक लेल एहि सँ दोसर उपाय की भऽ सकैत छल? गोनूक ई गप्प सूनि सभ कियो ठकाहा मारि कें हँसय लगलाह ।
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