कथाकार - उपन्यासकार, नाटककार लेखिका उषा किरण खान ( Usha Kiran Khan ) मैथिली आ हिंदी दुनु भाषा मे समान रूप सं सृजनशील रहल छथि। उषा किरण खान केर जन्म 7 जुलाई 1945 ई० के लहेरियासराय, दरभंगा मे भेल छलनी। उषा जी संस्कृत, पालि, अंग्रेजी, मैथिली आ हिंदी क प्राचीन साहित्य के गहन अध्ययन केने छथि। मैथिली मे 'भामती' एवं हिंदी मे 'सिरजनहार' लिख के ऐतिहासिक उपन्यास दिस दृष्टिपात केने छथि। उषा जी के पहिल कहानी इलाहाबाद सं निकलय बला यशस्वी पत्रिका 'कहानी' मे प्रकाशित भेल छलनी।
उषा किरण सामाजिक क्रियाकलाप मे सेहो बहुते सक्रिय छथि आ महिला चर्खा समिति पटना के अध्यक्षा छथि। हिनक माननाय अछि जे साहित्य में विचारधारा हावी होय इ सही नै छैक, कियाकि लेखक के समदर्शी भेनाइ चाहि। ओ 'आयाम' नाम सं एकटा संस्था के स्थापना सेहो केने छथि जेकर उद्देश्य अछि साहित्य मे स्त्री-स्वर के प्रोत्साहित केनाय अछि। उषा किरण जी केर इतिमध्य बिहार राष्ट्र भाषा के हिंदी सेवी सम्मान, बिहार राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा सम्मान, दिनकर राष्ट्रीय पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुसुमांजलि पुरस्कार, विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार, बहुप्रतिष्ठित भारत-भारती सम्मान (२०१९), प्रबोध साहित्य सम्मान Prabodh Sahitya Samman (२०२०) एवं पद्मश्री सम्मान भेटल छनि।
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'अनुत्तरित प्रश्न', 'हसीना मंजिल', 'भामती', तथा 'सिरजनहार' एहन मैथिली उपन्यास के लेल इ प्रख्यात छथि। एहिके अलावा सेहो कहानी-संग्रह 'कांचहि बांस' सेहो अछि। हिंदी मे हिनक सुपरिचित उपन्यास के नाम अहि प्रकार अछि: 'पानी पर लकीर', 'फागुन के बाद', 'सीमांत कथा', 'रतनारे नयन'। एकरा छोरी के कहानी'क किताब जेना 'गीली पॉक', 'कासवन', 'दूबजान', 'विवश विक्रमादित्य', 'जन्म अवधि', 'घर से घर तक' सेहो पाठक के खूब पसंद आयल।'सिरजनहार' और 'अगनहिंडोला' क्रमश: कवि विद्यापति और शेरशाह के जीवनी-निर्भर कृतियां अछि।
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नाटक लेखिका के रूप मे उषा जी मैथिली मे 'फागुन', 'एकसरि ठाढ़', 'मुसकौल बला' आदि आ 'घंटी से बान्हल राजू', 'बिरड़ो आबि गेल' एहन बाल-नाटक आ हिंदी मे'कहां गये मेरे उगना' एवं 'हीरा डोम' आदि नाटक तथा 'डैडी बदल गये हैं', 'नानी की कहानी', 'सात भाई और चंपा', 'चिड़िया चुग गयी खेत' एहन लोकप्रिय नाटिका के रचना सेहो केने छथि। उषा किरण जी 'कहां गये मेरे उगना' नाटक के माध्यम सं कविवर विद्यापति के जीवनदर्शन मंच पर साकार केलनि। एकटा बाल-उपन्यास सेहो लिखने छथि 'लड़ाकू जनमेजय'।
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