दू छनकऽ अहि जिनगी मे
लोभक शैय्या पर छी सुतल,
बेटी बला के केना लूटल जाय
एहि ताक मे रहय छी जुटल।
जाहि बेटी के लक्ष्मी कहय छै
ताहि बेटी लेल टाका गानय छै,
दहेज छै अभिसाप समाजकऽ
इ जनितो दहेज मांगय छै।
हम इ जनितो नइ बेटी होइतौं
एहि लोभ सँ ग्रसित समाज मे,
जतय सदिखन सब जुटल रहय छै
तिजौरी भरबा के काज मे।
नारी भेनाय अतय अपराध छियै
देवी पूजनाहर अहि देश में,
गिद्ध जँका लुझै ले तैयार रहै छै
इंसानी रूपक भेष मे
बेटा के अछि दाम लगा रहल
बेच के अपन लाज - विचार,
पाँच प्लस संग टीवी, फ्रीज, एसी
मांग हिनक छनि ना - ना प्रकार।
निर्माण होय दहेज़ मुक्त मिथिला के
जन-जन पहुँचय एक सन्देश,
जतय बिना खरीदने बेटा भेटय
बिना लोभ-मोह, काया-कलेश।
नय लेब दहेज़, नय देब दहेज़
बहुत भेल अब तऽ मानी लिअ,
नै किछ लेने एलो नै लऽ जायब
अहि स्तय के अहाँ जैन लिअ।
नय बोझ बनय बाप पर बेटी
नय दहेज लेल बलिदान चढय,
सब किनको होय इ उद्देश्य
बेटी पढ़य, बेटी बढ़य।
✒️ प्रभाकर मिश्रा 'ढुन्नी'
हम ई कविता क सोसल मिडियि पर द रहल छी
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