शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

ससन-परस खसु अम्बर रे देखल धनि देह - विद्यापति Sasan Paras Khasu Ambar Re Lyrics

ससन-परस खसु अम्बर रे देखल धनि देह। 
नव जलधर-तर चमकए रे जनि विजुरी-देह॥ 

आज देखलि धनि जाइते रे मोहि उपजल रंग। 
कनक-लता जनि संचर रे महि निर अवलंब॥ 

ता पुन अपरुब देखल रे कुच-जुग अरबिंद। 
बिगसित निह किछु करन रे सोझाँ मुख-चंद॥ 

विद्यापति कवि गाओल रे रस बुझ रसमंत। 
देवसिंह नृप नागर रे हासिनि देइ कंत॥ 

रचनाकार - विद्यापति

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