मिथिलाक राजदरबार मे एक दिन कशी सं पढ़ल एकटा विद्वान आयल।
मिथिला नरेश ओकर समुचित स्वागत केलैथ आ ओकरा आसन देल गेल। विप्रश्रेष्ठ ! राजा कहलैथ - अहाँ एहन विद्वानन चरण हमरा राज्य मे पड़ल इ हमरा लेल बड़ सैभाग्यक बात छैक।
आब हम अहाँसं प्रार्थना करैत छी जे किछ दिन हमर आतिथ्य स्वीकार करू आ अपन ज्ञान सं हमरा आ हमर प्रजा के लाभान्वित करू!
राजन विद्वान ब्राह्मण बाजल- हम काशी के प्रसिद्ध गुरुकुल सं शिक्षा प्राप्त छी। समस्त वेद, शास्त्र आ पुराण हमरा कंठस्थ ऐछ। अहि समय हम एकटा विशेष प्रयोजन सं यात्रा पर छी।
हम काशी सं पूर्ण शिक्षित भऽ के निकललौ त हमरा मार्ग मे एकटा कथावाचक विद्वान, सभाक बीच रामचर्चा करैत भेटल। हम हुनका सं तीनटा प्रश्न कऽ देलौं। हुनका सं एको टाक जवाब नै देल गेलैन। ज्ञान तऽ हुनकर सीमित छलैने, तामस हुनकर असीमित छलैन।
मिथिला नरेश भरल सभा मे क्रोधित भऽ उठलाह - हे विद्वान, हम मानलौ जे अहाँ लग ज्ञानक प्रचुर भंडार ऐछ मुदा एकर अर्थ इ नै जे अहाँ सृष्टि के सर्वश्रेठ विद्वान छी। अहि पृथ्वी पर एक सं एक विद्वान छैक। जाहि दिन अहाँक स्वयं सं उत्तम भेटत ओहि दिन अहाँक ज्ञान चूल्हा फुकैत नजैर आयत।
तऽ ठीक छै, राजन्, हम समस्त मिथिला राज्यक विद्वान के शास्त्रार्थ लेल ललकाइर रहल छी। अगर हम पराजित भऽ जायब त मिथिला नरेश के दास बैन रहब आ यदि हम विजयी रहब तऽ मिथिलाक सर्वोच्च सम्मान हमरा भेटत।
मिथिला नरेश के अपन राज्यक विद्वान पर विश्वास छलैन। चुनौती स्वीकार कऽ लेल गेल।
शास्त्रार्थ शुरू भऽ गेल। दरबार मे उपस्थित विद्वान बारी-बारी सं शास्त्री सं भिड़ल। मुदा शास्त्री के ज्ञानक समक्ष कियो नै टिकल। आ दोसरो दिन सेहो शास्त्री के कियो पराजित नै कऽ सकल। फेर तऽ महाराज सगरो राज्य मे ढोलहा पिटबा देलैथ जे कियो ओहि शास्त्री के पराजित करत ओकरा भरपूर पुरस्कार सहित दरबार मे विशिष्ठ दर्जा प्राप्त हैत।
बात गोनू झाक गाँव मे सेहो पहुंच गेल।
यउ हमरा गामक विद्वान त गोनू झा छथिन। हिनका पर मां काली के विशेष कृपा छैन। इ ओहि शास्त्री के हरा कऽ मिथिलाक सम्मान बचा सकैत छैथ। एहन अवसर बेर-बेर नै आयत।
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फेर सबटा गाँव मिल कऽ गोनू झाक घर पहुंचल। आ गोनू सं शास्त्रार्थ करबाक लेल आग्रह केलक। गोनू झा माइन गेलैथ।
फेर ओ मिथिलाक राजधानी चैल पड़लाह। दु दिनक यात्राक उपरांत राजधानी जा पहुंचलाह। ओ पहरेदार के अपन पधारबाक प्रयोजन बतेलैथ। दरबार मे सूचना भेजल गेल। राजाक आज्ञा पर गोनू झा के अंदर भेजल गेलैन। अखने-अखने शास्त्री एकटा विद्वान के पराजित केने छल आ अपन जीत पर बड़े मोहक ढंग सं मुस्कुरा रहल छल।
गोनू झा एखने-एखने पहुंचल छलैथ।
महाराज के जय हो। हमर नाम गोनू झा ऐछ। हम अहाँक प्रजाक एकटा हिस्सा छी। अहाँक कृपा सं हमरा सेहो थोड़-बहुत ज्ञान ऐछ आ एहि ज्ञानक विश्वास पर हम एहि परमविद्वान ब्राह्मण सं शास्त्रार्थ करबाक आज्ञा चाहैत छी।
राजा साधारण भेशभूषा बला देहाती के देखलैथ आ धीरे सं स्वीकृति दऽ देलैथ।
गोनू झा, शास्त्री के सोंझा बला आसन पर पलथा माइर बैस गेलैथ।
शास्त्री महाराज मुस्कुरायल। हुनक मुस्कान मे उपहासक भाव छल जेना कहि रहल होय जे - केहन केहन गेला तऽ मोछ बला एला।
तऽ शास्त्री जी अहाँ छीयै ओ प्रकांड विद्वान जे मिथिला के शस्त्र सं नै शास्त्र सं पराजित करबाक दुस्साहस कऽ रहल छीयै।
गोनू झा बाजलैथ।
शास्त्रार्थ के लेल तैयार भऽ जाउ जवान। शास्त्री तिलमिलायल।
हम तऽ तैयार छी भगवन! गोनू झा मुस्कुरेला।
तऽ फेर हम प्रश्न करूं ?
विद्वान महोदय। गोनू झा बाजलैथ - अहाँ तऽ चाइर दिन सं प्रश्न कए रहल छी विद्वान केवल प्रश्न टा नै करैत ऐछ बल्कि उत्तर सेहो दइत अछि।
अहि बेरा तऽ शास्त्री औरो हरबरा गेलाह। मिथिला नरेश अनायासे थोपरि बजा उठलाह।
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तोहर की अभिप्राय छौ ? शास्त्री पूछलैथ
महोदय, हम अहाँसं प्रश्न करबाक आज्ञा चाहैत छी। अय मे आज्ञा केहन! महाराज बीच मे कहलैथ - शास्त्रार्थ मे प्रश्न आ उत्तर टा तऽ होइत अछि।
आब शास्त्री जी शंकित भऽ उठलाह। एखन धरि ओ प्रश्नने टा केने छलैथ। आय पहिल बेरा हुनका सोंझा प्रश्नकर्ता आयल छल।
हं तऽ महोदय, हमर पहिल प्रश्न ऐछ जे बुद्धि के प्रकाट्य कतए छैक ? साधारण आ बचकाना प्रश्न छैक। मस्तिष्क सं बुद्धि प्रकट होइत ऐछ।
नै महाराज बुद्धि के प्रकाट्य ठोर सं होइत ऐछ। गोनू झा बजलाह- यदि ठोर नै खुजत तऽ बुद्धि के प्रकटन कोना हैत।
दरबार मे थोपरिक अबाज गूंइज उठल। शास्त्री जी के मुंह उतैर गेलैन।
महोदय, हमर दोसर प्रश्न ऐछ जे बुद्धि के आहार की छैक ?
शास्त्री जी चकरा गेला, बुद्धि कहिया सं खाय लागल। इ कोन बेतुका प्रश्न छैक। बुद्धि के पेटे कतए होइत छैक।
नै महोदय, तइयो भी बुद्धि समय के खाइत ऐछ। समये बुद्धि जे आहार होइत ऐछ। अहाँ चाइर दिन सं बुद्धिक प्रयोग कऽ रहल छी तऽ की बुद्धि चाइर दिनक समय नै खेलक। गोनू झा बजलैथ।
आब हमर अंतिम प्रश्न ऐछ जे हमर बुद्धिक मूल्य की ऐछ ?
शास्त्री जी चकरा कऽ अपन माथा नोचय लगला। एहि सं स्पष्ट छल जे अहि प्रश्नक सेहो कुनो उत्तर हुनका लग नै छल। बुद्धिक कियो मूल्य कोना आंइक सकैत ऐछ आ ओहो दोसरक बुद्धि कऽ।
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महाराज, आज्ञा होय तऽ हम अपन अहि प्रश्नक उत्तर दरबारक साधारण सन दरबारी सं दियाऊं ताकि शास्त्री जी के इ भ्रम नै रहैन जे मिथिला राज्य मे विद्वता के कुनो कमी छै।
अति उत्तम! राजा प्रसन्न भ उठलैथ - आज्ञा ऐछ। गोनू झा वैह प्रश्न एकटा साधारण दरबारी सं केलैथ।
महाराज, हिनकर बुद्धि के मूल्य त आय बच्चा-बच्चा जानैत ऐछ। दरबारी कहलक - इ अपन बुद्धि सं शास्त्री जी के इ भ्रम तोइड़ देलैथ जे हिनका सं बड़का विद्वान कियो नै ऐछ।
आब इ विजेता छैथ आ विजय कऽ मूल्य सबटा पुरस्कार कऽ दरबार मे विशिष्ट पद हिनका प्राप्त हैत।
ओमहर शास्त्री जी उइठ अपन पोथी-पत्रा समैट कऽ जेबाक लेल तैयार भेलैथ त गोनू झा हाथ जोइड़ कऽ मार्ग रोकलैथ।
शास्त्री जी, अहाँ परमविद्वान छी। हमरा इ स्वीकारबा मे कुनो संकोच नै जे हम ज्ञान सं नै, नहीं, तुक्क सं अहाँक पराजित केलौ। अतः अहाँ मोन मे ग्लानि नै राखब। अहाँ हमर पूज्य छी। शास्त्री जी के आँइख खुइज गेलैन। गोनू झा विद्वान सेहो छलैथ आ सज्जन हृदय सेहो।
गोनू झा मिथिला दरबार के सम्मानित पद पर आसीन भेलैथ। हुनका महाराज इहो सुविधा प्रदान केलैथ जे ओ जहन चाहें दरबार आबि सकैत छैथ।आ ढेर रास पुरस्कार लऽ कऽ गोनू झा आपस अपन गाँव आबि गेलैथ।
खिस्सा समाप्त भेल!
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