सैसव जौवन दरसन भेल,
दुहु दल-बलहि दन्द-परि गेल।
कबहुँ बाँधए कच कबहुँ बिथार,
कबहुँ झाँपए अँग कबहुँ उघार।
थीर नयान अथिर किछु भेल,
उरज उदय-थल लालिम देल।
चपल चरन, चित चंचल भान,
जागल मनसिज मुदित नयान।
विद्यापति कह करु अवधान,
बाला अंग लागल पंचवान।
रचनाकार : विद्यापति
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