आजु दोखिअ सखि बड़ अनमन सन,
बदन मलिन भेल तारो।
मन्द वचन तोहि कओन कहल अछि,
से न कहिअ किअ मारो।
आजुक रयनि सखि कठि बितल अछि,
कान्ह रभस कर मंदा।
गुण अवगुण पहु एकओ न बुझलनि,
राहु गरासल चंदा।
अधर सुखायल केस असझासल,
धामे तिलक बहि गेला।
बारि विलासिनि केलि न जानथि,
भाल अकण उड़ि गेला।
भनइ विद्यापति सुनु बर यौवति,
ताहि कहब किअ बाधे।
जे किछु पहुँ देल आंचर बान्हि लेल,
सखि सभ कर उपहासे।।
रचनाकार - विद्यापति
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