प्रथमहि सुंदरि कुटिल कटाख।
जिब जोखि नागर देअ दस लाख।
केओ देअ हास सुधा सम नीक।
जइसन परहोंक तइसन बीक।
सुनु सुंदरि नव मदन-पसार।
जनि गोपह आओब बनिजार।
रोस दरसि रस राखब गोए।
धएलें रतन अधिक मूल होए।
भलहि न हृदय बुझाओब नाह।
आरति गाहक महंग बेसाह।
भनइ विद्यापति सुनह सयानि।
सुहित बचन राखब हिय आनि।
रचनाकार - विद्यापति
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