चाँद-सार लए मुख घटना करू
लोचन चकित चकोरे।
अमिय धोय आँचर धनि पोछल
दह दिसि भेल उँजोरे।
कुच जुग के वहि बूढ़ निरस उर
कामिनि कोने गढ़ली।
रूप सरूप मोय कहइत असंभव
लोचन लागी रहली।
गुरू नितम्ब भरे चलए न पारए
माँझहि खीनि निमाई।
भाग जाएत मनसिज धरि राखलि
त्रिवलि लता अरूझाई।
रचनाकार : विद्यापति
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