शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

जाग मुसाफिर जाग-जाग तों जाग - मैथिली पुत्र प्रदीप

जागह-जागह जाग मुसाफिर जाग-जाग तों जाग। 
जागह भेलौ भोर मुसाफिर सुतले जौं रहि जेब। 
सोन सनक अवसर छुटि जैतो जीवन भरि पछितेब'।। 
सूर्योदय सँ पहिने जाग' चमकै लगतौ भाग।। 
जागह-जागह जाग मुसाफिर जाग-जाग तों जाग।

एहि दुनिया के जानि लैह तो पैघ मुसाफिर खाना,
जहिठाँ सँ ऐलह एहि जग मे तहिठाँ छैके जाना।
जतबा दिन लए ऐलह एहिठाँ शुभ कर्मों मे लाग।।
जागह-जागह जाग मुसाफिर जाग-जाग तों जाग।

चलबे थिक जीवन केर लक्षण, मरण थिक विश्राम।
कान खोलि क' सुनु सुकोमल पक्षी सब के गान।।
भोगक पाछाँ रोग रहै है, योगक सिद्धिताक ।। 
जागह-जागह जाग मुसाफिर जाग-जाग तों जाग।

कर्मक्षेत्र मे कर्मक पाछाँ रहिते है समृद्धि, 
शुभ कर्मों सँ होइत रहै है सबठाँ सब दिन वृद्धि 
तँ सकाल उठि नित्य कर्म मे जल्दी जल्दी लाग। 
जागह-जागह जाग मुसाफिर जाग-जाग तों जाग।

समय सलोना ससरि जेतै तँ जीवन भरि पछतेब' 
रोग शोक कँ छोड़ि तखन तों आर ने किछुओ पेब' ।। 
सबिता तोहर द्वारि पहुँचला देखह कते समीप, 
सूर्यदेव मे सविता मैया जहिना प्रखर 'प्रदीप' 
एहि अवसर सँ लाभ उठाब' कर' सेज के त्याग।। 
जागह-जागह जाग मुसाफिर जाग-जाग तों जाग।

रचनाकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)

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