Kantak Majh Kusum Paragas
रचनाकार - श्री विद्यापति
कंटक माझ कुसुम परगास।
भमर बिकल नहि पाबय पास।।
भमरा भेल कुरय सब ठाम।
तोहि बिनु मालति नहिं बिसराम।।
रसमति मालति पुनु पुनु देखि।
पिबय चाह मधु जीव उपेंखि।
ओ मधुजीवि तोहें मधुरासि।
सांधि धरसि मधु मने न लजासि।
अपने मने धनि बुझ अबगाही।
तोहर दूषन बध लागत काहि।।
भनहि विद्यापति तओं पए जीव।
अधर सुधारस जओं परपीब।।
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