माधव हमर रटल दुर देश।
केओ न कहइ सखि कुसल सनेस।।
जुग जुग जीबथु बसथु लाख कोस।
हमर अभाग हुनक नहिं दोस।।
हमर करम भेल विहि विपरीति।
तेजलनि माधब पुरुबिल पिरीति।।
हृदयक बेदन बान समान।
आनक दुःख आन नहिं जान॥
भनइ बिद्यापति कवि जयराम।
दैव लिखल परिनत फल बाम॥
रचनाकार: विद्यापति
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