सामरि हे झामरि तोर दहे,
कह कह कासँए लायलि नहे।
निन्दे भरल अछि लोचन तोर,
कोमल बदन कमल रुचि चारे।
निरस धुसर करु अधर पँवार,
कोन कुबुधि लुतु मदन-भंडार।
कोन कुमति कुच नख-खतदेल,
हा-हा सम्भु भागन भेय गेल।
दमन-लता सम तनु सुकुमार,
फूटल बलय टुटल गुमहार।
केस कुसुम तोर सिरक सिन्दूर,
अलक तिलक हे सेहो गेल दूर।
भनइ विद्यापति रति अवसान,
राजा सिंवसिंह ईरस जान।
रचनाकार - विद्यापति
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