Kamini Kare Sanane
कामिनि करए सनाने।
हेरितहि हृदय हनए पँचबाने॥
चिकुर गरए जलधारा।
जनि मुख-ससि डरें रोए अँधारा॥
कुच-जुग चारु चकेवा।
निअ कल मिलत आनि कोने देवा॥
ते संकाएँ भुज-पासे।
बाँधि धएल उड़ि जाएत अकासे॥
तितल बसन तनु लागू।
मुनिहुक मानस मनमथ जागू॥
सुकवि विद्यापति गावे।
गुनमति धनि पुनमत जन पावे॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !