Ki Kahab Hai Sakhi Aajuk Vichar
कि कहब है सखि आजुक विचार।
से सुपुरुष मोहि कएल सिंगार(?)॥
हँसि-हँसि महु आलिंगन देल।
मनमथ अंकुर कुसुमित भेल॥
आँचर परसि पयोधर हेरु।
जनम पंगु जनि भेटल सुमेरु॥
जब निबि-बंध खसाओल कान।
तोहर समथ हम किछु नहि जान॥
रति-चिन्हे जानल कठिन मुरारि।
तोहर पुने जीअलि हमे नारि॥
कह कवि-रंजन सहज मधुराई।
न कह सुधामुखि गेल चतुराई॥
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