रविवार, 18 सितंबर 2016

चल देखए जाऊ ऋतु बसंत लिरिक्स - विद्यापति

चल देखए जाऊ ऋतु बसंत। 
जहाँ कुद कुसुम केतकि हसंत॥ 

जहाँ चंदा निरमल भमर कार। 
जहाँ रयनि उजागर दिन अंधार॥ 

जहाँ मुगधलि माननि करएमान। 
परिपथिहि पेखए पंचबान। 

भनइ सरस कबि कंठहार। 
मधुसूदन राधा बन-बिहार॥ 

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