शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

नाथ हो कोटिन दोष हमारो लिरिक्स - Naath ho Kotin Dosh Hamaro Lyrics

नाथ हो कोटिन दोष हमारो।
कहाँ छिपाऊँ, छिपत ना तुमसे, रवि ससि नैन तिहारौ।।

जल, थल, अनल, अकास, पवन मिलि, पाँचो है रखवारो।
पल-पल होरि रहत निसी बासर तिहुँ पुर साँझ सकारो।।

जागत, सोवत, उठत, बैठत करत फिरत व्यवहारो।
रहत सदा संग, साथ न छोड़त, काल पुरुष बरियारो।।

बाहर भीतर बैठि रह्यो है, घट-घट बोलनि हारो।
दुख-सुख पाप-पुन्य के मालिक, निज जन जानि उबारो।।

कहाँ लाज करि नारि नाह सों जो देखत तन सारो।
'लक्ष्मीपति' के स्वामी केशव भव-नद पार उतारो।।

रचनाकार: लक्ष्मीनाथ परमहंस गोसाई

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !