पहिलें बदरि कुच पुन नवरंग।
दिन-दिन बाढ़ए पिड़ए अनंग॥
से पुन भए गेल बीजक पोर।
अब कुच बाढ़ल सिरिफल जोर॥
माधव पेखल रमनि संधान।
घाटहि भेटलि करइत असनान॥
तनसुक सुबसन हिरदय लाग।
जे पए देखब तिन्हकर भाग॥
उर हिल्लोलित चाँचर केस।
चामर झाँपल कनक महेस॥
भनइ विद्यापति सुनह मुरारि।
सुपुरुख बिलसए से बर नारि॥
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