अहाँके दरस लागि रकटल मोर अँखिया हे
मोर मन के बेटी
कत जाय रहली नुकाय हे मोर मन के बेटी
बटिया तकैत मोर छतिया सुखायल हे मोर |
आबि कह एक बेर माय हे।
एहन सरस भूमि नैहरा बनाबू हे मोर।
एहि लागि मिथिला सिहाय हे।
लतिका सनेह पाबि अहाँ अइसन धिया है।
रामजी के करब जमाय है।
शतानन्द के स्वप्नमे शंभु देल समुझाय।
कंचन हल निर्माण कय धरती जोतू जाय।।
से जानल नृप जनकजी जोतय चलला धाय ।
फारक तरस प्रकट भय सुता देल मुसकाय ।।
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