बुधवार, 10 दिसंबर 2025

स्नेहलता स्नेह - एक संक्षिप्त जीवनी - Snehlata Maithili Geetkar

जन्म: 1909, डरौड़ी गाँव, समस्तीपुर (बिहार)
मूल नाम: कपिलदेव ठाकुर
भनिता / उपनाम: स्नेहलता, लतिका सनेह, सनेहिया, स्नेह

स्नेहलता जी बिहार–मिथिला की भक्ति परंपरा के वह दीप्तिमान नाम हैं जिन्होंने अपने जीवन का हर क्षण भगवान राम–सीता की भक्ति, लोकगीतों, विनय पदावली, शिव वंदना और लोक-मंगल अनुष्ठानों को समर्पित किया। गाँव की मिट्टी में पले-बढ़े कपिलदेव ठाकुर ने बचपन से ही भक्ति-संगीत को अपना नैष्ठिक मार्ग बनाया।

"भूमंडल के अमर गोद में 
मुसकाहट सुन्दर मिथिला के । 
ममता भरल सरस रजकण मे 
मचलाहट सुन्दर मिथिला के''

सन 1936, सीतामढ़ी के अखिल भारतीय संकीर्तन सम्मेलन में, जब उन्होंने अपना विनय-गीत और विवाह-गीत प्रस्तुत किया तो पूरा मंच तालियों से गूँज उठा।
उसी मंच पर अयोध्या के महान संत श्री वेदान्ती जी महाराज ने उनकी अद्भुत भक्ति–भावना से अभिभूत होकर उन्हें नया नाम दिया - “स्नेहलता”। इस नाम के पीछे वह कोमलता, प्रेम और भक्ति थी जो उनके गीतों की हर पंक्ति में झलकती थी।

स्नेहलता जी के गीत :—

राम-सीता विवाह,

जनकपुर वंदना,

भक्ति-गीत,

गोसाउनी गीत,



कोहबर और विवाह-परम्परा

—इन सबके कारण बिहार-नेपाल की कीर्तन मंडलियों में अत्यंत लोकप्रिय हुए।


उनकी रचना “दुवार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ हे दुलरुआ भैया” सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि कोहबर की लोक-संस्कृति का आधार बन गई। यह गीत आज भी शादी की रस्मों में राम–सीता विवाह की स्मृति जगाता है।

उसी दौर में शारदा सिन्हा संगीत की दुनिया में प्रवेश कर रही थीं। महिला कलाकार कम थीं, अच्छे गीतकार और भी कम। स्नेहलता जी का हृदय अत्यंत सरल था। उन्होंने अपनी कीर्तन-पोथी से दस गीत शारदा जी को दिए, यह विश्वास दिलाते हुए कि वे दरौड़ी और स्नेहलता को याद रखेंगी। इन दसों गीतों ने आगे चलकर शारदा जी को अत्यंत प्रसिद्धि दिलाई—परंतु दुखद रूप से स्नेहलता जी का नाम कभी सामने नहीं आया।

स्नेहलता लिखित व 'बाबा' (स्व सूर्यदेव ठाकुर) द्वारा मंच से गाया उनका अंतिम गीत

तोहे राखूँ पियरववा, कबने विधि से ।। तोहे रा ।। हिया बिच राखूँ ता अँखिया तरसे,

अँखियों में राखूँ तो हिया तरस ।। तोहे राखूँ पियरवा ।।

इस उपेक्षा ने परिवार को गहरी पीड़ा दी। सन 1993 में, जीवन के अंतिम वर्षों में, भक्ति में लीन स्नेहलता जी इस संसार से विदा हुए। उनके पुत्र श्रीकांत ठाकुर ने उनके सारे मूल दस्तावेज - गीत, भास, पदावली - एक बक्से में बंद कर दिए, भगवान राम को समर्पित करते हुए।

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