बुधवार, 10 दिसंबर 2025

बाँके बिहारी झा 'करील' जी की संक्षिप्त जीवनी - Banke Bihari Jha Kareel Jivan Parichay

Banke Bihari Jha Kareel Biography in Hindi

बाँके बिहारी झा उर्फ 'करील' जी बिहार के भागलपुर के भ्रमरपुर गाँव में जनवरी 1936 में पैदा हुए। बचपन से ही वे बहुत शांत, सरल और पढ़ने-लिखने वाले थे। उनका स्वभाव पूरी तरह सात्विक और भक्ति से भरा था।

बचपन और भक्ति
उनकी माँ बाल-गोपाल (कृष्ण) की बड़ी भक्त थीं। माना जाता था कि उनकी कृपा से ही करील जी का जन्म हुआ। वे बचपन से ही भजन, कविता और लेख लिखने लगे। 8वीं कक्षा से ही उनकी रचनाएँ लोगों के बीच प्रसिद्ध होने लगीं।

साहित्य और शिक्षा
उन्होंने हिंदी और संस्कृत दोनों विषयों में एम.ए. किया और Gold Medal भी मिला। इसके बाद वे बक्सर के M.V. College में प्रोफेसर बन गए।

वे कई भाषाओं - मैथिली, हिंदी, संस्कृत, अवधी, बंगला, बृज, अंगिका - में भजन और काव्य लिखते थे। उनकी प्रसिद्ध किताब “करील कादम्बिनी” (1970), अभिसारिका - आत्मा से अनंत तक”, हितोपदेश” आज भी लोगों द्वारा पढ़ी और गाई जाती है।

आध्यात्मिकता
कभी एक बार स्वप्नादेश के द्वारा एक समारोह में उन्हें राम की भूमिका निभाने को चुना गया। उनकी मृदुलता और शांति देखकर लोग उन्हें प्यार से “राम जी” कहने लगे।

उनके भजन इतने प्रभावशाली थे कि मंच पर गाते ही पूरा माहौल बदल जाता था। एक बार आंधी-तूफान में उन्होंने अंधेरे में “अंधियरवा में राम मोरा पूनम के चंदा” गाना शुरू किया, और पूरा पंडाल शांत हो गया।

परिवार और स्वभाव
वे स्वभाव से बहुत संकोची, सरल और सन्यासी प्रवृत्ति के थे। विवाह में रुचि नहीं थी, पर माता की इच्छा से उन्होंने कौशल्या देवी से विवाह किया, जो अत्यंत सहनशील और धर्मपरायण थीं।

उनका जीवन कई दुखों से भी भरा था। उनके बड़े बेटे का निधन हुआ, लेकिन उन्होंने कहा “जो भगवान का था, वो उनके पास चला गया।” और वे नाम-संकीर्तन में लग गए।

सम्मान
महादेवी वर्मा, डॉ. राधाकृष्णन जैसे बड़े साहित्यकार उनसे पत्राचार करते थे। उनकी लिखी रचनाएँ आज भी कई जगह भाव से गाई जाती हैं, जैसे :-

तेरी मर्जी का मैं हूँ गुलाम

अंतिम समय
माता के देहांत के बाद उन्हें ब्लड कैंसर हुआ। बीमारी बढ़ती गई, पर वे हमेशा भगवान के नाम में लगे रहे। 25 दिसंबर 1976 में, सिर्फ 40 साल की उम्र में, वे गोलोक धाम चले गए।

“करील” नाम क्यों?
वे कहा करते थे - “मैं वृंदावन की करील झाड़ी जैसा बनना चाहता हूँ, जो श्री बिहारी जी के चरणों में चुभने वाले काँटों को रोक ले।”

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