Nab Brindaban Nab Nab Tarugan
नब बृंदाबन नब-नब तरुगन,
नब-नब विकसित फूल।
नब बसंत नबल मलयानिल,
मातल नब अलि कूल॥
बिहरइ नबल किसोर।
कालिंदी-पुलिन कुंज बन शोभन,
नब-नब प्रेम-विभोर॥
नबल रसाल-मुकुल-मधु मातल,
नब कोकिल कुल गाय।
नबजुबती गन चित उमताअई,
नब रस कानन धाय॥
नब जुबराज नबल बर नागरि,
मीलए नब-नब भाँति।
निति-निति ऐसन नब-नब खेलन,
विद्यापति मति माति॥
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