गुरुवार, 22 जनवरी 2015

नब बृंदाबन नब-नब तरुगन लिरिक्स - विद्यापति

Nab Brindaban Nab Nab Tarugan

नब बृंदाबन नब-नब तरुगन, 
नब-नब विकसित फूल। 
नब बसंत नबल मलयानिल, 
मातल नब अलि कूल॥ 

बिहरइ नबल किसोर। 
कालिंदी-पुलिन कुंज बन शोभन, 
नब-नब प्रेम-विभोर॥ 

नबल रसाल-मुकुल-मधु मातल, 
नब कोकिल कुल गाय। 
नबजुबती गन चित उमताअई, 
नब रस कानन धाय॥ 

नब जुबराज नबल बर नागरि, 
मीलए नब-नब भाँति। 
निति-निति ऐसन नब-नब खेलन, 
विद्यापति मति माति॥ 

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